कोविड-19 के दौरान घरेलू हिंसा बढी : डाॅ. नीरू मिश्रा
— डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में जेण्डर संवेदनशीलता पर विशेष व्याख्यान
मध्यप्रदेश। डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा जेण्डर संवेदनशीलता और संबंधित विषय पर आयोजित अकादमिक गतिविधियों के क्रम में हुए विशेष व्याख्यान में डाॅ. नीरू मिश्रा ने कोविड-19 के दौरान बढ़ती घरेलू हिंसा और उसके स्वरूपों पर बात करते हुए कहा कि इस वैश्विक महामारी ने पूरी मानवता को हैरान कर दिया है। इस वर्ष जब हम बीजिंग घोषणा-पत्र और प्लेटफार्म फाॅर एक्शन के 25 वर्ष पूरे कर रहे हैं, जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए दुनिया का सबसे न्यायिक और रूपान्तरकारी एजेण्डा है। ऐसे समय में कोविड-19 ने ऐसा परिदृश्य प्रस्तुत किया है जिसमें महिलाओं के साथ घरेलू दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ी हैं और पीड़ितों द्वारा रिपोर्ट करने और उनकी मदद करने में अधिक जटिलता आयी है। वैश्विक स्तर पर इस विषय पर अन्वेषणात्मक चर्चाओं के बाद भी घरेलू हिंसा भी एक वायरस के रूप में विभीषिका बन उत्पन्न हो रहा है। इसके प्रस्फुटित होने के अदृश्य स्वरूपों और बाहरी परिदृश्यों को साफ करने की आवश्यकता है। शारीरिक, मनासिक, मनोवैज्ञानिक हिंसा के साथ-साथ स्टाॅकिंग, धमकी देना आदि के रूप में लाॅकडाउन के दौरान हिंसा बढी है। अगर आर्थिक संदर्भों में घरेलू हिंसा की बात करें तो वैश्विक स्तर पर 4 लाख करोड़ डालर का नुकसान एवं भारत के परिदृश्य में देखें तो 1.5 लाख करोड़ डॉलर के लगभग जो जी.डी.पी. के 50 प्रतिशत से अधिक है, का नुकसान होता है, ऐसा शोध बताते हैं। आपने शारीरिक हिंसा के साथ ही ऐसे अदृश्य सूत्रों का वर्णन किया जो मानवता के प्रति अभिशाॅप हैं एवं जो भीतर छुपे ऐसे घाव हैं जिसका कोई इलाज नहीं है। ऐसी मानसिक हिंसा जो महिला के मान सम्मान और व्यक्तित्व विकास में बाधक होने के साथ ही उड़ने वाले पंखो को काटकर घर के पिंजड़े में बंद कर देने जैसे घोर हिंसा का कारण है, आपने बताया, झूठी दिलासा देकर जीवन पर्यन्त बंधक बना देने वाले मानसिक शोषण से महिलाऐं, अनभिज्ञ रहती हैं। आरोपित करना, दोषारोपण करना, चालबाजियां करना, छलकपट करना, असफलताओं का स्मरण कराकर ताना देना, पंरपराओं के नाम पर नियंत्रण करना ऐसे अदृश्य औजार हैं जो बिना शारीरिक हुए ही प्राणघातक हैं। इनसे बचने के लिए मानवीय प्रारूप की आवश्यकता है। हेल्पलाईन और जागरूकतापूर्ण कॉलर ट्यून के द्वारा सहायता के साथ ही प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं द्वारा अमल में लाया जाना आवश्यक है। जमीनी स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक संवेदनशीलता बढ़ानी होगी, जिसमें विश्वविद्यालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है। बिना किसी मुर्हूत के आज से ही मनोवृत्ति एवं व्यवहार में बदलाव करना होगा।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि चाहे पदों पर रहने वाली महिलाएं हो या घर में रहने वाली महिलाएं, लाॅकडाउन के दौरान सभी प्रभावित हुई हैं। परिवार का मूलाधार एवं रीढ़ की हड्डी महिलाएं इस आपदा के दौरान अपने ही घरों में हिंसा का शिकार हुई हैं। पितृसत्तात्मक समाज और सामाजिक संरचना के कारण हर परेशानी का सबसे ज्यादा शिकार प्रायः महिलाएं ही होती हैं। हम सभी को सामाजिक, समरसता और संवेदनशीलता के द्वारा सकारात्मक परिवेश निर्मित करना होगा। साथ ही इंसान का ‘मानव मानसिकता‘ के साथ जीवन जीना ही इसका अंतिम विकल्प है। इस जेण्डर परिप्रेक्ष्य में समझकर कार्य करना होगा। संतुलित जेेण्डर क्षमता को लाने के लिए जेण्डर संवेदनशीलता लाना जरूरी है।
स्वागत उद्बोधन जेण्डर स्टडीज विभाग की कुसुम त्रिपाठी द्वारा दिया गया। आभार डाॅ. विशाल पुरोहित द्वारा ज्ञापित किया गया। विशिष्ट व्याख्यान का संचालन डाॅ. मनोज गुप्ता ने किया।