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कोरोना काल : खुली हवा यही हैं दवा

त्रिलोचना कौर, लखनऊ, उत्तरप्रदेश


व्यापारी हो या कामकाजी महिला, पुरुष घर से बाहर ड्यूटी पर छह सात घंटे मास्क लगाकर बैंठने से सभी को मालूम हैं क्या होगा। हम कार्बनडाइआक्साइड छोड़ते है और आक्सीजन लेते हैं। यह स्वस्थ श्वाँस लेने की नेचुरल प्रक्रिया हैं। मास्क लगाने से हम पुनः पुनः छोड़ी गई कार्बन डाइआक्साइड़ ग्रहण कर रहें हैं तो दम घुटेगा ही और आक्सीजन लेबल कम होगा।

एक साल से हम सब सरकारी आदेश का पालन कर रहें हैं चाहे वह जान के डर से हो या जुर्माने के डर से लेकिन कोरोना ने तो अपनी पकड़ मजबूत बना रखी हैं। मास्क लगाइये नाक के नीचे से, भीड़ भाड़ में आप थोड़ी देर के लिए नाक ढ़क भी सकते हैं। लेकिन छह सात घंटे नाक ढ़कने वाले चाहे कोरोना से बच भी जाये लेकिन आक्सीजन की कमी से बच नहीं सकते।

अन्धानुकरण मत कीजिए… पतले से पतला मलमल सूती कपड़े का मास्क पहने। अगर कपड़े की गंध से साँस फूलती हो तो ताजे पीपल या बरगद के पत्ते का मास्क पहनें। हमारे बड़े बुजुर्ग पूरे मुँह पर कपड़ा ढाँककर सोने से इसलिए मना करते थे कि हमारी नाक खुली हवा में ताजी श्वाँस( आक्सीजन) लेती रहें।
बच्चों को तब तक स्कूल न भेजिए जब तक मास्क अनिवार्य हो।

कार में अगर एक परिवार के सदस्य बैठें हैं तो मास्क अनिवार्य नहीं होना चाहिए एक तो खिड़की पर काँच चढ़ा और ऊपर से मास्क चढ़ा।साँस तो फूलेगी दम घुटेगा ही। हमारी आक्सीजन की कमी का प्रमुख कारण मास्क लगाकर अशुद्ध हवा को ग्रहण करना। यह वक्त हैं अधिक से अधिक बिना मास्क के घर पर रहें घबराहट को अपने एवं अपने परिवार पर हाॅवी न होने दे। समाचार चैनल से दूर रहें।हवा,आकाश,खुली हवा का सान्निध्य अच्छें मित्र की भाँति हैं।

एक कहावत हैं राजा ख़बरदार तो कर्मचारी ज़बरदार , पुलिस भाइयों से भी विनती हैं आपदा में अवसर मत तलाशें गरीब जनता को दोहरी मार पड़ रही हैं। कोरोना न तो चुनावी रैलियों में हैं, न ही इससे जानवर के दम घुट रहें हैं। यह कैसा वाइरस हैं जो पहचानता हैं बेबस जनता को।

नोट : यहाँ लेख लेखिका के आपने विचार है इसके लिए www.insidestory .in उत्तरदायी नहीं है आप डॉक्टर की सलाह और कोरोना नियमो का पालन करे

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