पता चल जाएगा कांग्रेस की दीवार पोली या भाजपा का सिर पक्का !
– कांग्रेस के नाराज विधायकों को कितना लुभाएगा भाजपा का विजय शाह वाला आदिवासी कार्ड
(कीर्ति राणा)
ठंड के मौसम में कोहरा तो हर साल रहता है लेकिन सोमवार की सुबह इंदौर सहित आसपास के शहरों में कुछ घंटे जैसा कोहरा छाया रहा वह कई लोगों ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा । कुछ ऐसा ही घनघोर कोहरा मप्र विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर छाया हुआ है। चुनाव होगा विधानसभा सदन में लेकिन इस के परिणाम पर प्रदेश ही नहीं पूरे देश की नजर लगी है।पर्याप्त संख्या बल न होने पर भी सरकार बनाने की तिकड़म में माहिर मोदी-शाह की जोड़ी इस बार मप्र में काला जादू के मंत्रोच्चार में कैसे गच्चा खा गई और अब विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में जीतने की विधि कौन से नेपाली बाबा ने बता दी सबकी नजर इसी कारण परिणाम जानने में लगी है। मप्र की राजनीति में ऐसा कोहरा पहली बार छाया है जो शाम तक छँट जाएगा। तब ही पता चलेगा कांग्रेस की दीवार पक्की साबित हुई या प्रदेश में सत्ता गँवा चुकी भाजपा यह आज़माना चाहती थी कि दीवार पर सिर मारने पर खून निकलता है या नहीं।परिणाम यदि कांग्रेस के पक्ष में आया तो भाजपा का जबाव शायद यही हो कि प्रोटेम स्पीकर का नाम तय करने में हमसे विचार-विमर्श नहीं किया इसके विरोध में प्रत्याशी खड़ा किया था और यदि विजय शाह 109 से दो चार मत अधिक ले आए तो शिवराज हुंकार भरेंगे कि लँगड़ी सरकार की बैसाखी हम किसी भी वक्त झपट सकते हैं। भाजपा का यह आदिवासी कार्ड कांग्रेस के कितने नाराज विधायकों को प्रभावित करेगा यह तो परिणाम से ही पता चलेगा।
कांग्रेस के नर्मदा प्रसाद प्रजापति के सामने भाजपा के विजय शाह मैदान में उतारे गए हैं। कहावत तो है कि दीवार में सिर ठोकने से दीवार का कुछ नहीं बिगड़ता सिर जरूर लहूलुहान हो जाता है। कांग्रेस के पास 114+7=121 विधायकों हैं और भाजपा के विधायकों की संख्या 109 है। विधानसभा अध्यक्ष चुनाव से पहले कमलनाथ ने जो भोज आयोजित किया उसमें बस केपी सिंह ही नहीं पहुंचे बाकी 120 पहुंचे थे। भोजन में शामिल होने मात्र से यह भी नहीं माना जाए कि नमक का फ़र्ज़ अदा ही किया जाएगा। इधर भाजपा विधायक यशोधरा राजे भी सात दिन के अवकाश पर चली गई हैं, यानी वो वोट डालने नहीं आ सकीं तो 108 विधायक रह जाएंगे।
कांग्रेस को समर्थन देने वाले बसपा, सपा, निर्दलीय(कुल 7) विधायक अपमान की आग में जल भी रहे हैं और मुस्कुराते हुए सलामत रहे दोस्ताना हमारा भी गुनगुना रहे हैं।भाजपा ने भी कम संख्या बल के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए शाह को मैदान में उतारा है तो अपने हाथों अपने ही कपड़े फाड़ने का काम तो नहीं किया होगा। केंद्र से राजनाथ सिंह का आना, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे के साथ भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का सक्रिय रहने का मतलब है कि अरबी नस्ल के घोड़ों की खरीदी के लिए मनचाही कीमत चुकाने के निर्देश तिकड़म उस्ताद मोटा भाई ने दे रखे होंगे।अब देखना यह है कि कांग्रेस की दीवार वाकई मजबूत है या सात विधायकों की पूछपरख नहीं किए जाने से पोली हो गई है।भाजपा ने भी इस दीवार को सिर से तोड़ने का साहस तभी जुटाया होगा जब उसे भरोसा हो गया होगा कि भरभरा कर गिर जाएगी।यदि कांग्रेस प्रत्याशी प्रजापति अध्यक्ष निर्वाचित हो जाते हैं तो तय हो जाएगा कि भाजपा को बैठेबिठाए अपना सिर लहूलुहान करने का सपना आया था।पंद्रह साल सत्तासुख से वंचित रहने के बाद कांग्रेस विधायकों को सत्ता में न रहने का दर्द समझ आ चुका है, ऐसे में लगता तो नहीं कि दीवार की एक ईंट भी हिल पाए।यदि भाजपा अरबी नस्ल के घोड़े तलाश रही है तो कांग्रेस भी कहाँ कंबल ओढ़ के खर्राटे भर रही है।अपने व्यवसाय पर आँच न आने के कारण जो विधायक बीते सालों में अपनी जैकेट पर कमल का बिल्ला लगा कर घूम रहे थे अब उन्हें मुरझाए कमल से कहीं अधिक मुस्कुराते कमलनाथ का चेहरा बेहतर लगने लगा है।कल अध्यक्ष के चुनाव में कमलछाप कांग्रेस विधायकों पर कमल-दिग्विजय-ज्योतिरादित्य की तिकड़ी को भी खूब भरोसा है।मतदान के समय ही पता चलेगा कि किस दल के कौन विधायक गैरहाजिर रहने का साहस दिखाते हैं।
विधानसभा अध्यक्ष का प्रत्याशी तय किए जाने में जिस तरह नरोत्तम पर विजय शाह धम्म से गिरे हैं वो इस बात का संकेत है कि ब्राह्मण वर्ग वाला कांटा आदिवासी वर्ग वाले नाम से निकालने का हुनर शिवराज ने ही दिखाया है।उनका खेमा किसी हालत में नरोत्तम को इस पद के लिए उत्तम नहीं मान रहा था।इसी तरह नेता प्रतिपक्ष के लिए भी नरोत्तम की अपेक्षा गोपाल भार्गव का नाम चौंकाने वाला है।फिर भी विधायकों में एक वर्ग ऐसा भी है जो मन मारकर उनके नाम पर सहमति देगा।भार्गव जितनी आसानी से नेता प्रतिपक्ष बनेंगे, उतनी ही आसानी से विजय शाह विधानसभा अध्यक्ष बन जाएं इसकी उम्मीद कम है। भाजपा को अभी नहीं तो कभी नहीं वाली रणनीति में सफलता मिल जाए तो यह चमत्कार ही होगा। देश के आम लोगों को भी भरोसा हो जाएगा कि दो हजार के नोट छपना भले ही बंद हो गए हों लेकिन चलन से बाहर नहीं होंगे।कांग्रेस के प्रजापति जीत गए तो अपने ही दल का उपाध्यक्ष भी बन जाए इसके लिए कमलनाथ को अहमद पटेल की तरह मैनेजमेंट गुरु बनकर दिखाना होगा। दोनों चुनावों में सफल होने वाली कांग्रेस के लिए मप्र में सरकार चलाते रहने का मतलब खुद को ख़तरों के खिलाड़ी साबित करते रहने से कम नहीं है। पीएमजी ने जीएसटी में राहत, किसानों को प्रति एकड़ राहत राशि,सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण जैसे क़दमों से बिसात बिछाना शुरु कर दी है। केंद्र की ऐसी घोषणाओं और जुमलेदार मंत्रों से मोदी फिर बाहुबलि बन कर उभर गए तो मप्र सहित राजस्थान, छत्तीसगढ सरकारों के खिलाफ रिपोर्ट भेजने में राज्यपाल देर नहीं करेंगे।ये तो भला हो नितिन गडकरी का जो आजकल इंदिरा गांधी को पुरुष नेताओं से भी बेहतर बता रहे हैं और संघ वाले भी उनके मुखारविंद से झरते अमृत वचन से आल्हादित हैं। संसद में राहुल गांधी के रॉफेल हंगामे पर भरोसा न करने वाला गैर कांग्रेसी समाज गडकरी संवाद में क्यों इतनी रुचि दिखा रहा है यह मामला महागठबंधन को लालायित दलों के लिए खोज का विषय होना चाहिए।