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कॉमन मैन ! बंगलों में रहता है…..

(कीर्ति राणा )

समझ नहीं आ रहा कॉमन मैन कैसा होना चाहिए कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का कॉमन मैन तो कुर्ता, धोती, बंडी पहना अधगंजा और हवा में उड़ते बाल के साथ चेहरे पर हैरान-परेशान भाव वाला ही देखते रहे हैं। इस कॉमन मैन को देखते हुए दादाजी, पिताजी नहीं तो पड़ोस वाले काकाजी याद आ जाते हैं। सदी बदली, संसाधन बदले तो कॉमन मैन भी बदल गया । आज का कॉमन मैन बंगलों में रहता है, ट्विटर हैंडल उसे कॉमन मैन बताता है और वही कॉमन मैन चिंता करता है प्रदेश के अधनंगे, बदहाल और मर-मर कर जीने वाले कॉमन मैन की । समझ नहीं आता कि इस कॉमन मैन का स्तर उठा है या उस कॉमन मैन को दशकों बाद भी इस कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है कि सारा जमाना उसे कब से कॉमन मैन मान रहा था लेकिन उससे उसका यह मौलिक अधिकार भी अभूतपूर्व व्यक्तित्व ने रातोंरात छीन लिया है।
शपथविधि संपन्न हुए चार-पांच दिन हो गए, लग ही नहीं रहा है कि मप्र में कमलनाथ सीएम हो गए हैं।मप्र के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के इतिहास में ऐसा सूखा पहले कभी नहीं देखा…! प्रदेश में कॉमन मैन ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी और अगले ही दिन शिवराज ने नीली चिड़िया पर खुद को पहले एक्स सीएम और थोड़ी देर बाद कॉमन मैन घोषित कर दिया था, जैसे सत्ता सौंपने वालों में से वो भी एक कॉमन मैन हो गए।देखा जाए तो शिवराज ने मप्र का खजाना खाली कर के एक तरह से कमलनाथ के हाथ बाँध दिए हैं और यही वजह है कि शिवराज से अधिक कॉमन मैन तो सीएम नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस ने जिस कंगाली में चुनाव लड़ा तो एक चार के विज्ञापन से ही समझ आ गया था, कहाँ भाजपा के हर दिन एक-दो पेज और कहाँ ऊंट के मुंह में ज़ीरा जैसे कांग्रेस के सौ सेमी के विज्ञापन । तब भी यही प्रचारित हुआ था कि कमलनाथ के हाथ में प्रदेश कांग्रेस की कमान है तो ये सारी व्यवस्था भी हो रही है, सिंधिया होते तो विज्ञापन की हालत और खराब होती। क्या वह कांग्रेस की स्टेटेजी थी नोटबंदी को लेकर आम मतदाताओं का यह विश्वास मजबूत करना कि चुनाव प्रचार के मामले में भाजपा करोड़ों खर्च सकती है और कांग्रेस फूटी कौड़ी भी नहीं।
शपथ ले ली, सरकार के मुखिया हो गए लेकिन अब तक कॉमन मैन वाले खोल से बाहर ही नहीं आ पा रहे हैं कमलनाथ। पंद्रह साल के भाजपा शासन-खासकर शिवराज की सत्ता वाले वर्षों-से भी कुछ नहीं सीखा कमलनाथ ने। सीखते भी कैसे मप्र से वास्ता ही कहाँ रहा, देखा ही कहाँ उन्होंने हर घोषणा को राज्योत्सव जैसे इवेंट में तब्दील होते। यदि कमलनाथ ने कॉमन मैन वाला दुशाला ओढ़ रखा है तो सीएम रहने तक इसे उतारना भी नहीं चाहिए।
मैंने तो जंबूरी मैदान में शपथ वाले सीएम का ऐसा फीकाफस शपथ समारोह पहले कभी नहीं देखा। जलसा कहना तो इस जलेभुने शब्द पर नमक डालने जैसा होगा। ना पानी का इंतजाम, ना बैठने की सुविधा ना पंद्रह साल में हर जलसे में दिल को ठंडक पहुँचाने वाले वो एसी वाले डोम..!
मैं ही क्या लगभग सारा मीडिया मान कर चल रहा था कि आज तो शपथ और बाद में नेताओं के भाषण होंगे, कर्ज माफी वाले वादे पर कह देंगे कि केबिनेट की पहली बैठक में निर्णय लेंगे। इन्होंने तो हद ही कर दी, न तो इकट्ठा हुए हजारों कॉमन मैन के लिए भोजन के पैकेट का इंतजाम किया न मीडिया से पूछा, न खुद ने कुछ खाया और न ही महागठबंधन के नेताओं ने। पता नहीं दो सौ वीवीआयपी के लिए किए खाने के इंतजाम का क्या हुआ।
शपथ निपटा कर नई बिल्डिंग में पहुंचे और पहली फाईल ही क़र्ज़ माफ़ी वाली निपटा दी।ऐसे काम करते रहे तो चला ली सरकार। नए नवेले कॉमन मैन से कुछ तो सीखना पड़ेगा, ठीक है पीएमजी आप के दल के नहीं है, प्रधान सेवक पर अंगुली उठाने वाला अध्यक्ष तो है आप के पास। एक शानदार जलसा प्लान करना था, ये सब भी आप को कहां करना था। बस इवेंट मैनेजमेंट में माहिर अफ़सरों को काम पर लगा देते, प्रदेश के कोने कोने में डोम बनाने वाले मियाँ भोपाल में ही मिल जाते। इंदौर सहित बाकी जिलों के कलेक्टर गर्मी वाले मौसम में भी अतिवृष्टि का अनुमान लगाकर स्कूलों में छुट्टियाँ करा देते, आरटीओ से लेकर बाकी जिलों के परिवहन अधिकारी भी स्कूली बसों का इंतजाम कर देते, हर जिले-तहसील में कार्यकारी अध्यक्षों की जो फौज खड़ी की है उसे भी भीड़ जुटाने का काम मिल जाता। भोजन पैकेट का ठेका किसे देना है, ऐसी सारी झंझटों के आसान हल बताने वाले अफसरों को भी फस्ट इंप्रेशन जमाने का मौका मिल जाता लेकिन आप तो कच्चे खिलाड़ी साबित हुए ।परिवार को शपथ में ले आए ठीक किया लेकिन किसी एक सदस्य को अभी से ट्रेनिंग लेने के लिए तैयार करना ही चाहिए। वैसे भी आप शुगर के मरीज हैं झल्लाना, चिड़चिड़ापन तो रहेगा। आप के अपसेट होने पर परिवार का कोई तो ऐसा सदस्य रहे जिससे बाहर के लोग नफ़े नुकसान की बातें बेतकल्लुफ़ी के साथ कर सके।अफ़सरों को तो सलाहकार के रूप में रख ही रहे हैं, बारासिवनी वाले अपने संजय भैया फुरसत में हैं, नकुल-बकुल भी मामा-अंकल कह लेंगे।
किसान सम्मेलन के जरिए झाँकी जमाने का पहला मौका तो छोड़ ही दिया। बढ़िया सम्मेलन होता, मादल की थाप पर नृत्य, साफे-तीर कमान वाले कुछ फोटो लुभाते, अन्नदाता भी आपके और श्रीमंत के चरणों में लोटपोट होते फिर पूरी ठसक और अंह के साथ होती कर्ज माफी की घोषणा, वचनपत्र के परिशिष्ट और चित्रमय झलकी के साथ प्रदेश का कॉमनमेन देखता-पढ़ता तो वह भी अच्छा महसूस करता।
आप तो दूसरे दिन भी चूक गए…! पुलिस महकमे के बीच बैठे, उनकी सुनी, अपनी सुनाई और पहली ही बैठक में नए साल से पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ की घोषणा भी कर दी। अरे कम से कम खाली ख़ज़ाने का कुछ तो खयाल किया होता, पहले इंदौर पुलिस की तरह बाकी जिलों में पुलिसकर्मियों को कॉमनमेन से वसूली के काम पर तो लगाते, कुछ टारगेट फ़िक्स करते। अपने काम से पुलिस महकमा आप के चेहरे पर मुस्कान देखता, फिर पीएचक्यू में सम्मान का प्लान तैयार होता, वहां फिर प्रजातंत्र के मुखिया के रूप में करते वीकलीऑफ की मुनादी तो कुछ और बात होती।और हाँ पुलिस की वर्दी बदलने की घोषणा मत करना, करना ही हो तो इतना करना कि कॉमनमेन के मन में पुलिस को लेकर जो दहशत है वह गुंडों में ट्रांसफर हो जाए। पुलिसकर्मियों को ऑफ की बात तो अभूतपूर्व कॉमनमेन ने भी कही थी, फर्क इतना है कि आप नए साल का यह तोहफ़ा दे रहे हैं।यह घोषणा तामझाम वाले इवेंट में की होती तो हम भी किसी हेडसाब की बीवी से पूछ लेते सीएम साब की इस घोषणा से कैसा लग रहा है, सीपीआर को भी उस सकुचाते पुलिस परिवार की सीएम गाथा को हाफ पेज में जारी करने का मौका मिलता।
खैर अभी तो संविदा शिक्षक, हेल्थ डिपार्टमेंट, तृतीय-चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से लेकर व्यापारिक-सामाजिक संगठनों से वचनपत्र में किए सैंकड़ों वादे पूरे करना है। हर जिले में जाने कितनी बार पगड़ी पहनाकर, तलवार भेंट कर अभिनंदन समारोह होना बाकी हैं।एक तरह से भूतपूर्व वित्तमंत्री मलैया ने ठीक ही कहा कि जैसा खजाना दिग्विजय सिंह ने हमें सौंपा था वैसा ही खाली खजाना हमने कमलनाथ को सौंप दिया।सुना है आप भी दावोस जा रहे हैं आप के फार्म हाउस में सोयाबीन और बाकी फ़सलें तो नहीं होती है, नहीं तो पता चले कि आप अपना माल बेचने का सौदा कर आए और मप्र का कॉमनमेन यही इंतजार करता रहे कि प्रदेश में उद्योग स्थापित करने के लिए कई एकड़ जमीन सस्ते में लेकर गए महान उद्योगपति बस बच्चों की शादी का निमंत्रण देने ही आते रहेंगे या हमारे बच्चों के रोजगार का इंतजाम भी करेंगे।
दावोस जाने से मप्र का कुछ फायदा होगा कि नहीं ये बताने के लिए ही एक जलसा हो सकता है । जलसे-उत्सव जो भी हो वो सब विश्वस्तरीय ही होना चाहिए बीते सालों में कम से कम इस मामले में तो एमपी का स्टैंडर्ड कायम हुआ है।
कॉमनमेन बने रहना इतना सरल नहीं है, जैसे पहली बार गाड़ी चलाते वक्त क्लच की अपेक्षा पैर स्पीड पर जा पड़ता है वैसे ही घंटी बजाने पर भी जब सेवादारों की फौज दौड़ते हुए नहीं आती तब मन को समझाना पड़ता है अपन अब कॉमनमेन हैं।कॉमनमेन होना अलग बात है और कॉमनमेन के पात्र को अभिनीत करना और अधिक चुनौतीपूर्ण है। कॉमनमेन की चिंता में पंद्रह साल तक ठीक से सो भी नहीं पाए शिवराज सिंह से असली कॉमनमेन ने सारा हिसाब किताब एक झटके में चुकता कर लिया।आप या तो सत्ता में रहते हुए कॉमनमेन को याद रखिए या कॉमनमेन हुए शिवराज सिंह की इस बयान की गंभीरता समझ लीजिए कि पांच साल से पहले लौट सकता हूं सीएम हाउस।

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