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आइए, इस हैट्रिक पर हम सब अपनी पीठ थपथपाएं…

-उज्जैन ने भी चमत्कार कर दिखाया !

(कीर्ति राणा)

वो जो पंक्तियां हौसलाअफजाई के लिए कही जाती है ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती….’ तो इंदौर ने राज्य ही नहीं देश के तमाम शहरों को बता दिया है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार तीसरी बार इंदौर को नंबर वन का खिताब मिलना विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों के साथ शहरवासियों ने जो कदमताल की यह उसी का प्रतिफल है।फ्लेशबेक में ज्यादा दूर न जाएं पांच-दस साल पहले के इंदौर की ही याद कर लें बक्षीगली सांटा मंडी से लेकर सीतलामाता बाजार या सियागंज से संगम नगर ही क्यों इदौर के किसी गली चौराहे पर चले जाते थे, कचरे के ढेर और उस ढेर में मुंह मारते मवेशी, सूअरों के झुंड नजर आते थे, बदलाव आया तो यह कि ऐसे दृश्य अब ढूंढे नहीं मिलते। कचरे के ढेर नहीं रहे, कचरा पेटी नहीं रही तो उफनता कचरा और कचरा उड़ाते वाहन ने भी परकाया प्रवेश कर लिया।

अब सुबह से जो ‘इंदौर हुआ है नंबर वन … गीत बजाते हुए कचरा एकत्र करने वाहन निकलते हैं तो इन वाहनों के गली में पहुंचने से पहले ही गीला-सूखा कचरे वाली बाल्टियां गेट के बाहर रखी नजर आती हैं।चार साल पहले यह असंभव लगता था जो न सिर्फ संभव हुआ बल्कि अब घर घर की आदत बन चुका है।कचरामुक्त सुंदर इंदौर का आलम यह है कि जिस ट्रेंचिंग ग्राउंड पर हजारों टन कचरा बदबू मारता रहता था उस ग्राउंड का ऐसा कायाकल्प हुआ है कि सरकार चलाने वाले अधिकारी उस मैदान पर लंच करते हैं। घर और कॉलोनी के कचरे से अब खाद बनने लगी है।

मप्र में भाजपा सरकार पंद्रह साल रही, राज्य हो या केंद्र, सरकारें योजनाओं के लिए शहरों को पैसा दे सकती हैं, कुछ करके दिखाने की हिम्मत तो शहरों में ही होना चाहिए। लगातार तीन बार इंदौर कैसे नंबर वन बना यह बाकी राज्यों के लिए केस स्टडी का विषय होना ही चाहिए। राज्य सरकार से ज्यादा यह शहर की सरकार का पुरुषार्थ है, महापौर मालिनी गौड़ ने अपने ही दल के नेताओं से बुराई मोल ली लेकिन निगमायुक्त मनीष सिंह को फ्री हैंड देकर रखा। उनकी जगह कोई और निगमायुक्त होता तो पहली बार इंदौर नंबर वन नहीं बन पाता और न ही निगमायुक्त आशीष सिंह हैट्रिक तक पहुंचाने का सिलसिला जारी रख पाते। निगम अमले की मेहनत और हजारों सफाई सेवकों का समर्पण भी शिखर नहीं छू पाता, यदि इंदौर के आमजन का निरंतर सहयोग नहीं मिलता।इंदौर की हैटट्रिक तो रही ही है दो अवार्ड और भी मिले हैं इनमें से एक अवार्ड के लिए तो बोहरा समाज बधाई का हकदार है। समाज के धर्मगुरु डाॅ सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन साहब जब इंदौर आए थे उनकी वाअज के महाआयोजन में जीरो वेस्ट थीम के तहत कचरे को स्पाॅट पर ही रिसाइकल किया गया था।इसके साथ ही तीसरा अवार्ड प्रदेश में एकमात्र इंदौर 5 रेटिंग वाला शहर रहा है।
जब पहली बार इंदौर नंबर वन घोषित किया गया था, तब यकायक विश्वास नहीं होने के कारण यह खिताब आपस में मजाक का कारण भी बना था, यही नहीं विरोधियों ने भाजपा के शुभ लाभ की नजर से भी देखा था। दूसरी बार जब नंबर वन की रेस शुरु हुई तब शहर में यह जुनून पैदा हो चुका था कि हमें ही फिर से नंबर वन आना है और तीसरी बार जब साफसुथरा शहर निगमायुक्त आशीष सिंह और उनकी टीम की निरंतर मेहनत से खूबसूरत भी नजर आने लगा तब इन पेंटिंग-मांडने के सामने से गुजरते हुए हर राहगीर खुद ही फैसला सुनाने लगते थे कि तीसरी बार भी हम ही बनेंगे नंबर वन। राष्ट्रपतिजी ने तो आज विधिवत घोषणा की, इंदौर के राहगीर तो महीनों पहले इस परिणाम की भविष्यवाणी कर चुके थे। खुद महापौर दो दिन पहले ही सफाई मित्रों के सम्मान में भोज आयोजित कर उनका आभार मान चुकी थीं।


तीसरी बार इंदौर नंबर वन घोषित होने का मतलब है हमें हक मिला है अपनी पीठ थपथपाने का। मालिनी गौड़, निगमायुक्त आशीष सिंह सहित उनकी टीम और हजारों सफाई सेवकों के समर्पण भाव का ही नतीजा है कि हम सफाई को लेकर निरंतर जागरुक बने रहे और यही सारे कारण रहे कि देश में हमारा सिर ऊंचा हुआ है।

-उज्जैन की छलांग ने चौंकाया

उज्जैन के लिए 3 से 10 लाख की आबादी वाले शहरों में स्वच्छता सर्वेक्षण में अपने उज्जैन का नंबर वन होना और सारी केटेगरी में चौथे नंबर का शहर होना चौंकाने वाला तो है ही और यह भी साबित करने वाला है कि इंदौर से लगा यह शहर अच्छी बातें अपनाने में अपने पड़ोसी के साथ चल सकता है।अब जबकि रैंकिग में उज्जैन नंबर वन हो गया है तो मुख्यमंत्री कमलनाथ शहर को पवित्र नगरी घोषित करने में भी तत्परता दिखा दें। जनभावना से जुड़ी इस मांग को तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती से लेकर शिवराज सिंह तक ने उचित तो माना लेकिन इस दिशा में ठोस और स्थायी पहल नहीं की, नतीजा यह कि जब सिंहस्थ आता है उससे पहले सीमित दायरे में पवित्र नगरी के प्रावधान लागू कर दिए जाते हैं लेकिन स्थायी निर्णय की हिम्मत आज तक नहीं दिखाई गई। भाजपा सरकार जो नहीं कर सकी उस काम को अंजाम देकर कमलनाथ सरकार शहर के नागरिकों का दिल भी जीत सकती है।

इंदौर की हैटट्रिक के साथ ही उज्जैन का नंबर वन होना इसलिए भी खुश करने वाला है कि बीते साल के स्वच्छता सर्वे में उज्जैन 17वें और उससे पहले 2016 में 12वें क्रम पर था।हमारे प्रयासों में कमी नहीं थी बस सर्वेक्षण से पहले की तैयारियों में जो चूक बीते सालों में होती रही उन खामियों से इस बार सबक लेकर छोटे शहरों वाली रैंकिंग में नंबर वन का खिताब झपटने में आसानी हो गई।रैंकिग में नंबर वन होने का मतलब होता है आम नागरिकों का शहर के प्रति अपने दायित्व की गंभीरता को समझना।नियम हैं, अधिकार हैं तो साथ में दायित्व भी हैं।हैटट्रिक के बाद भी इंदौर की अपेक्षा उज्जैन का विश्वपटल पर खास स्थान है तो महाकाल और सिंहस्थ के साथ बारहों महीने चलने वाले धार्मिक उत्सव, जो देश-विदेश के सैलानियों को सम्मोहित करते हैं। अब जब हम स्वच्छता में नंबर वन हो गए हैं तो अपने उज्जैन को मिले इस गौरव को कायम रखना हम सब का दायित्व भी है।


आम नागरिकों के भरपूर सहयोग का ही नतीजा है कि निगमायुक्त प्रतिभा पाल, उनकी टीम और सफाई मित्रों की मेहनत कामयाबी तक पहुंची साथ ही महापौर मीना जोनवाल की उपलब्धियों में यह तमगा भी चमकेगा।इस नंबर वन को हैटट्रिक में बदलने का सपना भी आम नागरिकों के सहयोग से ही संपन्न हो सकता है, इंदौर की हैटट्रिक भी आम नागरिकों के सहयोग-जुनून से ही संभव हुई है।एक तो उज्जैन नंबर वन बना दूसरा अवार्ड यह कि समस्त कैटेगरी में उज्जैन को देश के शहरों में चौथा स्थान मिला है।

मप्र के खाते में राजधानी भोपाल देश की सबसे स्वच्छ राजधानी घोषित की गई है तो राजधानी का दिल इंदौर सतत तीसरी बार चमका है, इससे उज्जैन के खाते में दर्ज हुई नंबर वन की उपलब्धि का महत्व और बढ़ जाता है।

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