छत्तीसगढ़ राज्यगीत “अरपा पैरी के धार के रचयिता हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ससुर
(होमेन्द्र देशमुख)
छत्तीसगढ़ का राज्यगीत घोषित छत्तीसगढ़ी गीत “अरपा पैरी के धार..” के रचयिता हैं प्रख्यात कवि, साहित्यकार, विद्वान स्वर्गीय डॉ नरेन्द्र देव वर्मा । छत्तीसगढ़ के भौगोलिक अस्मिता का गुणगान और उसकी तुलना छत्तीसगढ़ महतारी के नख-शिख वर्णन बड़े सुंदर और सुसंस्कृत शैली और शब्दों में करने वाले इस गीत को सुन कर आप गीतकार की छत्तीसगढ़ के प्रति मनोदशा को बहुत बेहतर समझ सकते हैं ।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जीवन-संगिनी के पिता ,व इस महान विभूति से कुछ और परिचय आपकी करा दूं । परिचय का यह पहलू अहम इसलिए है कि आज के चतुर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को संवेदनशील भूपेश बघेल बनाने में उनकी अर्धांगिनी और ससुर के रचनाधर्मी संस्कार का भी साया मिला ।
पांच भाइयों में एक डॉ नरेन्द्रदेव वर्मा के तीन भाई रामकृष्ण मिशन के विवेकानंद आश्रम के समर्पित सन्यासी हो गए थे एक और भाई भी विवेकानंद के विचारों से ओतप्रोत उनके अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प ले एक दिन घर छोड़ गए । सम्पन्न किसान , मांढर के पास बरबन्दा में शिक्षक धनीराम वर्मा के घर मे बचा एक मात्र पुत्र नरेंद्र देव पर परिवार की जिम्मेदारी आन पड़ी ,और सन्यासी बन जाने के डर से उन्हें उम्र के अठारवें साल में विवाह-बंधन में बांधकर गृहस्थ बना दिया गया । स्वामी विवेकानंद के संस्कृति, मातृभूमि प्रेम का पूरे परिवार पर असर तो था ही , उसी संस्कार और देशप्रेम ने उन्हें छत्तीसगढ़ की माटी से प्रेम करने वाले ,रचनाधर्मी, लोककर्मी ,मंचीय प्रस्तोता विद्वान ,लेखक, ग़ज़लकार ,कवि, उपन्यासकार, समीक्षक डॉ नरेन्द्रदेव वर्मा ‘कातिल रायपुरी’ बना दिया ।
उनके लिखे इस प्रसिद्ध गीत “अरपा पैरी के धार” को प्रसिद्ध माटी-गायक ,कवि लक्ष्मण मस्तूरिहा के मधुर देहाती आवाज ने इसे 80 के दशक में घर-घर पहुँचा दिया और आज यह गीत हर छत्तीसगड़िहा के जुबान पर आत्मगौरव का मीठा रस केवल घोलती नही बल्कि , रस-धार बहा देती है ।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के जीवन का यह पक्ष लोककला से इस तरह जुड़ा था कि छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के यशस्वी और अमर प्रस्तोता स्व. महासिंह चंद्राकर के रात भर चलने वाले लोकनाट्य ‘सोनहा बिहान’ के वे प्रभावशाली कलाकार और सूत्रधार हुआ करते थे । हालांकि इस कार्यक्रम से उनके जुड़ने की बड़ी रोचक कहानी भी है वह आपको फिर कभी सुनाऊंगा । मंचीय प्रस्तुति में नरेंद्र देव का स्वर, श्रोताओं और दर्शकों को अपने सम्मोहन में बांध लेता था ।
40 साल की अल्पायु में जब उस रचना-स्वर-धर्मी की स्वयं की आवाज की गूंज जब अकस्मात बंद हुई , तो उन्हीं की ये पंक्ति आकाश व धरती पर जैसे गूँजने लगीं –
“दुनिया ह रेती के महाल रे, ओदर जाही ।
दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही ।
आनी बानी के हावय खेलउना, खेलय जम्मो खेल ।
रकम रकम के बिंदिया फुंदरा, नून बिसा लव तेल ।
दुनिया ह धुंगिया के पहार रे, उझर जाही ।
दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही ।”
रामाएन मोर गांव नाम के लंबी कविता में उन्होंने , छत्तीसगढ़ के गांव और राम के वनवास स्थल की भूमि का बहुत सुंदर वर्णन किया है । महानदी, इन्द्रावती, पैरी, शिवनाथ, पैरी, अरपा, जोंक नदियों के साथ-साथ सिहावा के पर्वत , बस्तर के मुड़िया- माड़िया आदि , इन सबका मोहक और विस्तृत वर्णन भी है । उनके इस रचना में ह्रदय में छत्तीसगढ़ के प्रति अपार प्रेम का सागर लहराता है । 1979 में इस हिंदी और छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार, दार्शनिक, विचारक इस लोक को छोड़ गए । रायपुर के जिस रामकृष्ण आश्रम में जहां डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा के बड़े भाई सन्यासी ,स्वामी आत्मानंद जो आश्रम के कर्ताधर्ता थे , वहीं युवा भूपेश बघेल का आना-जाना था ।आश्रम में आते- जाते स्वामी आत्मानंद युवक भूपेश बघेल के राजनीतिक महत्वाकांक्षा विचारों और जोशीले अंदाज से प्रभावित थे । एक दिन उन्होंने अपने रिश्ते में भतीजी यानी डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा की पुत्री मुक्ति ‘मुक्तेश्वरी ‘ से उनके विवाह का प्रस्ताव रख दिया । बड़ों की रजामंदी से इस जोशीले ऊर्जावान युवा भूपेश बघेल का मुक्तेश्वरी से विवाह संपन्न हो गया ।
स्वामी जी ने शायद उनके संभावनाओं को पहचान लिया था । इस तरह पढ़े लिखे कृषि कार्य में दक्ष खाते पीते दाऊ घराने के एक स्वस्थ सुंदर युवक को उन्होंने इसी गीतकार नरेंद्र देव की बेटी ,मुक्तेश्वरी के लिए वर चुना । यही युवक बाद में राजनीति में सक्रिय होकर पार्टी और प्रशासन में कई पदों को प्राप्त किया । वे चढ़ती जवानी में ही संयुक्त मध्य प्रदेश में कई पदों पर बैठे पहले संयुक्त मध्यप्रदेश सरकार और बाद में स्वतंत्र छत्तीसगढ़ में कैबिनेट मंत्री बन गए । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और आज स्वतंत्र छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री बन गए ।
अपनी आक्रामक शैली के लिए प्रसिद्ध भूपेश बघेल को धर्म और साहित्य के संस्कारों से समृद्ध जीवन संगिनी मिली । विवाह के बाद भी उनका बौद्धिक रूप से उत्तरोत्तर विकास हुआ । आज वैचारिक स्तर पर श्री भूपेश बघेल की गिनती छत्तीसगढ़ के गिने चुने गंभीर ,संवेदी और जन-नेताओं में होने लगी है । निश्चित रूप से उनके इस विकास मे कवि-लेखक नरेन्द्रदेव जी के परिवार से मिली विपुल वैचारिक पूंजी का पर्याप्त हाथ है ।
पिछले साल के राज्योत्सव में उनके इस गीत ” अरपा पैरी के धार …” को थीम-सांग बनाकर तत्कालीन सरकार ने भी अपना गौरव बढ़ाया था । छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 19 वीं वर्षगांठ पर इस वर्ष राज्य सरकार ने उनके इस अमरगीत को राज्य-गीत घोषित कर अपने स्वयं के साथ-साथ , उस विद्वान -कवि-लेखक- साहित्यकार को सही सम्मान दिया है । यह सम्मान किसी पारिवारिक गठजोड़ का परिणाम नही ,बल्कि छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधिगीत का सम्मान है ।
चलते-चलते :
किसी भी देश के राष्ट्र-गीत के अलावा राज्यों के भी अपने गीत की परंपरा चल पड़ी है । मध्यप्रदेश में पत्रकार-लेखक महेश श्रीवास्तव ने भी सरकार के कहने पर मप्र-गान ‘मेरा मध्यप्रदेश’ तैयार किया जो कि सचमुच मध्यप्रदेश के गौरव और अस्मिता की प्रतिनिधि रचना कही जाती है । छत्तीसगढ़ राज्य ने भी इस रत्नगर्भा धरती के भौगोलिक और सांस्कृतिक गुणों के गान करने वाले इस गीत को यथोचित सम्मान देकर छत्तीसगढ़ महतारी के आरती करने का भी मौका दिया है ।