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तो यूपी में 2019 में 40 सीटों पर हार जाएगी भाजपा!

लखनऊ। कैराना और नूरपुर के उपचुनाव में बीजेपी को करारी हार के बाद एंटी बीजेपी गठबंधन को और मजबूती मिली है। गोरखपुर और फूलपुर में करारी हार के बाद भाजपा को ऐसा जख्म मिला है, जिस पर मरहम लगाना अमित शाह और नरेंद्र मोदी के बस की बात नहीं है।

साथ ही विपक्ष को ऐसा फॉर्म्युला मिला है, जिसके प्रयोग के बाद बीजेपी की हार और उनकी जीत पक्की दिख रही है। कैराना में भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से हार गईं। यह सीट उनके पिता हुकुम सिंह की असमायिक मौत के बाद खाली हुई थी। यहां विपक्ष की साझा उम्मीदवार तबस्सुम हसन से पराजित हो गईं। नूरपुर में भी अवनि सिंह अपने पति की सीट नहीं बचा सकीं। नूरपुर से सपा के नईमुल हसन ने बीजेपी से यह सीट छीन ली। अपनी हार को न पचा पा रही भाजपा के नेता राजनाथ सिंह ने कहा कि लंबी कूद के लिए कदम पीछे लेने होते हैं। 2019 तक बीजेपी इसी तरह कदम पीछे लेती रही तो दोबारा सत्ता की राह मुश्किल हो जाएगी। अगर विपक्ष लामबंद रहा तो अगले चुनाव में बीजेपी उत्तरप्रदेश में 40 सीट हार सकती है।

काश! गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनाव नहीं होते
कैराना और नूरपुर के नतीजों के बाद बीजेपी को यह समझ में आ गया होगा कि इस हार की कहानी गोरखपुर और फूलपुर में ही शुरू हो गई थी। गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के दौरान बहुजन समाजवादी पार्टी ने समाजवादी पार्टी को बिना शर्त समर्थन दे दिया था। नतीजे आए तो बीजेपी को दोनों सीटें गंवानी पड़ी । इन दोनों सीटों पर भाजपा के तीन से साढे़ तीन लाख वोट कम हो गए। 2014 के आम चुनाव के दौरान फूलपुर में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य 52 फीसदी वोट पाकर जीत दर्ज की थी। विधानसभा चुनाव में भाजपा को तीन चौथाई बहुमत मिलने के बाद वह उपमुख्यमंत्री बन गए मगर वह अपनी सीट पर पार्टी को नहीं जिता पाए। ऐसा ही हाल गोरखपुर में हुआ। गोरखपुर पीठ से जीत की घोषणा करने वाले आदित्यनाथ सांसदी छोड़कर सीएम बन गए, मगर अपनी पारंपरिक सीट गंवा बैठे।

कर्नाटक में दिखी थी विपक्ष की एकता, कैराना में हुआ असर
23 मई को कर्नाटक में एच डी कुमारास्वामी की ताजपोशी के दौरान करीब 15 दलों के नेता एक मंच पर दिखे। 1989 के बाद से यह पहला मौका था, जब उत्तर से दक्षिण तक के राजनीतिक दल केंद्र में विराजमान सत्ताधारी दल के खिलाफ एक मंच पर दिखे हैं। विपक्षी एकता के बीज जितने प्यार से बोए गए, उससे लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी बनाम पूरा विपक्ष होने वाला है।

गठबंधन धर्म : लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 10 सीट!
चर्चा यह थी कि 2014 में अपनी सारी लोकसभा सीट खो चुकीं मायावती समाजवादी पार्टी से समझौते के तहत यूपी में सिर्फ 2 सीट जीतने वाली कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं थीं। मगर सोनिया गांधी ने बसपा सुप्रीमो को गले लगाकर यूपी में 10 सीटें पक्की कर लीं। बता दें कि कर्नाटक की यह तस्वीर लोकसभा चुनाव के दौरान ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ की तर्ज पर पोस्टर में भी दिखेगी।

जानिए, क्यों मुश्किल में आएगी बीजेपी
अगर यूपी में सपा, बसपा, आरएलडी और कांग्रेस साथ चुनाव में उतरे तो क्या होगा? बीजेपी को तगड़ा नुकसान होगा। कैसे होगा, यह जानने के लिए 2014 के वोट शेयर की चर्चा कर लें। 4 साल पहले बीजेपी को उत्तरप्रदेश में 42.30 फीसदी वोट मिले थे। भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में 71 सीटें जीतीं थीं। हालांकि उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर में वह हार गई। समाजवादी पार्टी को सीधे दो सीटों का फायदा हुआ। वोट शेयर में समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर थी, उसे 22.20 पर्सेंट वोट मिले थे और उसे 5 सीटों से संतोष करना पड़ा था। एसपी ने 18 सीटें गंवाई थीं। बीएसपी को 19.60 फीसद वोट मिले थे और उसे 20 सीटों का नुकसान हुआ था। यूपी में 7.50 पर्सेंट वोट पाने वाली कांग्रेस को 19 सीटों से हाथ धोना पड़ा। पार्टी सिर्फ अमेठी और रायबरेली में ही जीत सकी थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में हालात थोड़े बदले। बीजेपी के वोट प्रतिशत में कमी आई, मगर विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया।बीएसपी के वोट शेयर में 3 फीसदी का इजाफा हुआ। समाजवादी पार्टी के वोट शेयर उतना ही रहा, जितना 2014 में था। कांग्रेस के वोट कम हुए

गठबंधन के बाद क्या होगा?
विधानसभा चुनाव के वोट शेयर के हिसाब से देखें तो विपक्ष के पास 52 फीसदी वोट शेयर है। बीजेपी और उसके सहयोगी अपना दल के पास कुल 50 पर्सेंट वोट हैं। 2 पर्सेंट की कमी से बीजेपी करीब 40 सीटें गंवा सकती है। यानी कोई मैजिक न हो तो मोदी विरोधियों का पलड़ा भारी है। वैसे भी इस बार कई दलों के लिए जीवन का सवाल है।

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