भोपाल गैस कांड : पीड़ितों-परिजनों को रोजगार और शहर को जन-सुविधा की सौगात वाली स्मारक होगी मृतकों को सच्ची श्रद्धांजलि
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]
मध्यप्रदेश । भोपाल यूनियन कार्बाइड के आम लोगों के लिए प्रतिबंधित ,गैस कांड के बाद बंद पड़े कारखाने के सामने 9 जून 2005 को फुल बॉडी मास्क पहन कर खड़े ग्रीन-पीस के ये कार्यकर्ता यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि फैक्ट्री के अंदर गैस कांड के 20 साल बाद भी कितना जहरीला रसायन पड़ा है और वह आसपास और पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक हो सकता है । तब ऐसे बॉडी मॉस्क या पीपीईटी किट पहनना बड़ा अटपटा लग रहा था । 2004 में ICMR की पहली रिपोर्ट आई थी जिसमें कई विषयों के साथ फैक्ट्री में रखे कुछ अनुपयोगी पावडर नुमा रसायन व फैक्ट्री के आसपास पानी जमीन और हवा को किस कदर यह प्रदूषण लील चुका था इसकी भी चर्चा की गई थी । पूरे साल बेसमेंट में पड़े कुछ रॉ स्टॉक की सफाई कर बोरियों में बंद जा रही थी ।
जून 2005 में मप्र सरकार अचानक सक्रिय हुई और तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने एक दिन फैक्ट्री के अंदर जाने का फैसला ले लिया । 17 मई 2005 को एक गैस पीड़ित संगठन ने आसपास बढ़ रहे प्रदूषण और उचित निष्पादन को लेकर थाली बजाई और लगभग एक महीने बाद जून महीने में ग्रीन-पीस के इन कार्यकर्ताओं द्वारा यूका परिसर में फैले कचरे को कितना जहरीला है यह बताने के लिए बॉडी मास्क पहनकर सरकार और जनता को बताने के लिए ऐसा प्रदर्शन करना पड़ा था । तब यह प्रदर्शन मीडियाकर्मी होने के बावजूद मुझे भी थोड़ा अतिशयोक्ति लगा था । पर आज कोरोना वायरस के इस दौर में मास्क, पीपीईटी किट कारगर हो रहा है और तब उस यूनियन कार्बाइड में आज भी जहरीले और घातक कचरे या प्रदूषण के इन संगठनों के दावों को नकारना मुश्किल हो जाता है । 15 साल पहले का यह चित्र आज और भी उस सच के करीब जान पड़ता है । कोरोना के संक्रमण का खतरा आज उसकी गम्भीरता का एहसास कराता है ।
यूनियन कार्बाइड परिसर को म्यूजियम ,मेमिरयल या स्मारक बनाने की कई दलीलें दी जाती रही हैं । न भी स्वीकार करे, पर परिसर,आसपास और परिसर के जमीन के अंदर तक फैल चुके जहरीले असर को नजरअंदाज करना सरकार के बस में भी नही । कोर्ट से मुक्त हो जाने के बाद भी ऐसे में यहां या इस जमीन को खाली करवाकर कोई निर्माण कार्य करना बड़ा ही दुष्कर कार्य है ।
मैंने इस सम्बंध में कई दलीलें भाषण दावे सुने हैं पर मुझे लगता है कि अगर अदालती कार्यवाही से मुक्त और सरकार को उपलब्ध हो जाए तो बाहरी किनारे को छूते पर अब शहर के बीच आ चुके उस जमीन को शहर के लोगों के जनहित के किसी योजना को समर्पित करना चाहिए । उसके लिए सबसे उचित है भोपाल का नया बस स्टैंड । और साथ मे गैस पीड़ितों को समर्पित स्मारक नुमा प्रतीक ।
नादरा बस स्टैंड में कम होती जगह , ट्रैफिक का दबाव , बस स्टैंड को शहर से थोड़ी दूर लेकिन शहर से जुड़ी जगह की ही जरूरत पड़ती है । ताकि लोग शहर से जुड़ भी सकें और बाहर निकल कर हाइवे भी पकड़ सकें ।
विकास के नाम पर पब्लिक यूटिलिटी सर्विस जिसमे परिवहन और बस और रेलवे स्टेशन को सरकारें शहर से कोसों दूर कर देती है । नतीजा शहर और परम्परागत व्यवसाय ,रहवासियों को दिक्कतें । जिससे लोगों का बाहरी इलाके में पलायन और बाहर से शहर के पुराने इलाकों में आने वालों को अनावश्यक किराया भाड़ा के खर्चे , परेशानी ,असुरक्षा । भोपाल शहर में इंदौर सागर नागपुर आदि सभी बाहरी शहरों से बस से आने वाले या यहां से गुजरकर आगे जाने वाले मुसाफिरों को खराब सड़कों , कचरे के ढेरों से गुजरते बाहरी इलाकों के बाईपास सड़कों से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है । उसी में सरकार अपनी सफलता मानती है । जबकि सफलता तो शहर के बीच से होकर शहर की खूबसूरती दिखाते ऐसे यात्रियों को ट्रैफिक का उचित समाधान और रास्ता देने से है । इंदौर के लिए चल रही स्मार्ट बसें आज इसी लिए यात्रियों के लिए तरस रही हैं । उन्हें बस में बैठकर न तो शहर दिखता है न खूबसूरत बड़ा तालाब । न राजा भोज की प्रतिमा , भोपाल ब्रिज न ही वी आई पी रोड की लेक- ड्राइव ।
यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री की जमीन भोपाल के बस स्टैंड के विस्तार के लिए मुफीद जगह हो सकती है यही मृतकों को सच्ची श्रद्धांजलि और इस भीषण हादसे से सबक लेने का सच्चा स्मारक होगा । अगर विशेषज्ञ सरकार और गैस पीड़ित संगठन मिलकर प्रयास करें तो आसपास चमन और विकास का एक मॉडल सचमुच नई सोच का उदाहरण बन सकता है ।
जहरीले कचरे का पूर्ण निष्पादन , बाहरी एवं सुरक्षित जल की सौ प्रतिशत आपूर्ति से यह काम सम्भव हो सकता है । करोंद बायपास से लगी कृषि एवं सब्जी मंडी से जुड़ी और शहर के अंदरूनी हिस्सों के एकदम करीब लेकिन बाहरी इलाकों से आकर और निकलकर सागर इंदौर से लिंक इस जगह को उपयोगी बना सकता है ।
वहीं गैस पीड़ितों और उनके परिजनों को यहां के हर व्यवसाय , दुकान, व्यवस्था में अनिवार्य सहभागी बनाकर उनके जीवन को भी सँवारा जा सकता है । पर सरकार ‘सरकार’ होती हैं । 2 मिनट के सालाना सरकारी मौन के आयोजन के बाद हम सबका साल भर के लिए फिर मौन हो जाना मृतकों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि नही हो सकती । आइये ये मौन तोड़िये ।
आज बस इतना ही…!
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )