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सभ्यता मिटाने के लिए विरासत के प्रतीकों पर हमला : महज़ आक्रोश नही – बड़ी रणनीति

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]

 

 

मनुष्य का विकासक्रम असल मे उसकी सभ्यता और संस्कृति का ही विकास क्रम है । जहां पश्चिम में विकास का केंद्र विश्विद्यालय है वहीं पूरब में उसकी सभ्यता और संस्कृति का विकास का क्रम उसके इतिहास ,देवालय और पूजा स्थल रहे हैं । मनुष्य और पशु में इतना फर्क है कि ‘पशु’ जन्म से पशु होता है और हजार दस हजार साल पहले जब उसकी उतपत्ति के समय जैसा था , 2020 में भी पशु के किसी बच्चे की स्थिति भी आज वैसे ही रहेगी । उसे अपने इतिहास , अपने सभ्यता की अनुपस्थिति में अपना जीवन फिर नए सिरे से शुरू करना पड़ता है ।

मनुष्य और पशु में यही बड़ा फर्क है कि जब मनुष्य का बच्चा जन्म लेगा तब वह विकासक्रम में उससे भी आगे बढ़ेगा जहां उसका पिता या उसके पिता की पीढ़ी अभी है । कोई पिता सोच ले कि बच्चे को अपनी अब तक की शिक्षा और अपनी सभ्यता के बारे में कुछ भी नही बताएगा , बल्कि अगर यह ठान ले कि पिछले बीस साल की बात भी वह अपने बच्चे से छुपा लेगा तो वह बच्चा अपने जीवन मे बीस हजार साल पहले की सभ्यता में पीछे चला जायेगा ।
भारत की संस्कृति और सभ्यता यहां के गुरुकुल ,संत, इतिहास , आश्रम ,धार्मिक स्थलों से संचालित होता था । ऐसे में यहां आए आक्रांताओं ने भारत के पतन के लिए , इन्ही ऐतिहासिक सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों के अस्तित्व को समूल मिटाने के लिए उसे नेस्तनाबूद किया । यही हमेशा से आक्रमणकारियों की कुशल रणनीति भी होती है ।

वह देश पतन के रास्ते पर जाने लगता है , जिसका इतिहास और इतिहास के निशान मिट जाए । मकसद , नई पीढ़ी से अपनी विरासत से तारतम्य तोड़ नए परिमाण का नींव रखना । ताकि हजारों साल बाद केवल इसी नये परिमाण को उस सभ्यता का इतिहास माना जाए ।

राम भारत भूमि में सनातनी और हिंदुओं का ईश्वर ही नही बल्कि सभ्यता है । जिसे कभी मिटाने के सफल प्रयास हुए । सफल..? हां । यह कड़वा सच है । अगर कड़वा सच न होता तो राष्ट्र की सरकार को राम के अस्तित्व को काल्पनिक कहने का साहस नही होता । यही आक्रांताओं की सफलता थी ।

एक व्यक्ति के जीवन चक्र में बचपन का बहुत कीमती स्थान होता है । हर प्रौढ़ को अपना बचपन, बड़ा कीमती और सुहाना याद आता है । अगर स्वतंत्रता मिल जाए तो वह फिर वहीं लौट जाए । अयोध्या और मथुरा राम और कृष्ण के बचपन और वात्सल्य की यादों और उनके जीवन के आरंभ की कहानी और उसके इतिहास का प्रतीक हैं । मनुष्य को अपने जन्म या बचपन की बातें याद न हो तो उसका होना नही होना गौण मालूम पड़ता है । वही अनुभव अपनी सभ्यता के शैशव काल का भी है ।

वर्तमान अस्तित्व का मूल, अपनी संस्कृति और मान्यताओं के शैशव काल और उसके इतिहास में छुपा होता है और उस पर चोट से, उसे मिटा देने से आने वाली पीढ़ियों को मनचाही दिशा, धर्म ,विचार , शाखा ,धारा ,आदि मे मोड़ा जा सकता है । यह एक वृहद आक्रमण का शुरुआती दांव और उसका आधार हिस्सा होता है । बाद में बाकी काम पीढ़ी दर पीढ़ी स्वतः चलते जाता है । अतिक्रमण का वह कड़वा बीज फिर साल दर साल पीढ़ी दर पीढ़ी सदा फलित होता रहेगा ।

वनस्पति शास्त्र में जिसे आजकल कलम पद्धति कहा जाता है । “जामुन के जड़ के ऊपर आम के शाख की कलम रोप दो । वह जामुन कभी दावा नही कर पायेगा कि जड़ से वह जामुन है और न ही वह नई आम की शाख याद नही रख पायेगा कि वह जामुन था ।”

मनुष्य आज जितना दिमाग वाला दिखता है वह पहले भी था । कई सभ्यताएं विकसित होकर मिट गईं । अकेले हम ही आज कोई होशियार पीढ़ी नही हैं । यह हमारा धोखा है ।

जमीदोज जड़ पर किसी और की शाख रोपनी से कोई अपना वर्तमान तो फलदार बना लेता है पर जिस दिन उस जड़ के गर्भ से नई कोंपलें पुनः प्रस्फुटित होंगीं । बाहर दिखता छद्म आवरण अपने मूल अस्तित्व से भी हाथ धो बैठेगा….

 

आज बस इतना ही…!

 

 

                                                           ( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )

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