MP में मुस्लिम वोट: राहुल की मन्नतें होंगी पूरी या चलेगा मोदी का बोहरा कार्ड?
मध्य प्रदेश की सियासत में मुस्लिम मतदाता उत्तर प्रदेश, असम और बंगाल जैसे राज्य की तरह भले ही निर्णायक भूमिका में नहीं है. बावजूद इसके कांग्रेस-बीजेपी दोनों दलों की नजरें इनके वोटों पर है. यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मोती मस्जिद में जाकर मन्नतें मांग रहे हैं. वहीं, राज्य में लगातार चौथी बार कमल खिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोहरा मुस्लिमों के आगे सजदा कर रहे हैं.
आठ फीसदी मुस्लिम मतदाता
मध्य प्रदेश में करीब 8 फीसदी मुसलमान हैं. राज्य में करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं. इसके अलावा एक दर्जन सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है. बावजूद इसके राज्य में विधानसभा के 230 विधायकों में सिर्फ एक ही मुस्लिम विधायक है.
मुस्लिम मतदाता आमतौर पर कांग्रेस का समर्थक समझा जाता था, लेकिन जब 1967 में गैरकांग्रेसवाद की राजनीति शुरु हुई और मुसलमानों को भी विपक्ष में कांग्रेस का विकल्प दिखाई दिया तो उसने अपना रुख बदलना शुरु कर दिया. हालांकि मध्य प्रदेश में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ सका.
इंदौर पेश से वकालत कर रहे शादाब सलीम कहते हैं कि मध्य प्रदेश में मुस्लिमों के सामने कांग्रेस के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. इसीलिए मुस्लिम न चाहते हुए भी कांग्रेस को वोट देने के मजबूर हैं. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. प्रदेश का बोहरा समाज बीजेपी के साथ है.
शिवराज का धर्मनिरपेक्ष छवि
बता दें कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने की कोशिश की है. शिवराज ईद के दिन मुस्लिम टोपी पहनकर मुसलमानों को गले लगाते हैं, रमज़ान महीने में अपने घर पर मुसलमानों को इफ़्तार की दावत भी देते हैं. शिवराज की छवि के दम पर ही बीजेपी को मुसलमानों का करीब 15 फीसदी वोट मिलता रहा है.
शिवराज सरकार ने भोपाल में हज हाउस, उर्दू विश्वविद्यालय के लिए ज़मीन आंवटन, मुस्लिम लड़कियों को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का लाभ देना, हज़ारो मुस्लिम बुज़ुर्गों को तीर्थ दर्शन योजना के अंतर्गत अजमेर शरीफ की यात्रा शुरू कराई है.
‘मुस्लिम मजबूरी में कांग्रेस के साथ’
शादाब सलीम ने शिवराज सिंह चौहान के चलते मुसलमानों के एक बड़ा तबका एमपी में बीजेपी को वोट करता रहा है. इसके पीछे एक वजह ये भी रही कि कांग्रेस कभी जीतती हुई नहीं दिख रही थी. पिछले 15 साल में कांग्रेस पहली चुनाव लड़ती हुई नजर आ रही है. इसके अलावा मॉब लिंचिग जैसी घटनाओं ने मुसलमानों को कांग्रेस की ओर झुकने को फिर से मजबूर कर दिया है.
मध्य प्रदेश में मुस्लिम वोट किंगमेकर नहीं
राजनीतिक विश्लेषक हिदायतउल्ला खान कहते हैं कि मध्य प्रदेश में मुस्लिम मतदाता दूसरे राज्यों की तरह किंगमेकर की भूमिका में नहीं है. हालांकि कुछ सीटे जरूर हैं, जहां वो निर्णयक भूमिका अदा करते हैं. भोपाल और बुरहान सीट को छोड़ दें बाकी कोई सीट ऐसी नहीं है, जहां वो अपने वोटों से जीत सके.
उन्होंने कहा कि मुसलमानों के बीजेपी के साथ होने की कोई संभावना नहीं है. मुसलमानों को बीजेपी में शिवराज का नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का चेहरा दिखता है. भोपाल से अलग आवाज आती है और दिल्ली से कुछ और. ऐसे में जो कुछ शिवराज के चेहरे पर बीजेपी को वोट मिलता था. इस बार वो भी मिलना मुश्किल है.
मुस्लिम बहुल सीट
राज्य के 51 जिलों में से 19 जिलों में मुस्लिम आबादी 1 लाख से ज्यादा है. भोपाल में संख्या बल के आधार पर सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता है. जबकि फीसदी के लिहाज से बुरहानपुर में सबसे ज्यादा हैं. भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा 60 फीसदी और बुरहानपुर सीट पर 50 फीसदी मुस्लिम मतदाता है.इंदौर-1, इंदौर-3, भोपाल मध्य, उज्जैन और जबलपुर सीट पर 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है.
खंडवा, रतलाम, जावरा और ग्वालियर सीट पर 20 से 25 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता है. शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, नसरुल्लागंज, इछावर, आष्टा और उज्जैन दक्षिण सीट पर 16 फीसदी वोटर हैं.
MP में मुस्लिम प्रतिनिधत्व
मध्य प्रदेश में पिछले 15 साल से आरिफ अकील एकलौते विधानसभा पहुंचने वाले विधायक हैं. कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर लगातार वो जीत हासिल कर रहे हैं. जबकि 1962 में सबसे ज्यादा सात मुस्लिम विधायक बने थे. इसके बाद से लगातार मुस्लिम प्रतिनिधत्व घटता चला गया. 1972 में 6, 1957-1985 और 1998 में 5-5 और 1967, 1977 और 1990 में 3-3 मुस्लिम विधायक रहे. 1985 और 1990 में बीजेपी के टिकट पर एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
बीजेपी से मुस्लिम रह चुके विधायक
बता दें कि मध्य प्रदेश में 1985 और 1990 में बीजेपी के टिकट पर भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत हासिल कर चुके हैं. इसके बाद बीजेपी 1993 में बीजेपी ने गनी अंसारी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वो अपनी जमानत नहीं बचा सके थे. इस हार के चलते बीजेपी ने 2013 में 20 साल बाद किसी मुस्लिम (आरिफ बेग) को भोपाल उत्तर से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वो अपनी जमानत भी नहीं बचा सके. जबकि कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 4 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से आरिफ अकील ही जीत सके थे.