अजीत जोगी – कभी हार न मानने वाला योद्धा
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेन्द्र देशमुख[/mkd_highlight]
सन 2000 के पहले और कुछ सालों बाद तक अजीत जोगी का 10 जनपथ मे मसीहा वी जार्ज थे । बाद में खुद जार्ज हासिये पर चले गए और आगंतुक नए लोगों ने अजीत जोगी की दूरियां कांग्रेस के उस एकमात्र पावर सेंटर से बढ़ा दी । कहते हैं वक्त खराब हो तो साया भी साथ छोड़ देता है । कई साये ने उन्हें अपनी छांव देना बंद कर दिया । पर जोगी जी आसानी से अपने रास्ते होने वाले नही थे । पार्टी से बेआबरू की स्थिति से बचने के प्रयास मे लगे रहे । जब कोई तुरूप का इक्का भी नही बच पाया और अंततः उनको पार्टी छोड़नी पड़ी ।
मै जोगी जी से 1993 मे पहली बार सिमगा चौराहा में एक चाय नाश्ता के दुकान साहू होटल पर मिला था । मैं उस समय छत्तीसगढ़ के पहले , संतोष जैन जी के टीवी न्यूज एजेंसी की टीम का हिस्सा था ।
मैंने उन्हें अपना परिचय दिया । उन्होंने सहृदय कहा – ‘भजिया खालेव गरम गरम निकले हे । ‘ तब , जब छत्तीसगढ़िया बोली को कई शहरवासी केवल गंवारों की बोली मानते थे , और वे राज्यसभा सदस्य थे, ऐसे मे जोगी जी के मुंह से छत्तीसगढ़ी बोली सुनकर बड़ा सु:खद आश्चर्य हुआ । मै अब तक उनको इसाइयों के प्रतिनिधि के रूप मे सुना और वही जानता था ।
बाद में राष्ट्रीय प्रवक्ता रहते रायगढ़ लोकसभा 1998 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उनके चुनाव प्रचार को एआईसीसी के इंटरनल क्रू मेम्बर के रूप में भी कवर किया ,वहीं मैंने एक रिपोर्टर के रूप में उनका पहला इंटरव्यू भी किया ।
1967 में डॉ खूबचंद बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ भ्रातृत्व संघ गठन कर राष्ट्रपति से पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग , बाद में चले कई व्यक्ति, संगठन, आंदोलनों- धरनों और 1994 में विधायक गोपाल परमार द्वारा मध्यप्रदेश विधानसभा में पारित अशासकीय संकल्प के बाद एक नया मौका छत्तीसगढ़ को मिलने का अवसर आया ।
अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में 31 जुलाई 2000 को लोकसभा और उसी 9 अगस्त को राज्य सभा मे मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक पारित होकर 25 अगस्त 2000 को भारत के राष्ट्रपति के आर नारायणन के हस्ताक्षर होते ही अधिनियम बना और पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने की बधाई गाये जाने लगे ।
मध्यप्रदेश विधानसभा में अक्टूबर के पहले सप्ताह में विशेष सत्र बुलाकर केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के पक्ष में आभार ज्ञापन किया गया । बड़ा भावुक क्षण था । भोपाल के नई विधानसभा में सदन की कार्यवाही भावनात्मक भाषणों में डूब गया । मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के निकलते आंसू भी मैंने अपने कैमरे में कैद किया ।
पर दिग्विजयसिंह के आंसू अब ज्यादा निकलने वाले थे ।क्योंकि पृथक राज्य में आ रहे 90 विधायकों वाले राज्य में 60 विधायक कांग्रेस के थे और यहां भी नई सरकार कांग्रेस की ही बनानी थी ।
ज्वलंत सवाल था- कौन बनेगा मुख्यमंत्री. ?
आज से 20 साल पहले सन 2000 में तीन नए राज्यों का गठन हुआ था । मैं उस समय स्टार न्यूज़ का कैमरामैन था । मेरे संवाददाता संदीप भूषण, सहारा टीवी के ब्रजेश राजपूत, ज़ी टीवी के राजेंद्र शर्मा ,आजतक के श्री राजेश बादल सहित भोपाल के हम सब कई मीडिया कर्मी तीन दिन पहले से रायपुर पहुच गए ।
31 अक्टूबर 2000 ,इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि के दिन ही शाम से छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के मौके पर आधिकारिक जश्न की तैयारी रायपुर के पुलिस परेड ग्राउंड में शूरू हो गई थी । स्वतंत्र मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के पैतृक घर से चंद फासलों पर ,इसी मैदान में अगली सुबह नए राज्य छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री का शपथ होना था लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा यह निर्णय अभी भी नही हो पाया था । कुछ दिन से चली आ रही कयास बाजी और अनुमान आज नेताओं के जूतम पैजार तक पहुच चुकी थी । दिल्ली दरबार मे खिचड़ी तो पक चुकी थी लेकिन हांडी कौन उतारे इस पर अभी भी शंशय था । दिल्ली को भी सीधा, अजीत जोगी का नाम घोषित करने की हिम्मत नही हो रही थी । विद्याचरण शुक्ल के अलावा दूसरा कोई नाम सामने नही आ रहा था , मोतीलाल वोरा भी नही । कहने को तो बटवारे में आये छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी विधायकों को ही अपना नेता चुनना था लेकिन दस जनपथ में आदेश का इंतज़ार कर रहे मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दोपहर 2 बजे केवल अजीत जोगी का नाम मिला । स्थानीय विधायकों के साथ समन्वय कर दिल्ली की हांडी रायपुर में उतारने का दायित्व दिया उन्हे ही दिया गया था ।
किं कर्तव्य विमूढ़..! ‘आश्चर्य किंतु सत्य’ । अनहोनी के संकट से घिरे , बिना सवाल किए दिल्ली से पर्यवेक्षक गुलाम नवी आज़ाद के साथ माना एयरपोर्ट पहुचे दोनो नेता शाम चार बजे विद्या भैया के फार्महाउस घुस गए । उन्ही को मनाना ज्यादा जरूरी था । पर विद्याचरण शुक्ल के समर्थक इस प्रक्रिया से सहमत नही थे ।
हम सब शंकर नगर मार्ग में नहर किनारे नए सीएम के लिए पुनरसज्जित तत्कालीन कलेक्टर बंगले में भोपाल से निकले कई विधायकों सहित बाकी सारे विधायकों के आने का इंतज़ार कर रहे थे । इस बंगले में कभी आई ए एस , पूर्व सांसद कांग्रेस नेता , दस जनपथ के कोर टीम के सेनानी अजीत जोगी बतौर कलेक्टर कभी रह चुके थे ।
अचानक खबर आई कि यहां आने से पहले विद्या भैया के फार्महाउस में दिग्विजय सिंह जी का किसी ने कुर्ता फाड़ दिया ।
फटाफट वहां पहुँचे तो दिग्विजय सिंह गाड़ी में बैठकर रवाना होते दिखे । पीछे पीछे दिग्विजय के कैबिनेट में तब तक स्वास्थ मंत्री रहे अशोक राव तमतमाते हुए पीछे आते दिखे ।
अंदर जाकर विद्या जी से कथित घटना की जानकारी लेने मीडिया की भीड़ लग गई ।
बात कुछ नही-कुछ नही कह कर आई गई हो गई लेकिन वहां से लौटकर कुछ विधायकों के साथ मीटिंग शाम तक होती रही । और शंकर नगर मार्ग पर नए मुख्यमंत्री के लिए सजे उसी बंगले में देर शाम प्रेसवार्ता कर जोगी जी का नाम स्वतंत्र छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में घोषित कर दिया गया ।
विभाजन से पूर्व ,1998 में संयुक्त मप्र के तत्कालीन ग्यारहवीं विधानसभा में कांग्रेस की दिग्विजय सरकार बनाने में छत्तीसगढ़ के कांग्रेस से बहुतायत में जीत कर भोपाल गए विधायकों का हाथ था । यहां के जालम सिंह पटेल, रविन्द्र चौबे , धनेश पाटिला, अशोक राव, सत्यनारायण शर्मा, भूपेश बघेल आदि को महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी देकर मंत्री पद से तब मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने नवाजा था । यहां के ये विधायक दिग्विजय सिंह के बड़े विश्वासपात्र बन चुके थे , बल्कि भोपाल में तो मप्र के दूसरे क्षेत्र के विधायक दिग्विजय कैबिनेट को मज़ाक और ताने मारकर छत्तीसगढ़ केबिनेट कह देते थे । मैं उसका सशक्त गवाह भी था ।
दिग्विजय सिंह से यही नजदीकी ने पृथक छत्तीसगढ़ में नए मुख्यमंत्री के मनोयन से चयन में , सम्भावित ज्यादा विरोध को बढ़ने नही दिया और जोगी जी ने अगली सुबह इस नए नवेले राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और साथ ही भारत के राज्यों का भौगोलिक और राजनैतिक मानचित्र बदल गया ।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप मे उन्होंने निजी ,राजनैतिक और प्रशासनिक रूप से कितने भी गलत लगने वाले कार्यों को अंजाम दिया होगा । लेकिन छत्तीसगढ़िया होने के गौरव का एहसास यहाँ के लोगों को बखूबी करवाया । बहुत हद तक नाटकीय, उनके छत्तीसगढ़ प्रेम ने बाहरी लोगों के हौसले पस्त भी किये । उन्होंने इस भावना से भरपूर राजनैतिक दोहन किया । मुख्यमंत्री बनने के बाद जोगी सरकारी संसाधनों और सभाओं से मास लीडर बनने लगे और बहुत हद तक बने भी । लेकिन शह – मात, पूछने- मनाने, ‘रहस्मयी रूप से मिले से मिले मुख्यमंत्री के पद और ढाई साल के अपने पहले लॉटरी रूपी कार्यकाल के बाद भी 2003 के चुनाव मे वह अपने दम पर स्वतंत्र छत्तीसगढ़ की पहली चुनी कांग्रेसी सरकार बनाने से चूक गये । क्योंकि इस कार्यकाल की कुुछ गलतियों और अर्थ लोलुप कार्यों ने उन्हें सरासर ठग-जोगी मान लिया । उनके प्रति लोगों का दोबारा विश्वास जागा नही । ऐसे मे उनको कांग्रेस के पंजा वाले तिरंगे रूपी छाया के बिना अपना सफर जारी रखना आसान नहीं था। बीजेपी की तब सत्ताधारी पार्टी तो हर तरह से यही चाहती थी, दुश्मन को कमज़ोर करो और राज करो । पर बिना जोगी के, पिछले पंद्रह सालों से अंगद के पांव की तरह पैर जमा कर बैठे बीजेपी को कांग्रेस कोई मुकाबला दे पाएगा इस पर 2018 के समर में भी संदेह था । संदेह यह भी था कि बिना युद्ध कौशल वाले सेनापति के कांग्रेस का जंग कौन लड़ेगा । उसी 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले पार्टी से अलग होने के बाद कई थके, बहिस्कृत, उपेक्षित और कुछ बागी जरूर जोगी जी से चिपकते से दिखे । जोगी जी की मजबूरी भी होगी कि उनको गले लगाए ,स्वाभाविक है , सबसे ज्यादा ऐसे लोग उसी कांग्रेस से ही थे । क्योंकि वही जानते भी हैं कि एक जोगी ही ऐसे सेनापति तो हैं ही कि जब तक हार न हो बेहतरीन जंग लड़ेंगे । उनके बारे में लोगों को हमेशा यही लगता था कि जोगी जी जीते तो ठीक , नही अगर हार ही गये तो जीतने वालों से कोई गुप्त संधि तो कर ही लें ।
सत्ता से दूरी, बीजेपी से कथित गलबहियां और अपनी पुरानी पार्टी के कई पुराने लोगों से खुला रस्सा-कशी का खेल का अंत , अलग पार्टी के गठन के बाद भी उनके निधन तक शायद खत्म हो , वरन जोगी तो युद्घ के मोर्चे पर बिगुल लेकर वह हमेशा खड़े ही दिखे ।
मध्यप्रदेश अजीत जोगी की ससुराल है । आज उनके निधन से छत्तीसगढ़ ने अपने राजनीतिक आंगन के एक बुलंद योद्धा के साथ मध्यप्रदेश ने अपना दामाद भी खोया है । इस बहाने 27 साल पहले उनसे हुई मेरी पहली मुलाकात और आज से 20 साल पहले बने नए राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण की यह घटना फिर याद आ गई ।
क्योंकि मौका भी है और दस्तूर भी…
आज बस इतना ही..
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )