133 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने 91 साल के मोतीलाल वोरा
— राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद हुआ निर्णय
— अधिकांश नेताओं ने अध्यक्ष पद जिम्मेदारी लेने से किया था इंकार
— वारो का राजनैतिक साफर काफी लंबा,मप्र से की थी शुरूआत
दिल्ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 (133 साल पहले) की गई थी। 133 साल पुरानी पार्टी का नए अध्यक्ष के 91 साल के मोतीलाल वोरा को बनाया गया है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया और गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष बनाने की मंशा जाहिर की थी ,उसके बाद ही मोतीलाल वोरा को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया है।
20 दिसंबर 1928 को राजस्थान के नागौर में पड़ने वाले निंबी जोधा में मोतीलाल वोरा का जन्म हुआ। परिवार राजस्थन से मध्यप्रदेश आ गया यहां रायपुर में परिवार के साथ रहते हुए पढ़ाई की फिर आगे की पढाई के लिए कोलकाता चले गए। पढ़ाई के बाद मोतीलाल वोरा की रूचि पत्रकारिता में रही उन्होंने नवभारत टाइम्स यानी नभाटा समेत कई अखबारों में खबरे लिखी। सायकल से चलने वाला पत्रकार ने जनता में अच्दी पकड बनाई। इसी दौरान वोरा राजनीति में भी सक्रिय हो गए,उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से 1968 में दुर्ग से पार्षद का चुनाव लडें ओर जीतेगए। 1972 कांग्रेस में आ गए और विधानसभा चुनाव लडकर पहलीबार मप्र विधानसभा पहंचें।
-मप्र के सीएम कैसे बने वोरा
9 मार्च, 1985 को अर्जुन सिंह ने अपने नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद दोबारा मुख्यमंत्री-पद की शपथ ली. 10 मार्च. अर्जुन मंत्रिमंडल की सूची कांग्रेस हाईकमान से मंजूर करवाने के लिए दिल्ली गए, पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें पंजाब का गवर्नर बनने का आदेश दिया. जाते-जाते ये जरूर कहा कि अपनी पसंद के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का नाम बता दो। फिर 14 मार्च को पंजाब पहुंच जाओ। अर्जुन सिंह कमरे से बाहर निकले और जिस जहाज से आए थे, उसको तुरंत भोपाल वापस भेजा, पुत्र अजय सिंह को फोन किया, तुरंत वोरा को दिल्ली लाने के आदेश दिए। रास्ते में जो हुआ वो मजेदार है. वोरा अजय से खुद को कैबिनेट मंत्री का पद दिलाने की सिफारिश कर रहे थे, पर उन्हें क्या पता था कि वो यहां मंत्री पद के लिए लगे हैं, वहां दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद उनका इंतजार कर रहा है. एयरपोर्ट से वोरा सीधे मध्यप्रदेश भवन पहुंचे। वहां अर्जुन सिंह, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उनका इंतजार कर रहे थे, खाने के बाद चारों फिर रवाना हुए पालम हवाई अड्डे। वहां राजीव गांधी रूस की यात्रा पर जाने को तैयार बैठे थे। राजीव ने वोरा को पास बुलाया. और बोले वोरा उस वक्त प्रदेश अध्यक्ष थे। उनकी जगह ये पद मिला दिग्विजय सिंह को, सब अर्जुन के हिसाब से हुआ. कहते हैं अर्जुन की विदाई का मन राजीव ने पहले ही बना लिया था। उन्हें नई जिम्मेदारी देने की बात भी कह दी थी, तभी अर्जुन के कहने पर राजीव ने उन्हें 10 मार्च को मुख्यमंत्री की शपथ लेने की छूट दी। ताकि ये न लगे कि उन्हें एमपी की राजनीति से बाहर किया जा रहा है.
अर्जुन सिंह के पहले कार्यकाल (1980-1985) के दौरान जबलपुर के सांसद मुंदर शर्मा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे] उनके कार्यकाल में सागर की सांसद और वेटरन कांग्रेसी सहोदरा बाई राय का निधन हो गया. उपचुनाव हुए तो बीजेपी के रामप्रसाद अहिरवार ने बाजी मारी. हार की तोहमत मुंदर पर मढ़ी गई. इसके कुछ ही दिनों उनका निधन हो गया. फिर तलाश शुरू हुई नए अध्यक्ष की. दो नाम सामने आए. विधानसभा के स्पीकर राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल और उच्च शिक्षा मंत्री मोतीलाल वोरा] मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने वोरा का नाम भेजा और वह बन गए।
-सोनिया गांधी के खास
1998 के चुनाव में छत्तीसगढ़ की राजनंदगांव सीट जीते. दिल्ली पहुंचे तो पाया कि राव-केसरी युग बीत चुका है। अब सोनिया का समय था, वोरा ने राजीव के दिनों की वफादारी याद की और सोनिया खेमे में भी एंट्री पा ली. सोनिया को भी ऐसे ओल्ड गार्ड की जरूरत थी, जिसकी जरूरत से ज्यादा राजनीतिक महात्वाकांक्षा न हों। वोरा वैसे ही व्यक्ति थे, वैसे भी 1999 के लोकसभा चुनाव में रमन सिंह के हाथों हारने के बाद उन्हें पुनर्वास की जरूरत थी. सोनिया ने 2002 में उन्हें राज्यसभा भेज दिया. हालांकि इससे दो साल पहले साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ बना तो सीएम के दावेदारों में अजीत जोगी और श्यामाचरण के साथ उनका भी नाम उछला। वोरा लगभग दो दशक पार्टी के कोषाध्यक्ष और गांधी परिवार के खास रहे. बढ़ती उम्र का हवाला देकर राहुल ने 2018 में उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त किया. इतने लंबे सांगठनिक कार्यकाल के दौरान वोरा ने अपने बेटे अरुण वोरा को सियासत में जमाने की कोशिश की। अरुण 1993 में जीत के बाद लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारे, मगर 2013 में फिर पापा की बदौलत टिकट मिला और इस बार चुनाव जीतने में वह सफल रहे। 2018 विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें एक बार फिर पार्टी ने रायपुर में डेरा जमाने को कहा, ताकि बीजेपी के इस कमोबेश अभेद्य हो चुके किले को ध्वस्त किया जा सके।