भोपाल गैस कांड : “भाया” के चेहरे पर गैस कांड दिखता है पर वो उस दिन शहर में था ही नहीं
(होमेंद्र देशमुख)
68 साल के इस खौफनाक चेहरे वाले शख्श को भोपाल रेलवे स्टेशन के 4 नम्बर प्लेटफार्म के ब्रिज से गुजरने वाले हर यात्री ने पिछले 30 सालों में देखा ही होगा । स्टेशन बजरिया में रहने वाले लक्ष्मी प्रसाद यादव उर्फ “भाया” , सालों से पुल के ऊपरी सीढ़ियों पर बैठकर ढपली की थाप देकर भीख मांगते रहे हैं । पर आपको आश्चर्य होगा ,ये गैस पीड़ित नही हैं । स्टेशन पर शटरिंग का काम करने वाले बांका जवान लक्ष्मी 1984 में किसी दुर्घटना में बुरी तरह घायल हुए और सालों के इलाज के बाद बमुश्किल बचे । 2 और 3 दिसम्बर 1984 की रात जब भोपाल के यूनियन कार्बाइड में #गैस कांड(Bhopal disaster ) के बाद तब भोपाल रेलवे स्टेशन में सबसे ज्यादा प्रभावितों और गैर प्रभावितों की भीड़ थी ,क्योंकि सब को शहर छोड़ने की जल्दी थी ।
खुशकिस्मत लक्ष्मी प्रसाद यादव उन दिनों शहर के बाहर थे । उनका कहना है ,वे अपने बिगड़ चुके चेहरे के साथ लौटे तो पूरा शहर श्मशान सा था । बहुत लोगों के नाम पीड़ितों में लिखे जा रहे थे । सालों तक राशन कार्ड के आधार पर कई असली तो कुछ फर्जी भी उस लिस्ट में शामिल हुए । पर ‘भाया’ का दावा था कि उसने कभी भी अपना नाम नही लिखवाया , क्योंकि वह उस दिन शहर में ही नही था । सहसा स्टेशन में ‘भाया’ को देखकर भोपाल गैस कांड की याद आ जाती है लेकिन उनका कहना है कि वह गैस पीड़ित ही नहीं । सालों तक यही धोखा मुझे भी हुआ और मैं स्टेशन आते-जाते उसे डफली बजाकर भीख मांगते लक्ष्मी प्रसाद उर्फ ‘भाया’ को देख कर गैस की उस विभीषिका की भयावहता को याद कर लेता था ।
25-26 दिसम्बर 1993 की अल-सुबह घने कोहरे के धुंधले साये में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से इसी स्टेशन पर उतरकर मैंने पहली बार भोपाल की ज़मीं पर पैर रखा । तब मैं मात्र 22 साल का था । भोपाल और #गैसकांड(Bhopal gas tragedy) के बारे में काफी कुछ सुन रखा था । स्टेशन के बाहर निकलते यात्रियों और आटो वालों के संवादों के बीच 4 नम्बर प्लेटफार्म की ऊपर वाली पहली सीढ़ी पर ढपली बजाकर भीख मांगते इसी “भाया” को देख कर मुझे महज 9 साल पहले हुए भोपाल गैस कांड की भयावहता का अहसास हुआ ।
यही वो दिन थे जब मप्र की राजधानी भोपाल में एक टीवी टीम के सबसे जूनियर सदस्य होने के नाते मुझे टीवी पत्रकारिता और समाचार संकलन का अनुभव मिला । सप्ताह भर में ही मुझे कवरेज के वीडियो को भोपाल दूरदर्शन के समाचार केंद्र में पहुँचाने और शीघ्र प्रसारण को सुनिश्चित करने के लिए टीम में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे सदस्य होने के कारण विभिन्न कवरेज के रिपोर्ट -लेखन, की मेरी शरूआत हो गई । 1994 के जनवरी भर भोपाल और उसके आसपास कई कवरेज किये और समाचार भी बनाए ।
आज गैस कांड की 35 वीं बरसी पर उसी आदमी “भाया’ से मेरा सामना हुआ जिसे मैं तब गैस पीड़ित समझता था । वह गैस पीड़ित होने से साफ इंकार कर गया ।
नवंबर 2000 को एनडीटीव्ही के कैमरामैन की हैसियत से भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के , अजायब घर से लगे कार्यालय गया । गैस पीड़ितों के इस संगठन के नेता अब्दुल जब्बार से मैं पहले प्रदर्शनों में मिल चुका था , लेकिन उनके इस आफिस में उनसे मेरी पहली मुलाकात थी । आश्चर्य भी लगा ,महिला गैस पीड़ित संगठन के पुरुष नेता ..! पर वहां जाकर पता चल गया कि वे पीड़ित महिलाओं को सिलाई और गृह उद्योग से जोड़ने का काम करते हैं ।
खैर कैमरा रखकर उनकी कुर्सी ठीक करी ,उन्हें बहुत पाकीजगी से हाथ लगाया ,दोनो बाहें पकड़कर उनको कैमरे की जरूरत के हिसाब से एंगल पर घुमाया,और क्षमा मांगते हुए यह भी बताया कि उनका ऐसे बैठने से कैमरे पर वो कैसे दिखेंगे ।
इंटरव्यू खत्म होने पर उन्हें निवेदन कर कुर्सियां वापस उनके सही जगह रखी और मैं भी बैठ गया ।
मेरी इन हरकतों को गौर से ऑब्जर्व कर रहे अब्दुल जब्बार ने मेरे संवाददाता संदीप भूषण को पूछा – लड़का नया आया है क्या ..!
संदीप भूषण और मेरे वाजिब जवाब के बाद उन्होंने कहा – तुम जैसा संवेदनशील मीडिया कर्मी या कैमरामैन ज्यादा देखा नहीं । तुम बहुत ऊपर जाओगे । तुम कैमरामैन के साथ—साथ एक अच्छे इंसान भी हो । हम वहां से निकल गए । उसके बाद अब्दुल जब्बार भाई से कई मुलाकातें विभिन्न गैस कांड कवरेज पर होती रही । विभिन्न मौकों पर यूनियन कार्बाइड के अंदर भी आते जाते रहे ।
गैसकांड की पच्चीसवीं बरसी पर एक टीवी प्रोग्राम बनाने के दौरान विशाल जनरेटर और लगभग 70 छोटी-बड़ी लाइटों से उसी कातिल यूनियन कार्बाइड के खतरनाक जबड़े यानी उन्ही पाइप लाइनों के एक एक पाइप को हम दो कैमरामैन ने रौशन किया ,जिनसे प्लांट में गैस नसों में खून की तरह बहती थी । उस टैंक नं 610 को भी करीब से जाना । यह एक यादगार मौका था । इससे पहले और न ही आज 35 सालों बाद भी वीरान पड़े उस संयंत्र का ऐसा रौशन मंजर किसी ने नही देखा होगा । यह मेरे लिए एक यादगार अवसर भी था ।
सालें गुज़रती गईं ,पीड़ित भी नरक जैसी जिंदगी से महाप्रयाण की ओर सिधरते गए । बहुत लोगों को बिस्तर पर तड़पते कैमरे पर शूट किया । बहुत लोगों के साक्षात्कार रिकॉर्ड किये ।
पर अब्दुल जब्बार जी आप हमेशा मेरी “अलहदा यादों ” में जिंदा रहेंगे ।
और हां…! “भाया” आप भी….।