लँगड़ी सरकार की बैसाखी लेकर ना भाग जाए भाजपा
–कमलनाथ की माया, हीरा को भरमाया, उज्जैन को तरसाया
मंत्रिमंडल गठन में भले ही जातीय-गुटीय संतुलन बनाए रखने में कमलनाथ ने राहुल गांधी का भरोसा जीत लिया हो लेकिन मनावर से जीते जयस के डॉ हीरा अलावा को शामिल न कर जयस से जुड़े हजारों समर्थकों में खलनायक हो गए हैं। कांग्रेस पर विश्वास करने वाले उज्जैन के ग्रामीण मतदाताओं ने मान लिया है कि उनके साथ विश्वासघात किया गया है। ऐसा न हो कि बसपा-सपा-निर्दलियों की बैसाखी पर टिकी सरकार को लँगड़ी कहने वाले भाजपा के रणनीतिकार बैसाखी झपटकर भाग जाएं।
(कीर्ति राणा )
कमलनाथ के मंत्रिमंडल में सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने, नए चेहरों को आगे लाने, जातिगत समीकरण का ध्यान रखने और करणी सेना के आंदोलन वाले तेवर को ठंडा करने के लिए क्षत्रिय समाज का मान बढ़ाने वाली कूटनीति वाला कदम कहा जा सकता है लेकिन इस मंत्रिमंडल में मालवा निमाड़ के प्रमुख जिले उज्जैन को और मुसीबत के दोस्त डॉ हीरा अलावा (जयस) को (पहली बार चुने विधायक के कारण) प्यार के बदले बेवफ़ाई के गीत गाने को मजबूर कर दिया है।
उज्जैन जिले में 7 में से 4 सीटें कांग्रेस को मिली है जिनमें दो विधायक दिलीप गुर्जर, रामलाल मालवीय तो तीसरी-चौथी बार जीते हैं लेकिन किसी एक को भी मौका नहीं दिया गया, ऐसा ही परिणाम देने वाले इंदौर में भी 8 में से 4सीटें कांग्रेस को मिलने पर यहां से 2विधायकों जीतू पटवारी को मंत्री बनाया गया है।यूँ देखा जाए तो सज्जन वर्मा, राजवर्द्धन सिंह, उमंग सिंघार, बाला बच्चन के इंदौर में ही रहने से इस शहर का दबदबा बढ़ गया है।एक जमाना शिवराज सिंह चौहान का था सत्ता में आने से बेदखल होने तक वे मेरे सपनों का शहर वाला ढोल तो खूब पीटते रहे लेकिन लक्ष्मण सिंह गौड़, कैलाश विजयवर्गीय के बाद न तो सर्वाधिक मतों से जीते रमेश मेंदोला को और न ही अपने प्रिय महेंद्र हार्डिया को मंत्री बनाया।ताई-भाई के झगड़े की आड़ में अपनी खुन्नस निकालते रहे।मंत्रिमंडल के लिए चयनित विधायकों में मनावर से जीते जय युवा आदिवासी संगठन के डॉ हीरा अलावा के साथ भी धोखा ही हुआ है।कांग्रेस को खरगोन-धार-झाबुआ से लेकर बैतूल तक में आदिवासी सीटों पर जो अप्रत्याशित सफलता मिली है उसमें जयस के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। जयस के मजबूत नेटवर्क को समय रहते भाजपा तो पहचान नहीं पाई लेकिन डॉ आनंद राय और डॉ अलावा की राहुल गांधी से मुलाकात, विवेक तन्खा से निकटता और दिग्विजय सिंह को दी गई जयस से सामंजस्य बिठाने की ज़िम्मेदारी के बाद जैसे तैसे डॉ अलावा मनावर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने पर तब राजी हुए जब कांग्रेस की जीत पर मंत्री बनाने का आश्वासन मिला। आज जब मंत्रिमंडल वाले विधायकों की लिस्ट जारी हुई तो चिकित्सा शिक्षा मंत्री पद की मांग कर रहे डॉ अलावा मुंगेरी लाल के हसीन सपने वाला किरदार हो कर रह गए। भाजपा ने बीते पंद्रह वर्षों में आदिवासियों के साथ धोखा किया या नहीं लेकिन अब तो खुद डॉ अलावा ही कह रहे हैं कि उनके साथ कांग्रेस ने धोखा किया।
114 सीटों वाली कांग्रेस यदि मप्र में सरकार बना पाने की स्थिति में है तो जयस, बसपा, सपा और निर्दलीय के भरोसे के कारण। निर्दलीय प्रदीप जायसवाल के साथ तो वादा निभाया किंतु मंत्री अर्चना चिटनीस को हराने वाले निर्दलीय ठाकुर सुरेंद्र सिंह शेरा भिया के मान सम्मान का खयाल नहीं रखा।कमलनाथ के इस मंत्रिमंडल में विधायकों के चयन को देखकर यह कहने में संकोच नहीं कि इस सरकार के सूत्र संचालन में दिग्विजय सिंह ही पॉवरफुल रहेंगे। उन्होंने अपने बेटे जयवर्द्धन के साथ भतीजे प्रियव्रत को मंत्री बनवाकर भाई लक्ष्मण सिंह को लोकसभा लड़वाने की जमावट अभी से कर ली है, वे विधानसभा से इस्तीफा दें तो बहुत संभव है वहां से अजय (राहुल) सिंह को मैदान में उतार दिया जाए।
उज्जैन की अनदेखी से यह मान लेना चाहिए कि कांग्रेस की झोली में चार सीट डालने वाले उज्जैन जिले का प्रदेश की राजनीति में इतना दखल नहीं है कि जिले से किसी को मंत्री पद लायक समझा जाए। दिग्विजय सिंह के 1993 से 2013 के दस साल में इंदौर ने भी ऐसा ही दंड भुगता था, शेडो सीएम के रूप में महेश जोशी की तूती बोलती थी। तब उज्जैन में भी महावीर राज चलता था। अब कमलनाथ के हाथ में कमान है तो तंत्र से जुड़े मामलों में सफलता के लिए उज्जैन के लोगों को ऊँ बम बटुकाय नम: का जाप करते रहना पड़ेगा ! पहली बार जीते संजय शुक्ला, विशाल पटेल (इंदौर), उज्जैन में तराना और बड़नगर से पहली बार जीते महेश परमार, मुरली मोरवाल को निवास पर ‘विधायक’ की नाम पट्टिका लगाकर ही संतोष करना पड़ेगा लेकिन नागदा-खाचरौद से चौथी बार विधायक बने दिलीप सिंह गुर्जर और घट्टिया से तीसरी बार विधायक बने रामलाल मालवीय जीतू पटवारी से तो अधिक अनुभव रखते हैं विधानसभा का। जो भी उनके गॉडफ़ादर हैं उन्होंने इनके नाम सूची में शामिल किए जाने को लेकर सिंधिया जैसा दबाव क्यों नहीं बनाया? शाजापुर से जब हुकम सिंह कराड़ा लिए जा सकते हैं तो उज्जैन इतना गया-गुजरा तो है नहीं। वह भी तब जब लोकसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है।भाजपा तो यहां से नए चेहरे को उतारने का मन बना चुकी है कांग्रेस ने लुटे-पिटे किसी हरल्ले को मैदान में उतारने की गलती की तो उज्जैन के साथ मंत्रिमंडल में हुए अन्याय का गुस्सा कांग्रेस को भारी पड़ेगा।
उज्जैन जिले को प्रतिनिधित्व नहीं देकर एक तरह से कमलनाथ सरकार ने महाकाल की कृपा दृष्टि को नकारने का ही काम किया है।ऐसे में यदि शिवराज सिंह खुद को महाकाल का अनन्य भक्त कहते हैं तो आमजन को उनकी यह अगाध श्रद्धा उचित भी लगती है।जब कमलनाथ सांसद रहे तब ही उनका महाकाल के प्रति मोह-आस्था नहीं रही तो सीएम बने बाद अचानक प्रेम उमड़ पड़े यह संभव नहीं। खैर महाकाल के पास तो सबका हिसाब किताब है ही।
कमलनाथ क्या वाकई दिग्विजय सिंह के मनमाफिक निर्णय ले रहे हैं या प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्हें किसी ने यह जानकारी भी नहीं दी कि जिस उज्जैन जिले से कांग्रेस को चार सीटें इस बार मिली हैं, 2013 में सातों सीटों पर भाजपा जीती थी। फिर तो कमलनाथ को यह जानकारी भी नहीं होगी कि दिग्विजय सिंह के समय उज्जैन शहर से कांग्रेस की प्रीति भार्गव और राजेंद्र भारती चुनाव जीते जरूर थे लेकिन उन्हें भी इसी आधार पर मंत्री पद नहीं मिला था कि पहली बार के विधायक हैं।तब पॉवर सेंटर महावीर वशिष्ठ हो गए थे तो अब कांग्रेस नेता बटुक शंकर जोशी से अजय होटल पर मेलमुलाकात वाले मजे में रहेंगे।इस पहली सूची में ही मालवीय या गुर्जर किसी का नाम होता तो बात कुछ और होती, ये सब केबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। अब देखना है कि राज्य मंत्री के रूप में जो दस संसदीय सचिव बनाना प्रस्तावित है उस सूची में भी उज्जैन को स्थान मिलता है या नहीं।
इस मंत्रिमंडल को लेकर जयस, सपा, बसपा से लेकर निर्दलियों के प्रेशर कुकर में खदबदाता असंतोष अभी से सीटी मारने लगा है, कहीं ऐसा न हो कि पहले दिन से निर्दलीय के समर्थन से मजबूत दिखने की कोशिश कर रही सरकार को लंगड़ी कहने वाली भाजपा बैसाखी झपट कर भाग ना जाए। वैसे भी शिवराज सिंह अपने को भूतपूर्व नहीं सीएम (कॉमन मैन) मान कर ही मैदान में नए जोश के साथ कुलाँचें मार रहे हैं।-पहली परीक्षा विस अध्यक्ष चुनाव में, सत्र 11तक
लँगड़ी सरकार से जुड़े निर्दलीय विधायकों की नाराजी कितनी है इसका पता 7 जनवरी को चल जाएगा। प्रोटोकॉल स्पीकर के रूप में गोपाल भार्गव या केपी सिंह विधायकों को शपथ दिलाएँगे। परंपरा रही है कि स्पीकर के लिए प्रतिपक्ष भी सत्तापक्ष का समर्थन करता है। अभी जिस तरह कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीय, डॉ अलावा आदि ने तेवर दिखाएँ हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी (संभवत:) एनके प्रजापति के सामने कांग्रेस को परेशानी में डालने के लिए भाजपा भी प्रत्याशी उतार सकती है। दोनों पक्ष के विधायक वोटिंग करेंगे।इन निर्दलियों पर नजर रहेगी किसे वोट करेंगे, भाजपा इस वोटिंग के लिए इन्हें तोड़ने का प्रयास करेगी तो कांग्रेस मनाने का।सौदेबाज़ी में जो बाजी मारेगा विस अध्यक्ष पद पर उस दल का प्रत्याशी जीत जाएगा।
पहले विधान सभा सत्र दो दिन का था लेकिन अब यह पांच दिन चलेगा, 7 को विधायकों की शपथ, 8 को राज्यपाल का अभिभाषक और 11 को समापन तक अनुपूरक बजट पर चर्चा होगी।