लोकसभा चुनाव में भाजपा उतारेगी नए चेहरे
-बहुत हुईं महाजन, अब मालवीय भी नहीं
(कीर्ति राणा)
विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 66 सीटों पर अप्रत्याशित हार से भाजपा गहरे सदमे में है लेकिन इस हार से सबक लेकर वह लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। दूध की जली भाजपा की हालत छाछ भी फूंक फूंक कर पीने जैसी हो गई है। इस हार का लोकसभा सीटों पर वोट के हिसाब से फिर विपरीत असर ना पड़े इसलिए जनप्रिय चेहरों की तलाश से यह संकेत भी मिल रहे हैं कि अब इंदौर से वर्तमान सांसद सुमित्रा महाजन और उज्जैन से सांसद चिंतामणि मालवीय के नाम पर विचार नहीं होगा।
विधानसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद चल रही मंथन बैठकों में यह तथ्य भी सामने आए हैं कि यदि दो-तीन बार से विधायक रहे व्यक्ति के स्थान पर नए कैंडिडेट को आज़माया जाता तो आराम से 10 सीटों पर आशानुकूल परिणाम मिल सकते थे।संघ की सर्वे रिपोर्ट से लेकर अमित शाह के जासूसों द्वारा सौंपी रिपोर्ट को भी नजर अंदाज कर दूसरी सूची में जिस तरह वंशवाद, पुत्र मोह और क्षेत्रीय क्षत्रपों के दबाव में आकर नाम तय किए गए उनमें से ही अधिकांश जगह हार का मुंह देखना पड़ा है।
विधानसभा चुनाव में इंदौर के परिणामों को लेकर खुद भाजपा के दिग्गजों का अनुमान था कि कांग्रेस को अधिकतम दो सीटें मिल सकती हैं लेकिन 3 ग्रामीण और एक शहरी मिलने से दोनों दलों के पास 4-4 सीटें हैं।इन चार सीटों पर कांग्रेस को मिली सफलता के कारण सुमित्रा महाजन नाम टेंडर झोन में माना जा रहा है।
इसी तरह उज्जैन में सांसद चिंतामणि मालवीय के टोटल परफ़ॉर्मेंस को संगठन इतना प्रभावी नहीं मानता कि फिर से चुनाव लड़ाया जाए।इसी के साथ हाल के विधानसभा चुनाव में आलोट सहित जिले की 8 में से 5सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई है ।लोकसभा में आलोट रतलाम क्षेत्र में शामिल रहती है। ऐसे में उज्जैन 7 विधानसभा सीटों में से 4 कांग्रेस के पास आ गई हैं (घट्टिया, बड़नगर, तराना और नागदा-खाचरौद) भाजपा के पास 3 सीटें रही हैं(उज्जैन उत्तर, दक्षिण और महिदपुर) आलोट में भी कांग्रेस जीती है।
पिछले विधानसभा चुनाव ‘13 में इंदौर जिले में भाजपा के पास 7 और कांग्रेस के पास एक राऊ सीट थी जबकि उज्जैन जिले में सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा था। इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में पिछली बार महाजन और मालवीय को मोदी लहर का भरपूर लाभ मिला था, अब मोदी के पक्ष में वैसी लहर तो फिलहाल है नहीं, जीएसटी-नोटबंदी के विपरीत प्रभाव को विधानसभा चुनाव में पराजित रहे भाजपा प्रत्याशी खुल कर स्वीकार रहे हैं।दोनों जिलों में 4-4 सीटें कांग्रेस के पक्ष में जाने को लेकर इन दोनों सांसदों की चुनाव भूमिका भी प्रभावी नहीं मानी गई है।
इंदौर में अभी की स्थिति में 2 सीटों पर तो विजयवर्गीय का ही प्रभाव है क्षेत्र क्रमांक 2 (रमेश मेंदोला) और 3 नंबर (आकाश विजयवर्गीय)।आकाश को तीन नंबर से टिकट नहीं मिले इसके लिए महाजन खेमे ने एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन विजयवर्गीय बेटे का टिकट तो लेकर आए ही, उषाठाकुर को महू से लड़ना पड़ा। जैसे आकाश की जीत महाजन खेमा पचा नहीं पाया है उसी तरह विजयवर्गीय खेमा भी महाजन के विरोध को भुला नहीं पाया है। सुमित्रा ने जिद करके सांवेर में राजेश सोनकर, एक नंबर में सुदर्शन को टिकट तो दिलवा दिया लेकिन जितवा नहीं सकीं, जबकि संगठन सांवेर में टिकट बदलना चाहता था।यही हाल उज्जैन जिले में सांसद मालवीय का रहा, उनके बोलवचन को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजी के साथ ही पूरे क्षेत्र में फैले जात बिरादरी वाले वोटरों ने अपनी नाराज़गी प्रत्याशियों के खिलाफ वोट डाल कर निकाली।
– तब लाखों की लीड और अब!
लोकसभा चुनाव में इंदौर से आठवीं बार चुनाव जीत कर लोकसभा स्पीकर बनीं सुमित्रा महाजन 4.50 लाख वोटों से जीती थीं। इस बार आठों विधानसभा में भाजपा को कुल 95380 वोट की बढ़त मिली है।तब और अब वोट के इतने भारी अंतर पर भाजपा यह कह कर भी मन नहीं समझा सकती कि हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है।
इसी तरह उज्जैन संसदीय चुनाव में डा चिंतामणि मालवीय करीब 3 लाख वोटों से जीते थे। इस विधान सभा चुनाव में इंदौर की ही तरह 4 सीटें कांग्रेस को मिली हैं। जहां तक संसदीय क्षेत्र की सभी सीटों पर भाजपा को मिले कुल वोट की बात करें तो उसे 1लाख 46 हजार 43 वोट ही अधिक मिले हैं। यही सारे कारण हैं कि महाजन और मालवीय की जगह नए चेहरे मैदान में उतारेगी भाजपा।
किसी विधायक को भी नहीं लड़ाएगी लोकसभा
विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा ने 3 सांसदों को विधानसभा टिकट दिया था। आलोट से सांसद मनोहर ऊंटवाल को छोडक़र बाकी दो सांसद चुनाव हार गए। हारे हुए सांसदों में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा व पूर्व लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह के नाम भी शामिल है। ऐसी स्थिति में इन सीटों को अब लोकसभा का टिकट कटना भी लगभग तय माना जा रहा है। मप्र विधानसभा में अभी भाजपा के 109 विधायक है। ऐसी स्थिति में पार्टी किसी विधायक को लोकसभा का टिकट देकर विधानसभा में अपनी सीटें कम कराने की रिस्क भी नहीं लेगी।मालिनी गौड़ को इंदौर लोकसभा के लिए विनिंग केंडिडेट की नजर से देखा जा रहा है लेकिन पार्टी सोचसमझकर ही रिस्क लेगी।