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बस सीएम के हॉट सीट पर बैठने का इंतजार कर रहे हैं किसान !

 

(कीर्ति राणा )

तीन राज्यों का अन्नदाता अब अपने सामने कैलेंडर में साल के इस अंतिम माह वाला पन्ना खोल कर बैठा है। उसे इससे कोई मतलब नहीं कि मप्र में कमलनाथ बने या ज्योतिरादित्य क्यों नहीं सीएम बने। उसकी दिलचस्पी इसमें भी नहीं कि राजस्थान में सत्ता से बेदखल हुई महारानी क्या करेंगी, उसे यह भी नहीं जानना कि रमण सिंह सरकार की विदाई पर अजित जोगी कितना दुखी हुए। इन तीन प्रदेशों के किसानों को इंतजार है कि सीएम पद की शपथ कब होती है और सरकार एक्शन मोड में कितनी जल्दी आती है।
तीनों राज्यों में दृश्य बिल्कुल बिग बी के शो केबीसी जैसा है। बस इंतजार है कि सीएम वाली हॉट सीट पर कब नए मुख्यमंत्री बैठें और अगले ही पल तीनों राज्य के करोडों अन्नदाता कहें कि आपका समय शुरु होता है अब।राहुल गांधी ने मंदसौर में वादा किया था कि हमारी सरकार बनते ही अगले दस दिन में किसानों का दो लाख तक का कर्जा माफ कर देंगे।यूं देखें तो 12 दिसंबर से ही शुरुआत मान लेना चाहिए लेकिन कानूनन ये नाइंसाफी इसलिए होगी कि कांग्रेस तो तीनों राज्यों में 72 घंटे बीतने के बाद अपना सीएम ही नहीं तय कर पाई है, बेरोजगारी दूर करने का वादा और हकीकत तो यही नजर आ गई। फिर भी माफ किया जाना चाहिए क्योंकि पंद्रह साल तक सत्ता से दूर रही कांग्रेस को ठीकठाक होने में दो-चार दिन तो लगेंगे ही।
किसानों की कर्ज माफी वाली मोहलत तो उसी दिन से शुरु होगी जब मप्र में कमलनाथ और बाकी दो राज्यों में भी सीएम शपथ ग्रहण करेंगे। 15 दिसंबर को शपथ लेना ही है, शपथ वाले दिन से अगले दस दिन 25 दिसंबर को होते हैं तो मान लें कि  मप्र सहित अन्य दो राज्यों के किसानों के दो-दो लाख रु माफ किए जाने की घोषणा हो जाएगी।कांग्रेस की इस घोषणा पर तीनों राज्यों में किसानों ने बंपर फसल की तरह वोट पक्ष में डाले हैं। किसानों को इससे कोई मतलब नहीं कि कैसे कर्ज माफ किया जाएगा। वह तो मतदान के काफी पहले नवंबर से ही कांग्रेस के वादे का दीवाना हो गया था।यही कारण रहा कि उसने धान और सोयाबीन की फसल मंडियों में भेजना ही बंद कर दी थी। 15 नवंबर से 8 दिसंबर के बीच एमपी मार्कफेड ने 67 हजार मीटरिक टन धान खरीदी की, जबकि बीते साल इसी अवधि में 4.25 लाख मी. टन खरीदी की गई थी। इंदौर मंडी में इसी सप्ताह सोयाबीन की आवक अधिकतम तीन हजार बोरी रही है, जबकि बीते साल 10-12 हजार क्विंटल हर दिन बिकी है। किसानों ने उपज बेचना इसलिए बंद कर रखा है कि यदि माल बेचा तो पैसा बैंक खातों में जाएगा और बैंके तत्काल कर्ज की किश्तें जमा कर लेंगी। किसान इंतजार कर रहे हैं कि सीएम हॉट सीट पर बैठे उसके बाद मंडी का रुख करेंगे तो दो लाख कर्ज माफी के लाभ के साथ उपज की पूरी जमा राशि भी मिल सकेगी ।
कांग्रेस के लिए कर्ज माफी ही सबसे बड़ी चुनौती इसलिए है कि दो लाख रु तक के कर्ज माफ करने का मतलब है 17 हजार करोड़ रु माफ करना। मप्र के ही 33 लाख किसान सरकार की तरह कर्ज में डूबे हुए हैं। इनमें भी 16 लाख किसान ऐसे हैं जो नियमित किश्त चुका रहे हैं, 17 लाख किसान डिफाल्टर हैं। इस बड़ी चुनौती के साथ अभी तो कर्मचारियों को वेतन बांटना, अन्य खर्चों के लिए धनराशि जुटाना जरूरी है क्योंकि जैसे दिग्विजय सिंह विदा होते वक्त शिवराज के लिए खजाना खाली छोड़ गए थे, उसी परंपरा का अत्याधिक उत्साह से शिवराज ने कमलनाथ के लिए भी पालन किया है। इन पंद्रह वर्षों में सरकार ने हर साल कर्ज लेते हुए आंकड़ा 1.75 लाख करोड़ तक पहुंचा दिया है।किसानों की तरह कांग्रेस को सरकारी कर्मचारियों ने भी पसंद किया है इनमें लाखों की संख्या तो उन संविदा कर्मियों की है जिन्हें कांग्रेस ने स्थायी करने का वादा कर रखा है।शिवराज सरकार तो पेंशनर्स को सातवें वेतनमान का बकाया भुगतान करने से बचती रही इस वर्ग को भी इस सरकार से आशा बंधी हुई है।लाखों की संख्या में जो  लिपिक वर्गीय कर्मचारी हैं उनसे चुनाव पूर्व कांग्रेस ने ही वादा किया था कि मंत्रालय के कर्मचारियों की तरह वेतनमान देंगे। जीएसटी से परेशान व्यापारी वर्ग को भी इस सरकार से उम्मीद है कि प्रोफेशनल टैक्स में कमी करने का वादा पूरा करेगी सरकार। इसके साथ ही प्रदेश के हजारों युवा बेरोजगारों को भी इंतजार है कि कब सीएम हॉट सीट पर बैंठें और उन्हें बेरोजगारी भत्ता मिलने लगे।
सरकार कैसे इन खर्चीले वादों को पूरा करेगी, वह भी तब जब केंद्र में भाजपा की सरकार है। प्रदेश के लोगों ने एक वक्त वह भी देखा है जब प्रदेश की योजनाओं का पैसा नहीं मिलने पर शिवराज दिल्ली में मनमोहन सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे, कांग्रेस ने नौटंकी बता कर उनका मजाक उड़ाया था।यह बात भी गौर करने लायक है कि जब  मोदी पीएम बने तो मनरेगा का पैसा समय पर नहीं मिलने के बाद भी शिवराज सरकार चुप्पी साधे रही थी। मप्र ही नहीं अन्य दो राज्यों में किसानों से किया कर्ज माफी का वादा पूरा करना ही होगा क्योंकि राहुल गांधी और उनकी सलाहकार मंडली को पता है, मार्च 19 तक लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू हो सकती है। इस अवधि में ऐसे तमाम वादों को हकीकत में नहीं बदला तो मतदाता और तीन राज्य हाथ से फिसल जाने से भन्नाए पीएमजी और मोटा भाई VRS  (वसुंधरा,रमन सिंह, शिवराज) का सारा हिसाब कांग्रेस से चुकता करने में नहीं चूकेंगे।

-लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।

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