हम्माल पिता ने इनामी कुश्ती लड़ बेटे रवि को बनाया पहलवान
इंदौर। राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती चैंपियनशिप में हिस्सा लेने आए ओलिंपियन और सितारा पहलवानों के बीच अचानक प्रशंसकों और मीडिया की निगाहें हरसौला जैसे छोटी जगह के पहलवान रवि बारोड पर टिक गईं। रवि ने भले ही कांसा जीता हो, लेकिन मेजबान प्रदेश के लिए पदक जीतने वाले एकमात्र पुरुष पहलवान थे।
रवि ने जीत के बाद यह पदक अपने पिता को समर्पित किया, जिन्होंने बेहद गरीबी के बावजूद उन्हें पहलवान बनाने में कसर नहीं छोड़ी। चर्चा के दौरान रवि कुछ संकोच करते दिखे तो पिता गजानंद बोले, मैं खुलकर बताता हूं। उन्होंने कहा, मैं हम्माली करता था। गेंहू और सोयाबीन के गोडाउन में गाडियों पर बोरियां उतारता हूं। जब रवि छोटा था तो कमाई करीब ढ़ाई हजार थी। इतने में चार बच्चों का घर चलाना मुश्किल था। इसलिए गांव-गांव छोटी-छोटी कुश्तियां भी लड़ने से मना नहीं किया, जहां जीतने पर 100 या 200 रुपए के इनाम मिलते थे। सोचता था कुछ दिन का घर खर्च निकलेगा। आज खुशी है कि मेरे बेटे ने मेहनत बेकार नहीं होने दी।
रवि अब पंजाब में अभ्यास करते हैं। इसका कारण बताते हुए कहते हैं, “मैट की कुश्ती में पैसा नहीं मिलता। मप्र में मिट्टी के दंगल कम होते हैं। पंजाब में बहुत दंगल होते हैं, जिन्हें लड़ने से पैसा मिलता है। इसी कमाई से कुछ पैसा घर भेजता हूं, कुछ से अपना और खुराक का खर्च निकालता हूं।
रवि ने कहा- 2005 में जब पहली बार पंजाब जा रहा था तो पता चला 6 हजार रुपए महीना खर्च आएगा, लेकिन मेरे पिता बड़ी मुश्किल से 2800 ही इकट्ठा कर सके। इतने पैसे लेकर ही पंजाब पहुंचा। बाद में भी पैसों की तंगी हमेशा रही। मेरा वजन कम था तो मुझे छोटी कुश्ती मिलती थी, लेकिन उससे दूध का खर्च निकल जाता था। अब कांस्य जीतने के बाद मुख्यमंत्री ने 1 लाख रुपए के पुरस्कार और नौकरी देने का प्रयास करने की बात कहीं है। यदि ऐसा होता है तो बहुत अच्छा होगा।
24 साल के रवि बीकॉम कर चुके हैं। 17 साल की उम्र से सीनियर राष्ट्रीय स्पर्धा खेल रहे हैं। 2011 में रांची नेशनल गेम्स में कांस्य जीता था। 2010 में पहली बार मप्र केसरी बने। तब से लेकर अब तक करीब 10 बार मप्र केसरी और महापौर केसरी बन चुके हैं।