-इस तरह भी कोई जाता है भला…पद्मश्री रमाकांत गुंदेचा का निधन
(श्रुति कुशवाहा)
गुरूवार शाम ही तो आपकी स्वर-लहरियां गूंजी थी, शुक्रवार दोपहर ही तो एक सांस्कृतिक आयोजन में शामिल हुए थे आप। और फिर पुणे की यात्रा के लिए ट्रेन में बैठे..लेकिन किसे पता था कि असल में ये अनंत यात्रा की तैयारी है। शुक्रवार देर शाम जब सूचना मिली कि पद्मश्री रमाकांत गुंदेचा का ह्रदयाघात से निधन हो गया तो इसपर यकीन करना किसी के लिए भी मुश्किल था।
गुंदेचा बंधु ध्रुपद गायन का पर्याय ही बन चुके हैं अब तो। ध्रुपद शैली को इन्होने एक बार फिर देश विदेश में लोकप्रिय बना दिया। ध्रुपद या ध्रुवपद अर्थात ‘जिसके नियम निश्चित हों, अटल हो, जो नियमों में बंधा हुआ हो। कहते हैं मृत्यु भी निश्चित है, अटल है, जीवन का सबसे बड़ा नियम यही है। ध्रुपद गायन को नई पहचान देने वाले गुंदेचा बंधुओं में छोटे भाई रमाकांत गुंदेचा ने शायद ध्रुपद के इसी अर्थ को यूं ग्रहण कर लिया।
ध्रुपद शैली भगवान शिव व कृष्ण को समर्पित संगीत की आध्यात्मिक विधा है। कहते हैं जहां ध्रुपद गाया जाता है वो स्थान मंदिर हो जाता है, ध्रुपद गाने वाले को किसी तरह का तनाव-अवसाद नहीं होता, और इसे सुनने वाले भी आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं। गुंदेचा बंधुओं को सुनना वास्तव में आत्मिक सुख और अपूर्व शांति का अहसास कराता था।
रमाकांत गुंदेचा-उमाकांत गुंदेचा, ये दोनों भाई एक दूसरे से कुछ यूं जुड़े थे कि इनके सिर्फ सुर-लय-ताल ही नहीं मिलती थी, बल्कि कपड़ों का संयोजन भी समान होता था। हमने सदैव इन्हें एक साथ ही पाया, एक साथ ही देखा, अब ये कल्पना भी मुश्किल है कि इस जोड़ी का एक मोती टूट गया है। रमाकांत जी का इस अल्पआयु में यूं अनायास चले जाना सिर्फ उनके परिजनों के लिए नहीं, देश-विदेश में उनके चाहने वालों के लिए अपूर्णीय क्षति है। शास्त्रीय संगीत की दुनिया आज फिर थोड़ी वीरान हुई, भोपाल आज फिर गहरा उदास हुआ। इस तालों के शहर ने आज एक अनमोल रतन खो दिया है। हम सब आपको अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दे रहे हैं, आपका स्थान कोई नहीं भर पाएगा लेकिन आप अपने संगीत के माध्यम से हमेशा हमारे बीच पूरी मधुरता से उपस्थित रहेंगे।