लखीमपुर खीरी मामले को भुनाने में विपक्ष ने झोंकी पूरी ताकत, खुद को आगे दिखाने में लगी पार्टियां
नई दिल्ली । लखीमपुर खीरी मामले से लगातार उत्तर प्रदेश का राजनीतिक पारा चढ़ रहा है। भाजपा के खिलाफ राज्य में विपक्ष को एक मुद्दा बैठे बिठाई मिल गया है। इस मौके को विपक्ष किसी भी सूरत से हाथ से जाने नहीं देना चाहता है। यही वजह है कि इस मामले के शुरुआत से लेकर अब तक कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी लगातार अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करने में लगी है।
कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों ने यहां पर पूरी एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं के वहां पर पहुंचने की वजह से मामला तेजी से तूल पकड़ रहा है। आपको बता दें कि अगले वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसको लेकर जहां सत्ताधारी पार्टी पहले ही अपना चुनावी बिगुल फूंक चुकी है वहीं अब लखीमपुर के जरिए विपक्ष भी अपनी राजनीतिक पारी को खेलने का मन बना चुका है। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अब इसके जरिए राज्य में खुद को भाजपा का विकल्प बनाने की तैयारी में जुटी हैं।
राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक कमर आगा मानते हैं कि विपक्ष किसानों और इस मुद्दे को यूपी के चुनाव तक मरने नहीं देगा, लेकिन वो ये भी मानते हैं कि लोग जल्द ही इसको भूल भी जाएंगे। उनका ये भी कहना है कि इसका यूपी के विधानसभा चुनाव पर भी न के ही बराबर असर दिखाई देगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि चुनाव और इसके परिणाम काफी कुछ उस दौरान घटित होने वाली घटनाओं से प्रभावित होते हैं।
बुधवार को कांग्रेस के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अपने साथ दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को लेकर लखीमपुर पहुंचे थे। इसके बाद कांग्रेसी नेता हरीश रावत और परगट सिंह ने हजारों गाडि़यों में समर्थकों के साथ लखीमपुर पहुंचने का एलान किया है। पंजाब के कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्धु भी लखीमपुर जा रहे हैं। परगट सिंह ने यहां तक एलान किया है कि वो यूपी सरकार को हिला कर रख देंगे। इसके अलावा बसपा नेता और सुप्रीमो मायावती के सबसे करीबी सलाहकार सतीश मिश्रा भी वहां पर पहुंच रहे हैं। मुमकिन है कि मायावती और अखिलेश यादव भी वहां का रुख करें। लिहाजा ये कहना गलत नहीं होगा कि अब यूपी की सत्ता तक पहुंचने की चाभी लखीमपुर बन चुका है। यही वजह है कि कोई भी पार्टी इस मौके को छोड़ना नहीं चाह रही है।
इतना ही नहीं जिन पार्टियों के नेता यहां पर नहीं पहुंच रहें हैं उन्होंने भी इस बात का संकेत दे दिया है कि वो इस मुद्दे पर दूसरी विपक्षी पार्टियों के साथ खड़े हुए हैं। इसी घटनाक्रम में महाराष्ट्र कैबिनेट ने 11 अक्टूबर को यूपी की राज्य सरकार के खिलाफ राज्य व्यापी बंद का आह्वान तक कर दिया है। वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार इस मुद्दे पर ट्वीट कर इस घटना की निंदा कर रहे हैं और यूपी सरकार को कटघरे में भी खड़ा कर रहे हैं। पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकारें पहले ही इस घटना में मारे गए किसानों के परिजनों को 50-50 लाख के मुआवजे का एलान कर चुकी हैं। यूपी सरकार और पीडि़त परिवारों और प्रदर्शनकारियों के बीच हुए समझौते के बाद प्रशासन भी मृतकों के परिजनों को 45-45 लाख के मुआवजे को राजी हो चुका है। इसके बाद भी इस पर सियासी संग्राम लगातार चल रहा है। दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी के नेता और सांसद संजय सिंह भी खीरी में पीडि़तों के परिजनों से मिले हैं। उन्होंने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से उनकी बात भी कराई है।
जहां तक विपक्षी पार्टियों की बात है तो बता दें कि ये पार्टियां लगातार केंद्र और राज्य सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं। करीब एक वर्ष से कृषि कानून के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को भी इन पार्टियों का पूरा समर्थन हासिल है। गौरतलब है कि इस मामले की जांच कराने के आदेश पहले ही दिए जा चुके हैं, वहीं अब सुप्रीम कोर्ट भी इस घटना पर स्वत: संज्ञान ले चुका है। अब इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश की पीठ करेगी। इसमें उनके साथ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी होंगे।