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28 साल की लड़ाई: सरकारी लालफीताशाही ने छीन ली कैलाश की जिंदगी

सरकारी लालफीताशाही की बलि चढ़ी उम्मीदें: 28 साल से न्याय की आस में कैलाश राठौड़ का अटूट संघर्ष

रतलाम ढोढर जिला रतलाम के कैलाश राठौड़ की जिंदगी एक ऐसी कहानी है, जो सरकारी तंत्र की नाकामी और लालफीताशाही की बेरहमी को उजागर करती है। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसने 28 साल से अपने हक के लिए एक असंभव सी लड़ाई लड़ी है, और अब उसकी आखिरी उम्मीद प्रधानमंत्री के दरवाजे पर दस्तक दे रही है।

कहानी की शुरुआत:
1995 में कैलाश राठौड़ ने अपने जीवन की सबसे बड़ी जंग शुरू की। उनके पास एक प्लाट था, जिस पर उन्होंने अपना मकान बनाया, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में यह प्लाट उनके नाम नहीं बल्कि किसी और के नाम दर्ज हो गया। कैलाश ने अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन सरकारी दफ्तरों की अनदेखी और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें उनकी हर कोशिश को नाकाम करती रहीं।

सरकारी दफ्तरों के चक्कर:
कैलाश ने तहसील से लेकर अनुविभागीय अधिकारी तक, पटवारी से लेकर कलेक्टर तक सभी के दरवाजे खटखटाए, लेकिन हर जगह से उन्हें सिर्फ निराशा ही मिली। उनका प्लाट, जिसे उन्होंने अपने खून-पसीने की कमाई से खरीदा था, किसी और के नाम कर दिया गया। सरपंच और पटवारी की मिलीभगत ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया, और इसके खिलाफ उनकी हर लड़ाई को सिस्टम ने बेरहमी से कुचल दिया।

पीएमओ से जगी थी नई उम्मीद:
कैलाश के संघर्ष का एक और मोड़ तब आया जब 2018 में प्रधानमंत्री कार्यालय से उनके लिए एक पत्र आया। इस पत्र में स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि कैलाश की याचिका पर तुरंत कार्रवाई की जाए, लेकिन दुर्भाग्यवश, यह पत्र भी बाकी दस्तावेजों की तरह सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया। पत्र का नंबर PMOPG/D/2019/0305168 था, और उसमें कहा गया था कि कैलाश की याचिका पर उचित कार्रवाई की जाए और इसका जवाब पोर्टल पर अपलोड किया जाए, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

समाज और पुलिस की ज्यादती:
कैलाश के संघर्ष को समाज ने भी पागलपन का नाम दे दिया। उनकी आवाज को दबाने के लिए उन्हें पागल घोषित कर दिया गया, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, और यहाँ तक कि डॉक्टरों की पैनल ने भी उन्हें मानसिक रोगी करार दिया। लेकिन कैलाश ने हार नहीं मानी। उन्होंने न्यायालय में लड़ाई लड़कर खुद को निर्दोष साबित किया, और इस अपमानजनक स्थिति से बाहर निकले।

जीवन के अंतिम पड़ाव पर भजन मंडली:
आज कैलाश राठौड़ अपने सपनों को जिंदा रखने के लिए भजन मंडली में काम कर रहे हैं। अपने प्लाट और मकान के लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी, अपनी संपत्ति और व्यवसाय खो दिए, लेकिन उनकी उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं। अब वे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक नया मकान पाने की आस लगाए बैठे हैं। उनका विश्वास है कि प्रधानमंत्री उनसे मिलकर उनकी समस्या का समाधान करेंगे।

भविष्य की उम्मीदें:
कैलाश राठौड़ की यह संघर्ष यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने धरना देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि उनके साथ कोई दुर्घटना होती है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी पूर्व और वर्तमान सरपंच ढोढर की होगी।

मुख्य बिंदु:
– 28 साल की लड़ाई: 1995 से कैलाश राठौड़ ने अपने प्लाट और मकान के लिए एक लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है।
– सरकारी तंत्र की अनदेखी: सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार ने कैलाश के न्याय की आस को बार-बार तोड़ा है।
– प्रधानमंत्री कार्यालय का पत्र: पीएमओ के निर्देशों के बावजूद, कैलाश के मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
– समाज और पुलिस का दबाव: कैलाश को पागल घोषित कर समाज और पुलिस ने उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की, लेकिन वे डटे रहे।
– भजन मंडली में जीवन:* अपने संघर्ष के बावजूद, कैलाश राठौड़ ने भजन मंडली में काम करते हुए अपने सपनों को जिंदा रखा है।

यह कहानी सिर्फ कैलाश राठौड़ की नहीं है, बल्कि उन लाखों लोगों की है जो आज भी अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सरकारी तंत्र की अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। कैलाश की यह यात्रा दिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने न्याय की लड़ाई में पूरी व्यवस्था से जूझता है, और आज भी उम्मीद की किरण देख रहा है।

ई खबर मीडिया के लिए  ब्यूरो देव शर्मा की रिपोर्ट

 

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