बेंगलुरु से कानपूर का पैदल सफर और सर पर सूरज,पेट में भूख की आग
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]योगेश राजपूत[/mkd_highlight] योगेश राजपूत
मध्यप्रदेश। कानपुर से अपनों को छोड़कर दो वक्त रोटी की तलाश में बेंगलुरु पहुंचे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, कोरोना का कहर रोटी और रोजगार पर भी टूट पड़ा। मजदूर बेंगलुरु से कानपूर खाली हाथ पैदल ही निकल पड़े। कई किलामीटर का सफर पूरा कर राष्ट्रीय राज्यमार्ग के किनारे पर बसे बुधनी तक पहुंच गए,इनके सर पर सूरज और पेट में भूख की आग है,लेकिन जिद है कि वापस घर तो पहुंचना ही तो बस चले जा रहे है।
शाम बड़ी संख्या में पैदल यात्री शहर से होकर गुजर रहे थे जब उनसे इसका कारण जानना चाहा तो वह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे और डरे और सहमे हुए थे, बाद में उन्होंने बताया कि वह 16 मार्च को अपने घर कानपुर से ट्रेन द्वारा बेंगलुरु काम की तलाश में गए हुए थे, तभी अचानक 21 मार्च को बंद की स्थिति बन गई कुछ दिन तो उन्हें खाना-पीना मिलता रहा लेकिन बाद में हालात बिगड़ने लगे वहीं दूसरी ओर काम नहीं मिलने के कारण वह कानपुर अपने घर पैसा भी नहीं पहुंचा पा रहे थे।
जिससे उनके परिवारों के सामने खाने पीने का संकट खड़ा हो गयाl मजबूरी में वह सभी बंगलुरु से पैदल ही कानपुर के लिए रवाना हो गएl गौरतलब है कि बेंगलुरु से कानपुर की दूरी लगभग अट्ठारह सौ किलोमीटर है ,शनिवार शाम लगभग 8:00 बजे वह बुधनी पहुंचे जहां मीडिया कर्मियों ने जब उनकी फोटो करने का प्रयास किया तो उन्होंने कहा कि हमारा मजाक मत बनाइए वैसे ही हमारी जिंदगी अब मजाक बनकर रह गई है।
इसी तरह हरदा के सेमरी से पटियाला की पैदल यात्रा कर रहे तीन सदस्यीय दल से बात की तो उन्होंने बताया कि हार्वेस्टर लेकर आए थे लेकिन अब कोई काम नहीं बचा है इसलिए पैदल ही घर जा रहे हैंl यह तो सिर्फ एक दो उदाहरण मात्र है ऐसे सैकड़ों लोग मजबूरी में हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा भूख और प्यास से लड़कर कर रहे हैं वही सरकारें भोजन से लेकर मजदूरों के आने-जाने की व्यवस्थाओं को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कर रही हैंl लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।