समाज ने स्त्री के मत और पद के महत्व को अब समझा : प्रो. मनिमेकलाई
— डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा जेंडर संवेदनशीलता पर कार्यक्रम
मध्यप्रदेश । डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू द्वारा ‘‘जेंडर संवेदनशीलता और संबंधित मुद्दें’’ विषय पर आयोजित अकादमिक गतिविधियों की श्रृंखला में 29 जुलाई को ‘‘नारीवादी आन्दोलन’’ विषय पर प्रो. मनिमेकलाई ने अपने उद्बोधन में कहा कि एक विचारधारा और आन्दोलन के रूप में नारीवाद स्त्री और पुरुष के बीच असमानता को नकारता है।
यह स्त्री के सशक्तिकरण के अनिर्वायता को बौद्धिक और वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हुए उसके क्रियाशील व्यवहारिक पक्ष के लिए उत्प्रेरक बनता है। नारीवादी आन्दोलन प्रजनन अधिकारों, घरेलू हिंसा, मातृत्व अवकाश, समान वेतन, महिलाओं के मताधिकार, यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर सुधार के लिए राजनैतिक अभियानों की एक श्रृंखला को संदर्भित करता है। नारीवाद सभी प्रकार की असमानता, दबाव, दमन हटाकर अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय रूप से समतामूलक, न्यायिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व्यवस्था से युक्त समाज की स्थापना करना चाहते हैं।
नारीवादी आन्दोलन की विभिन्न लहरों के बारे में बताते हुए कहा कि पहली लहर में स्त्रियों की निजी और सार्वजनिक दायरों में पितृसत्ता के वर्चस्व को चुनौती दी। दूसरी लहर साठ के दशक में उभरी इसमें औद्योगिक क्रान्ति ने महिलाओं को सार्वजनकि उत्पादन के क्षेत्र में स्थान दिलाया तथा उसे आर्थिक शक्ति बनने का आधार प्रदान किया। नारीवादी आन्दोलन की तृतीय लहर का उदय उस समय हुआ जब परिस्थितियाँ बदल चुकी थी। इस लहर में जातीय, नस्लीय और जातिगत संदर्भों में देखे जाने की पहल की गयी। चोथी लहर के संदर्भ में भी विस्तार से बताया। साथ ही भारतीय नारीवाद पर भी अपने विचार रखे। नारीवादियों ने स्त्री के शक्ति सम्पन्न होने की दिशा में सत्ता और सम्पत्ति में उसकी भागीदारी को महत्वपूर्ण माना है। समाज ने स्त्री के मत और पद के महत्व को अब समझा है। उनकी उपस्थिति को अब आसानी से नकारा नहीं जा सकता।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विश्वविद्यालय के शोध, प्रसार एवं प्रशिक्षण निदेशालय के निदेशक एवं आईक्यूएसी के अध्यक्ष प्रो. डीके वर्मा ने कहा कि हमें पश्चिमी नारीवाद के साथ ही भारतीय नारीवाद के इतिहास को महत्व देना चाहिए। पहली महिला शिक्षिका के रूप में सावित्री बाई फुले प्रारंभिक भारतीय नारीवादी नाम है। भारतीय महिलाओं के लिए समान राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को परिभाषित करने, स्थापित करने, समान अवसर प्रदान करने और उनका बचाव करने के उद्देश्य से विचार धाराओं का एक समूह भारत में नारीवाद के रूप में जाना जाता है।
स्वागत उद्बोधन प्रो. किशोर जाॅन, संकायाध्यक्ष, सामाजिक न्याय एवं विधि अध्ययनशाला द्वारा दिया गया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. मनोज गुप्ता द्वारा किया गया।