Madhy Pradesh

बच्चों की ‘चकमक’ के सम्पादक स्वयं प्रकाश नहीं रहे

 

मुंबई। हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार स्वयं प्रकाश का शनिवार सुबह मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया। वे पिछले एक माह से रक्त कैंसर से जूझ रहे थे। मूलत: अजमेर निवासी स्वयं प्रकाश हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में सतर्कता अधिकारी और हिंदी अधिकारी रहे थे। विगत लगभग दो दशकों से वे भोपाल में रह रहे थे। प्रगतिशील लेखक संघ की मुख पत्रिका ‘वसुधा ‘ और बच्चों की चर्चित पत्रिका ‘चकमक’ के सम्पादक रहे स्वयं प्रकाश के एक दर्जन से अधिक कहानी संग्रह और पांच उपन्यास प्रकाशित हुए थे। उन्हें भारत सरकार की साहित्य अकादेमी ने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से छपी बच्चों की पुस्तक ‘प्यारे भाई रामसहाय’ के लिए बाल साहित्य का अकादेमी पुरस्कार दिया था। इसके अलावा उन्हें पहल सम्मान, भवभूति सम्मान, कथाक्रम सम्मान, वनमाली पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से समादृत किया गया था। उनकी आत्मकथात्मक कृति ‘धूप में नंगे पाँव’ का प्रकाशन इसी वर्ष हुआ था और प्रकाशन के साथ ही अपनी खास निस्संगता के लिए इसकी चर्चा हिंदी में थी। प्रगतिशील सरोकारों और सहज शिल्प के कारण उनका लेखन हिंदी में देर तक याद किया जाएगा। सांताक्रुज विद्युत शवदाह गृह में संस्कार में परिवार के सदस्यों और मित्रों के अलावा हिंदी लेखकों में प्रो रामबक्ष, राकेश शर्मा,रमन मिश्र, शैलेश सिंह, शाश्वत रतन,हरि मृदुल, फिरोज खान, अमर त्रिपाठी आदि शामिल हुए। उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘चौथा हादसा’ के एक पात्र रहे हिंदी के जाने माने विद्वान् और प्रोफ़ेसर रामबक्ष भी उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि के लिए मुंबई में थे। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए विख्यात लेखक काशीनाथ सिंह ने कहा कि लेखकों में इतना सरल, सहज, निश्छल और बिना मिलावट का इंसान सिर्फ स्वयं प्रकाश था जिसने अमरकांत और भीष्म साहनी की परंपरा का विकास किया। जनवादी लेखक संघ से जुड़ी रेखा अवस्थी ने उनके निधन को हिंदी की अपूरणीय क्षति बताया। कथा के प्रसिद्ध आलोचक शम्भू गुप्त ने हिंदी लेखन में स्वयं प्रकाश को अमर नाम बताया। उनके गहरे मित्र और उनके साथ लघु पत्रिका ‘क्यों’ के सम्पादक रहे मोहन श्रोत्रिय ने कहा कि इससे बुरी खबर और हो नहीं सकती। उन पर अपनी पत्रिका ‘बनास जन’ का पहला अंक निकालने वाले युवा आलोचक पल्लव ने कहा कि अपने आसपास के साधारण लोगों, साधारण घटनाओं और साधारण बातों को जोड़कर असाधारण कहानी का निर्माण करना उनके लिए बहुत सहज था लेकिन इन कहानियों की बेबुनावट कला ही कला की सबसे बड़ी पहचान है।

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