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छाप तिलक सब छीना, तेरे इश्क में, तेरी रजा मेरी रजा…

 

— ओशो महोत्सव में गूंजे सूफी तराने

 

मध्यप्रदेश। प्रदेश के जबलपुर में गुरुवार को ओशो महोत्सव के दौरान गुलाबी परिधान में सूफी की सुल्ताना, हिंदी सिनेमा की जानी-मानी पार्श्वगायिका रेखा भारद्वाज ने ओशो प्रेमियों के बीच धमाल मचाकर सबका दिल जीत लिया। छाप तिलक सब छीना, तेरे इश्क में, तेरी रजा मेरी रजा सहित एक से बढ़कर एक सूफी गीतों पर जमकर तालियां बजीं।

— सुभाष घई ने जमाया रंग

ओशो महोत्सव के प्रथम सत्र में ध्यान क्या और क्यों विषय पर बोलते हुए सुभाष घई ने ओशो व उनके मूल संदेश ध्यान को लेकर अपनी सोच-समझ का इजहार किया तीसरे सत्र में ओशो फिल्म फेस्टिवल के जरिए उन्होंने पर्दे पर ओशो की विभिन्न् भाव-भंगिमाओं की अनदेखी फिल्मों के हिन्दी अंग्रेजी वीडियो की प्रस्तुति और ओशो मेडिटेशन रिजॉर्ट, पुणे की झलकियां दिखाकर ओशो प्रेमियों को आनंद में डुबो दिया। ओशो को लेकर बनने जा रही फिल्म के सिलसिले में इशारे भी किए, जिन्हें सुनकर समूचा तरंग खुशी के रंग में रंग गया।

— ध्यान से हुआ आगाज़

गुरुवार सुबह 6.30 बजे से 7.30 बजे तक का समय ओशो संन्यास अमृतधाम के स्वामी अनादि अनंत के सानिध्य में सक्रिय ध्यान का रहा। ओशो के सबसे मूलभूत डायनामिक मेडिटेशन के विभिन्न् चरणों में डूबते ओशो संन्यासी गजब का समां बांध रहे थे। मैरून रोबधारियां का सागर सा लहराने लगा। आनंद की हिलोर में सब बह गए। अंतिम चरण में नृत्य की धूम मची और फिर सब शिथिल होकर आराम-मुद्रा में चले गए। ओशो व्याख्यान की कड़ी में ध्यान क्या और क्यों विषय पर ओशो इंटरनेशनल कम्यून की मां अमृत साधना ने जैसे ही अपने स्वर छेड़े सुनने वाले बस सुनते ही रह गए। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि वाणी एक ऐसी साधिका की थी, जो ओशो के जीवंत संपर्क में रह चुकने के गौरव से मंडित हैं। ओशो से संन्यस्त होने का सौभाग्य अर्जित करने के साथ ही अनवरत ओशो के पूना धाम के संचालन की महती जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। उन्होंने ओशो प्रणीत ध्यानों की विविधिवता मनुष्य की विविधता के अनुरूप होने का मनोवैज्ञानिक तथ्य रेखांकित किया।

— मैं धर्म सिखाता हूं, धार्मिकता नहीं

ओशो के संदेश ‘मैं धर्म सिखाता हूं, धार्मिकता नहीं को लेकर ओशो अनहद कम्यून, भोपाल की मां प्रेम पूर्णिमा ने भूमिका बांधी, जिसके बाद प्रख्यात साहित्यकार-कथाकार कमलेश पांडे ने ऐसा व्याख्यान दिया, जिसे सुनकर सुनने वाले बस सुनते रह गए। उन्होंने अपने संस्मरणों के जरिए ओशो-दर्शन के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित की। साफ किया कि जो कुछ नहीं जानता, दरअसल उसके ही कुछ जानने की संभावना रहती है। स्विट्जरलैंड से ओशो महोत्सव में शामिल होने आए स्वामी श्रीला प्रेम पारस ने सुर खुमारी से संगीत संध्या सजाई। 6 से 7 बजे तक उनके सुरों ने समां बांधा। वे ध्यान की अतल गहराई में डूबकर संगीत की साधना करने वाले अनूठे ओशो संन्यासी हैं। अपनी अनुभूति को वाद्यों के जरिए अभिव्यक्त करने वाले स्वामी श्रीला प्रेम पारस ने एक के बाद एक ऐसी प्रस्तुतियां दीं कि हर सुनने वाला भाव-विभोर हो गया। पिछले दिनों नर्मदा किनारे ओशो फेस्टीवल के जरिए इस राजकीय ओशो महोत्सव की नींव रखने वाले स्वामी श्रील प्रेम पारस के प्रति प्रत्येक संजीदा ओशो प्रेमी ने अहोभाव व्यक्त किया। स्वामी श्रील प्रेम पारस धर्मपत्नी और पुत्र-पुत्री भी मैरून रोब में सुशोभित हो रहे थे। पूरा परिवार ओशोमय होकर ओशो महोत्सव को सफल बनाने में अपनी आहुति देता नजर आया।

— रजनीश राजा चन्द्रमोहन शीर्षक नाटक का मंचन 

शाम 5 बजते ही रंग संस्था ‘विमर्श की नाट्य प्रस्तुति ‘रजनीश राजा चन्द्रमोहन का मंचन शुरू हो गया। स्वामी देव सिद्धार्थ रचित इस नाटक का निर्देशन समर सेन गुप्ता ने किया। विकी तिवारी, आदित्य गुप्ता, नपुल और दीपक गुप्ता ने ओशो के जीवन के विभिन्न् चरणों से संबंधित उनके पात्र बड़ी खूबसूरती से अभिनीत किए। नृत्य और ध्यान के साथ जीवन और मृत्यु, दोनों का उत्सव व आनंद मनाने के दर्शन को समाहित नाटक खूब सराहा गया। इस अवसर पर अशोक चतुर्वेदी, पूर्व सचिव विधानसभा, हाई हिंदी ग्रंथ अकादमी के पूर्व संचालक नूतन कॉलेज के प्रोफेसर सुरेंन्द्र विहारी गोस्वामी, हाई कोर्ट के अधिवक्ता नरिन्दर पाल सिंह रूपराह व कपिल तिवारी मौजूद रहे मंच संचालन डॉ.प्रशांत कौरव, डॉ.रणवीर कौर व अमित परनामी ने किया।

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