Madhy Pradesh

चुनावी वर्ष मे आई राजनीतिनामा भाग-2 चर्चाओं मे, पुस्तक समीक्षा: राजनीतिनामा भाजपा युग (2003 से 2018)

पवन देवलिया | मध्यप्रदेश की राजनीति और शासन प्रशासन की गतिविधियों पर नजर रखने वालों, या यू कहें समझने वालों के लिए बाजार मे एक नई पुस्तक आई है । मध्यप्रदेश की पत्रकारिता मे अंग्रेजी और हिन्दी विधा मे खासी पकड रखने वाले जाने माने पत्रकार दीपक तिवारी ने राजनीतिनामा मध्यप्रदेश 1956 से 2003 तक अपनी पहली पुस्तक की सफलता के बाद 2003 से 2018 तक सरकारों के राजनैतिक और प्रशासनिक घटनाओं को बेहतरीन तरीके से कलमबद्ध किया गया है।
पुस्तक मे कुल 14 भाग है ।

राजनीतिनामा भाग दो भाजपा युग के शुरुआती दौर मे सत्ता से लंबे समय तक बाहर रही भाजपा मे अचानक उबाल आता है 2003 के विधानसभा चुनावों की कमान भाजपा ने अपनी फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती को सौंपते ही राजनैतिक हलचल तेज हो जाती है।

राजनीतिनामा पुस्तक बताती है एक दशक तक राज करने वाले कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कैसे “मिस्टर बंटाधार “ नाम देकर चर्चित किया गया।

राजनीतिनामा मे मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के चर्चित ब्यानो को एक बार सुर्खियों मे लाकर अपनी विशेष शैली के लिए जाने वाले नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था चुनाव ‘मैनेजमेंट’ से जीते जाते है ।

पृष्ठ 61 पर उमा द्वारा गौर को दिलाई गई शपथ के बारे लिखा गया है कि उमा भारती ने 21 देवी देवताओं के सामने गंगाजल उठाकर गौर को शपथ दिलाई थी कि जब वह कहेगी गौर इस्तीफा दे देगे। इसके बाद गौर मंत्री मंडल मे शामिल होने के लिए इन्दौर के खाटी नेता कैलाश विजयवर्गीय हिचकोले खाते हुए विमान से भोपाल पहुचकर दौडते भागते हुए मंत्री पद की शपथ ली थी । मुख्यमंत्री के रूप मे बाबूलाल गौर के अध्याय का अंत कैसे हुआ यह भी रोचक है, पुस्तक मे लिखा गया है कि बात नवंबर 2005 की है मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर इन्दौर राजबाडे मे एक सभा मे थे तभी अरुण जेटली का मोबाइल आया कि केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया है तब अधिक शोर के कारण गौर साहब को कुछ सुनाई नहीं दिया 10 मिनट बाद फिर जेटली का फोन आया ।

उमा भारती की भाजपा मे मुश्किलें कैसे बढती गई कैसे उमा भारती निलंबित हुई । उमा भारती का गोपनीय पत्र कैसे लीक हुआ, जिसके कारण उमा भारती को भाजपा से निष्कासित होना पडा । उमा का लगातार दूसरा पत्र लीक हुआ जिसमें बताया गया कि सहकार्यवाहक सुरेश सोनी उनके खिलाफ भाजपा के बडे नेताओं का इस्तेमाल कर रहे है। पुस्तक को पढने की रोचकता के साथ रोमांच बना रहता है। दीनदयाल परिसर भाजपा दफ्तर मे शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बनाये जाने की कार्यवाही चल रही थी, विधायकों का बहुमत उमा के साथ था उमा कुछ बोलने के लिए खडी हुई कि उस समय के ताकतवर संघठन महामंत्री संजय जोशी ने उमा भारती को धक्का देकर बिठा दिया था।
विधायक दल की बैठक मे शिवराज सिंह को विधायक दल का नेता चुना गया और जब शिवराज सिंह अपनी पत्नि साधना सिंह के साथ भाजपा कार्यालय पहुचे तो सबसे पहले राघवजी भाई ने उनका स्वागत किया ।

उमा भारती की भाजपा मे वापसी का रोचक प्रसंग…

उमा भारती भाजपा मे वापसी के लिए आतुर थी वही सुषमा स्वराज और वैंकेया नायडू जैसे नेता उमा भारती की भाजपा मे वापसी के विरोध मे इस हद तक थे कि उन्होंने पार्टी के पदों से इस्तीफा देने तक की चेतावनी दे डाली । आनन फानन मे पार्टी अध्यक्ष गडकरी संघ प्रमुख भागवत से मिले और स्थिति से अवगत कराया। तब भागवत ने संदेश दिया कि वह उमा को पार्टी मे भेज रहे है जिनको आपत्ति हो उनके इस्तीफे ले लिए जाये ।

राजनीतिनामा के अध्याय पांच मे डूबती गई कांग्रेस मे गुटबाजी की और अनुशासनहीनता का उल्लेख करते हुए लिखा है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता सुभाष यादव पार्टी अध्यक्ष रहते हुए खुद विधानसभा चुनाव हार गये। कांग्रेस के मुखर प्रवक्ता के के मिश्रा को सुभाष यादव ने क्यों पार्टी से निलंबित किया था ।

इसी अध्याय मे बताया गया है कि कांग्रेस के नेता सुरेश पचौरी कभी कोई चुनाव नही जीत पाये 1984 से 2008 तक लगातार चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे परंतु जनता के बीच जगह नही बना पाने के कारण लगातार चुनावी रण मे पराजित होते रहे।

2008 के विधानसभा चुनावों मे भाजपा ने आक्रामक तरीके से चुनावों की शुरुआत की “फिर भाजपा फिर शिवराज” राजनीतिनामा पुस्तक भाग- 2 मे भाजपा की चुनावी बारीकियों को पकडते हुए लिखा है , कि किस तरह चुनाव प्रचार मे शिवराज के काम और केन्द्र सरकार की नाकामियों को जनता तक पहुचाया गया। भाजपा की स्टार नेता उमा भारती अपने गृह नगर टीकमगढ से विधानसभा के चुनावी रण मे उतरी और भाजपा कांग्रेस ने मिलकर उन्हें धूल चटा दी। भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की पत्नि नीना वर्मा मात्र एक वोट से चुनाव जीती तो वही आदिवासी नेता विजय शाह के भाई संजय शाह हरदा टिमरनी से भाजपा का चक्रव्यूह तोडते हुए निर्दलीय विधायक बनकर कैसे विधानसभा पहुचे यह भी लिखा गया है ।

भाजपा की बडी नेता सुषमा स्वराज जब विदिशा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडने आई तो कांग्रेस के बडे नेता राजकुमार पटेल ने डुप्लीकेट ए फार्म जमा कर दिया जिससे सुषमा स्वराज की बडी जीत मे पटेल सहायक बने। राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले नेता अर्जुन सिंह अपने जीवन के अंतिम समय मे थे और इसी समय उनके गृह जिला सीधी की लोकसभा सीट सामान्य घोषित हुई। अर्जुन सिंह की अंतिम इच्छा थी कि उनकी बेटी वीणा सिंह इस क्षेत्र से कांग्रेस की प्रत्याशी बने परंतु कांग्रेस की रस्साकसी के चलते टिकट इन्द्रजीत पटेल को मिली और वीणा सिंह को निर्दलीय चुनाव उतरना पडा, कांग्रेस दूसरे वीणा सिंह तीसरे स्थान पर रही भाजपा जीतकर आगे निकल गई।

राजनीतिनामा को पढते पढते भाग 13 पर कब पहुच गये पता ही नहीं चला। भाग तेरह मे डंपर, व्यापंम और घोटालों का जिक्र पुस्तक की रोचकता को और अधिक बढाती है ।

“हाँ मेरी पत्नि के पास चार ट्रक है”

शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बने ज्यादा समय नहीं हुआ था कि उन्हीं के साथी भाजपा नेता प्रहलाद पटेल ने परिवाहन कार्यालय से उन डंपरो के कागजात निकलवा लिए जिनमे साधना सिंह पति एस आर चौहान लिखा हुआ था। प्रहलाद पटेल ने कागज प्रेस मे दिये और नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी ने हंगामा मचा दिया ।
घटनाक्रम पर मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि उनकी पत्नि ट्रेवलिंग का व्यापार करती है।वेयरहाउस से लेकर फूलों की खेती का उल्लेख करती हुई राजनीतिनामा पुस्तक उन लोगों की जानकारी बढाती है जो इन अनछुए पहलुओं को जानने के उत्सुक रहते है। विधानसभा मे नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी के यहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अचानक कैसे पहुचे ? हेड मास्टर नरेन्द्र मस्साब के घर चोरी ? व्यापंम कांड से निपटने की रणनीति के सूत्र और व्यापंम का सच पुस्तक कैसे बनी गले की फांस ? सुरेश सोनी के व्यापंम कांड मे नाम के चर्चे और संघ के करीबी मंत्री रहे लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी की घटनाओं को पुस्तक मे उकेरा गया है। लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि अगर मै नहीं जाऊंगा तो बडे लोगों को जेल जाना पडेगा। प्रदेश के महामहिम राज्यपाल पर, पद पर रहते हुए मुकदमा दर्ज हुआ। आजतक के पत्रकार अक्षय सिंह दिल्ली से व्यापंम घोटाले पर खबर करने मध्यप्रदेश के झाबुआ आये और आकस्मिक उनकी मौत हो गई ? व्यापंम पर सीबीआई जांच शुरू हुई और क्लीन चिट मिलने तक की सभी खबरों पर राजनीतिनामा पुस्तक के लेखक दीपक तिवारी अपनी पैनी नजर जमाये हुए थे।

राजनीतिनामा के अंतिम भाग 14 सरकार पर आरएसएस की छाया से शुरू होता है । साधु संतों ने सरकार को ब्लैकमेल किया चुनावी वर्ष मे औंकारेश्वर मे 108 फिट की ऊंची प्रतिमा लगाने से लेकर सरकार ने साधु संतों को मनाने मे कोई कोर कसर नही छोडी जो साधु घोटाले उजागर करने की बात कह रहे थे वह राज्यमंत्री का दर्जा पाकर सरकार को धन्यवाद देते नजर आते है।

अपने अलग तरह की शैली मे पत्रकारिता करने वाले लेखक दीपक तिवारी की पहली पुस्तक राजनीतिनामा 1956-2003 कांग्रेस युग के तीन संस्करण सुधी पाठकों के लिए बाजार मे आये जो खासे लोकप्रिय हुए।

नई पुस्तक राजनीतिनामा भाजपा युग 2003 से 2018 पुस्तक मे जिन घटनाओं के बारे मे लिखा गया है उनका मै भी स्वयं साक्षी रहा हूँ । 475 पेज की पुस्तक को दो दिन मे पढकर सारी घटनाओं के फ्लैशबेक मे जाने और आने के बाद लगता है कि पुस्तक चुनावी वर्ष मे चर्चाओं मे रहेगी पार्टी और नेताओं को पुस्तक पढने के बाद बोलने और आरोप लगाने से लेकर चुनावी मंच पर ज्यादा मेहनत नही करना पडेगी। पुस्तक मे वह सब कुछ है जिसकी इस वर्ष के अंत मे जरुरत है। कुल मिलाकर पाठकों को साधने मे लेखक सफल दिख रहे है।

– पवन देवलिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं एमपी मिरर समाचार सेवा के संपादन है)

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