MP POLITICS : राहुल लोधी की हार से बीजेपी में बवाल
जोरावर सिंह
मध्यप्रदेश। कहते है कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं नहीं रहता है, इसका उदाहरण समय मध्यप्रदेश की सियासत पर सटीक बैठ रहा है। कभी मध्यप्रदेश में उपचुनाव ने सरकार को मजबूती प्रदान की थी, मगर इस बार हुए उप चुनाव में दमोह में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत ने एक बार फिर मध्यप्रदेश की सियासत में गर्माहट ला दी है, इसके परिणाम क्या होंगे, यह तो आगामी वक्त में ही पता चल पाएगा, मगर इस समय प्रदेश की सियासत में जुमलेबाजी का दौर दमोह उपचुनाव के परिणाम आने के बाद से ही जारी है।
दमोह विधान सभा से पूर्व में कांग्रेस के राहुल सिंह लोधी विधायक थे, उन्होंने जीत दर्ज की थी, लेकिन विधान सभा चुनाव जीतने के बाद उनका मन ज्यादा दिन तक कांग्रेस में रमा नहीं, इसकी वजह कुछ भी रही हो, लेकिन उन्होंने अपना भरोसा भाजपा पर जमा दिया और विधायक पद से स्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए। दमोह विधान सभा सीट खाली हो गई, इसके लिए कराए गए चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस का दामन छोड कर आए राहुल सिंह लोधी को अपना प्रत्यासी बनाया तो वहीं कांग्रेस ने अजय टंडन को अपना प्रत्यासी बनाया।
कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार
मध्यप्रदेश में वर्तमान में भाजपा की सरकार है, और माना जाता है कि प्रदेश में जिसकी सरकार होती है, उपचुनाव में उसका ही डंका बजता है, इसका उदाहरण उस समय भी सामने आ चुका है, जब कांग्रेस से मुखालफत कर भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसी विधायक भाजपा के रथ में सवार होकर जब विधान सभा के उपचुनावी मैदान में उतरे तो कांग्रेस को चारो खाने चित कर दिया। इसमें सांची विधान सभा ने सभी को चौकाया यहां से वर्तमान में भाजपा सरकार में मंत्री डा प्रभुराम चौधरी तो 60 हजार से अिधक मतों से चुनाव जीते। मगर इस बार एेसा क्या हुआ जो भाजपा को दमोह में करारी हार का सामना करना पड़ा।
—पहले नजदीकी अंतर से जीती थी सीट
मध्यप्रदेश की दमोह विधान सभा सीट 2013 में भाजपा ने जीती थी, लेकिन 2018 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के राहुल सिंह ने इस सीट पर अपना कब्जा कर लिया, हालांकि जीत का अंतर करीब साढे सात सौ मतों का ही रहा था, मगर भाजपा का उन्होंने शिकस्त दी थी, कांग्रेस की प्रदेश में सरकार बनने तक तो वह कांग्रेस के साथ रहे, सत्ता जाने के बाद राहुल सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे। अब उन्हें हार का सामना करना पडा है।
क्या कहते हैं यह परिणाम
दमोह विधान सभा उप चुनाव में जहां सत्ताधारी के नेता और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार किया, मगर इसके बाद भी भाजपा इस सीट को नहीं बचा पाई, बडे अंतर से चुनाव हार गई, इतने बडे अंतर से तो वह प्रदेश के विधान सभा के मुख्य चुनावों में भी नहीं हारी थी, भाजपा ने कांग्रेस को कडी टक्कर दी थी, लेकिन सत्ता के एक साल से अिधक समय के कार्यकाल के बाद यदि सत्ताधारी दल को करारी शिकस्त मिली है, तो यह परिणाम सत्ताधारी दल के लिए आम मतदाताओं को संदेश ही माना जाएगा।
–कांग्रेस के लिए संजीवनी तो भाजपा के लिए मुश्किल
प्रदेश के दमोह का उपचुनाव ने कांग्रेस के घाव पर मरहम लगाया है तो वहीं जीत इस समय संजीवनी बूटी से कम नहीं है तो वहीं भाजपा के लिए यह हार बैचेनी का कारण बनी हुई है। प्रदेश में आरोप प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है, भाजपा के अन्दर खाने से ही नेतृत्व परिवर्तन की आवाजें उठने लगी है, यह आवाजें यदि और बुलंद हुई तो भाजपा के लिए मुश्िकल बढाएंगी तो वहीं उपचुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद राहुल सिंह लोधी की सियासत भंवर में फंसती हुई नजर आ रही है। हालांकि सियासत में उतार चढाव का रहता है, प्रदेश की सियासत में आई गर्माहट और कितनी बढेगी यह तो वक्त ही बताएगा।