Madhy Pradesh

MP POLITICS: मालवा और चंबल के फेर में निगमों की ताजपोशियां

– निगमों की ओर निहार रहे हारे हुए नेता
– भाजपा को संतुलन साधने करना पड रही मशक्कत
मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश की सियासत 2018 के पहले जैसी थी वैसी अब नहीं रही है। प्रदेश की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। करीब 15 साल के अर्से के बाद प्रदेश में कांग्रेस ने सत्ता का स्वाद चखा था, मगर कांग्रेस का जायका अब बिगड चुका है तो इधर भाजपा ने सत्ता तो पा ली है, पर अब संतुलन साधने के लिए मशक्कत करना पड रही है। भाजपा में मालवा और चंबल का गठजोड आगे और कितना मजबूत होगा यह तो वक्त ही बताएगा।
गौर तलब है कि भाजपा की प्रदेश में अब पूर्ण बहुमत की सरकार है। जनता के बीच बस अब अपनी सार्थकता सिद्ध करना है यही एक चुनौती नहीं है, एक चुनौती और है जो हारे हुए मंत्री है एवं विधायक है उन्हें साधना भी आवश्यक है। भाजपा शामिल हुए तीन मंत्री उपचुनाव में हार गए है, ऐसे में उन्हे सत्ता दूर रहना खल तो रहा हैय मगर भाजपा की भी टेंशन बढा दी है। क्या उन्हें निगमों में जगह देकर सतुष्ट किया जाएगा, वहीं जो विधायक हारे है उन्हें भी उपक2त करने की चुनौती अभी सामने है।
निगमों पर रहा मालवा का दबदबा
मध्यप्रदेश में जब भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था, तब से ही निगमों में भाजपा नेताओं का अधिक दबदबा रहा है। प्रदेश के 14 निगमों में ज्यादातर निगम अध्यक्ष मालवा क्षेत्र के भाजपा नेता रहे हैए पर इस बार उपचुनाव के बाद सिथततियां बदली हुई है। सियायी गलियारों से जो खबरें छनकर आ रही हैए उन्हें माना जाए तो कुछ निगमों के पद इस बार चंबल के खाते में भी जाएंगे। निगमों में चंबल की हिस्सेदारी कितनी होगी यह तो अभी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है पर यह तो तय है कि अब निगमों में मालवा क्षेत्र के दबदबे का तिलिस्म टूटने जा रहा है।
करना पड सकता है संतोष
मध्यप्रदेश की सियासत में भाजपा में शामिल हुए कई अन्य नेताओं की निगाहें भी निगमों में ताजपोशी पर टिकी हुई है पर इस बार माना जा रहा है कि अध्यक्ष पदों के लिए कश्मकश ज्यादा है, ऐसे में भाजपा का दाम थामने वाले अन्य नेताओं को निगमों में उपाध्यक्ष् के पद से भी संतोष करना पड सकता है, मगर अभी तो कयास भर है, जब निगमों में ताजपोशियां तब स्थितियां और स्पष्ट हो पाएंगीए कौन निगमों के अध्यक्ष पद पर काबिज होगा और किसे संतोष करना पडेगा।
पेंच तो यह भी है
प्रदेश की सियासत के जानकार सूत्रों की माने तो इसमें पेंच यह भी है पूर्व में निगमों के पदों पर जो काबिज थे, उनमें से कुछ ऐसे कददावर नेता है जो दूसरे दलों से आए थे और उपक्रत किया गया था, वहीं कुछ नेता भाजपा के कददावर है, जो आम जनता से लेकर संगठन में भी अपनी पकड मजबूत रखते है। उनकी अनदेखी करना भी उतना आसान नहीं होगा। माना जा रहा है कि इस पेंच का सुलझाने में प्रदेश सरकार और भाजपा संगठन द्वारा खासी मशक्कत की जा रही है। पूरा खाका तैयार होने के बाद ही निगमों में ताज पोशियां होंगी। इस तरह की खबरें सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है।

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