विश्व डिजिटल ट्रांसफाॅरमेशन की दिशा में अग्रसर : प्रोफेसर अजय सिंह
— डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा चार दिवसीय वर्चुअल राष्ट्रीय काॅन्फरेंस
मध्यप्रदेश। डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू द्वारा “COVID-19 : Emerging Challenges and Dimensions of Management” विषय पर चार दिवसीय वर्चुअल राष्ट्रीय काॅन्फरेंस के 5 अगस्त को टेक्नीकल सत्र में बीज वक्तव्य के रूप में प्रो. अजय सिंह, श्री श्री विश्वविद्यालय कटक के कुलपति ने Artificial Intelligence shaping the future of HR विषय पर बोलते हुए कहा कि वर्तमान में पूरा विश्व डिजिटल ट्रांसफाॅरमेशन की दिशा में अग्रसर है। इसका मुख्य कारण व्यक्ति के जीवन में मशीनों और तथ्यगत व्यवस्थाओं को समाहित होना है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस एक ऐसी अवधारणा है जिसमें एक कम्पयूटर नियंत्रित रोबोट या एक साॅफ्टवेयर बुद्धिमानी से सोचता है, ठीक उसी तरह जिस तरह बुद्धिमान व्यक्ति सोचते हैं। बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाने का विज्ञान और इंजीनियरिंग है। इसका उपयेाग कार्य स्थलों पर तेजी से बढ़ रहा है। औद्योगिक क्षेत्रों में मानव संसाधन के चयन और भर्ती प्रक्रिया से प्रशिक्षण और विकास का कार्य इनके माध्यम से किया जा रहा है। साथ ही निपुणताओं को चिन्हित करने का कार्य भी इसके माध्यम से संभव है।
डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने वैश्विक महामारी से पूरी मानवता को प्रभावित किया। फैक्ट्री अधिनियम 1948 के पूर्व मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। किन्तु अधिनियम के क्रियान्वयन के बाद कुछ बदलाव आया, किन्तु वर्तमान में विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार 10 से 20 करोड़ व्यक्तियों के रोजगार छिन गए हैं। यह स्थिति सूक्ष्म उद्योगों में कार्यरत कर्मचारियों की रही। ऐसी स्थिति में सबसे चिंता का विषय यह रहा कि नियोक्ताओं द्वारा अपने कर्मचारियेां की सामाजिक सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए ? हमारा दुर्भाग्य है कि भारत में अधिनियमों में प्रावधान तो बहुत है लेकिन उनका क्रियान्वयन सुचारू तरीके से नहीं किया जा रहा है। औद्योगिक क्रान्ति के दशकों बाद भी स्थिति नहीं बदली है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इन्दौर के अर्थशास्त्र अध्ययनशाला के निदेशक प्रो. पीएन मिश्रा ने कहा कि श्रम और पूंजी दोनों उद्योगों के लिए जरूरी है। श्रम और पूंजी एक दूसरे के पूरक हैं। लेकिन महामारी में औद्योगिक संस्थानों ने अपने श्रमिकों को बेसहारा छोड़ दिया। श्रम और पूंजी का सौर्हादपूर्ण संबंध बना रहे, यह जरूरी है। भविष्य में ऐसे समय में राज्यों की सहभागिता या हस्तक्षेप अनिवार्य हो जाता है। असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों की स्थिति बदतर हो गयी है। त्रासदी की स्थिति में श्रमिकों के सुरक्षा की जिम्मेदारी नियोक्ता और राज्य की होनी चाहिए। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय की बात कहीं गयी है।
प्रस्तावना वक्तव्य एवं स्वागत उद्बोधन देते हुए काॅन्फ्रेंस के समन्वयक प्रो. आर.के. शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि कोविड-19 ने 2020 साल के आरंभ में ही नयी चुनौतियों को हमारे सामने ला खड़ा कर दिया। इस भयानक त्रासदी के समय पुनः अपने को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। औद्योगिक संस्थानों में मानव संसाधन को नयी निपुणताओं को विकसित करने की आवश्यकता है। संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों को नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करने का समय है।
प्रो. किशोर जाॅन ने समस्त अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान महामारी ने सभी क्षेत्रों में अनिश्चिता की स्थिति उत्पन्न हुयी है। सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की स्थिति निजी क्षेत्रों के कर्मचारियों से बेहतर है। मानव संसाधन के लिए नयी रणनीतियों को आत्मसात करते हुए अधिनियमों को क्रियान्वित करते हुए कार्य करना होगा।