सियासी गलियारों में प्याज पर चर्चा, कहीं इतिहास न दोहरा दें
मध्यप्रदेश। आने वाले चंद दिनों बाद मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव है। यह उपचुनाव सवा साल बाद सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस और 15 साल तक सत्ता का सुख भोगने वाली भाजपा के बीच स्वाभिमान का चुनाव है। हालांकि इधर राजनीतिक गलियारों में इसी बीच प्याज की बढी कीमतों को लेकर चर्चाएं जोरों पर है। 80 रुपए प्रतिकिलो जा पहुंची प्याज ने साल 1998 की याद ताजा करा दी हैं, जब प्याज की बढी कीमतों ने केन्द्र में बैठी भाजपा की सरकार को गिरा दिया था। इन दिनों भी यह चर्चा आम है कि प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव हैं, यदि समय रहते प्याज की कीमतों पर लगाम नहीं लगी तो कहीं ये इतिहास न दोहरा दें। हालांकि सियासत में इसे षडयंऋ के रूप में भी देखा जा रहा है।
प्याज की बढी कीमतों ने आम आदमी का बजट बिगाड दिया। कोरोना महामारी के चलते बेगारी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे लोगों के सामने अब महंगाई परेशानी का सबब बन रही है। बाजार अभी सही ढंग से पटरी पर नहीं आया है। लोगों की स्थिति अभी ठीक ढंग से सुधरी नहीं है। ऐसे में अब महंगाई कीचन का बजट भी बिगाड रही है।