Madhy Pradesh

मध्यप्रदेश में भाजपा के पास ब्राह्मण नेताओं का टोटा

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी इन दिनों मध्यप्रदेश में ब्राह्मण नेताओं की कमी से जूझ रही है। पार्टी के पास पहले पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, पूर्व कैबिनेट मंत्री अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा जैसे प्रदेशव्यापी पहचान रखने वाले ब्राह्मण वर्ग के सर्वमान्य नेता थे, जो अब बुजुर्गियत और हाशिए पर पहुंच जाने से निष्क्रिय हो गए हैं।

सरकार में भी छह ब्राह्मण मंत्री हैं, लेकिन ब्राह्मण वर्ग का सर्वमान्य नेता कोई नहीं बन पाया। अब संगठन और सरकार दोनों में ही कोई कद्दावर ब्राह्मण नेता नहीं बचा है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव सामने हैं, जिसकी तैयारी के लिए अब पार्टी चाहती है कि इस कमी को पूरा किया जाए।

प्रदेश भाजपा में लंबे समय से जातीय और भौगोलिक असंतुलन बना हुआ है। उपचुनाव को देखकर पार्टी ने पिछड़ा वर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए तीन विधायकों को मंत्री बना दिया, जबकि खुद मुख्यमंत्री श्ािवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से आते हैं। क्षत्रिय वर्ग से प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर, नंदकुमार सिंह चौहान और कप्तान सिंह, भूपेंद्र सिंह जैसे धाकड़ नाम शामिल हैं, लेकिन ब्राह्मण वर्ग में बड़े नेताओं का टोटा है।

पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी प्रदेश में भाजपा के आधार स्तंभ माने जाते थे। 2014 तक वे भोपाल के सांसद रहे। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष रहने के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी वे कई पदों पर रहे। 2003 में उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा सत्ता में आई थी पर अब वे सक्रिय नहीं हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के निधन के बाद केंद्र में प्रदेश का ब्राह्मण प्रतिनिधित्व खत्म हो गया है।

हाशिए पर अनूप-लक्ष्मीकांत

2013 से पहले तक अनूप मिश्रा और लक्ष्मीकांत शर्मा प्रदेश सरकार में मंत्री होने के साथ ही ब्राह्मण वर्ग में खासी पैठ रखा करते थे, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद से अनूप मिश्रा प्रदेश की राजनीति से दूर हो गए। अब वे सांसद जरूर हैं, लेकिन प्रदेश में कम सक्रिय हैं। व्यापमं घोटाले में नाम आने से लक्ष्मीकांत शर्मा स्वयं ही भाजपा की सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। शर्मा की ब्राह्मण वर्ग में खासी पैठ हुआ करती थी। ब्राह्मण नेता रघुनंदन शर्मा से भी भाजपा संगठन ने दूरी बना रखी है।

प्रभात झा मप्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे, अब राज्यसभा सदस्य हैं पर बिहार का मूल निवासी होने के कारण वे ब्राह्मण वर्ग में जनाधार वाले नेता नहीं बन पाए। पिछली विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष रहे चौधरी राकेशसिंह चतुर्वेदी को भाजपा ने शामिल जरूर किया पर उनका उपयोग नहीं किया।

छह मंत्री में कोई नहीं बन पाया ब्राह्मण चेहरा

शिवराज कैबिनेट में भी देखा जाए तो छह ब्राह्मण मंत्री हैं। जिनमें गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, अर्चना चिटनिस, राजेंद्र शुक्ल, दीपक जोशी, संजय पाठक शामिल हैं। भाजपा के नेता कहते हैं कि भार्गव पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं पिछले डेढ़ दशक से मंत्री हैं पर वे बुंदेलखंड से बाहर नहीं निकल पाए। नरोत्तम मिश्रा उत्तरप्रदेश और गुजरात चुनाव में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर पद-कद बढ़ाने के दावेदार बने हुए हैं। उनके केन्द्रीय स्तर पर भी मधुर संबंध हैं। राजेंद्र शुक्ल ने भी स्वयं को सिर्पु विंध्य की राजनीति तक समेटा हुआ है।

अर्चना चिटनिस पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बृजमोहन मिश्र की बेटी हैं। लंबे समय से मंत्री हैं। मालवा-निमाड़ के साथ पूरे प्रदेश में पहचान बनाने में सक्रिय हैं। बावजूद इसके कैबिनेट का कोई भी ऐसा सर्वमान्य चेहरा नहीं, जिसे ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधि माना जाए।

जातिगत राजनीति नहीं करती भाजपा

भाजपा योग्यता के आधार पर नेतृत्व का हमेशा स्वागत करती है। जातिगत राजनीति में भाजपा की कभी रुचि नहीं रही और न ही ये देशहित में है। यही कारण है कि भाजपा में सभी वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। आगे भी यही दृष्टिकोण प्रदेशहित में रहेगा।

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