114 साल पहले भोपाल से लखनऊ गए थे मशहूर टुंडे कबाब बनाने वाला हाजी परिवार
— जानिए लखनऊ के मशहूर टुंडे कबाब की कहानी
टुंडे कबाब को बनाने वाले टुंडे के वंशज रईस अहमद जो अब पचहत्तर के चपेटे में होंगे उनके पुरखे भोपाल के नवाब के यहां खानसामा हुआ करते थे। नवाब शौकीन तो बहुत थे पर उम्र ज्यादा हुई तो दांत भी साथ छोड़ने लगे । तभी ऐसे कबाब की जरुरत महसूस हुई तो मुंह में डालते ही घुल जाए । इसके लिए गोश्त को बारीक पीसकर और उसमें पपीते मिलाकर ऐसा कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही घुल जाए। साथ ही हाजमा दुरुस्त रखने और स्वाद के लिए उसमें कई मसाले मिलाए गए। यही हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया।
साल 1905 का कोई दिन था जब पहली बार अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। और अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान शुरू की। टुंडे की कहानी काफी रोचक और पुरानी है। साल 1905 का कोई दिन था जब पहली बार अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। और अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान शुरू की।
इन कबाबों का नाम टुंडे पड़ने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा है। रईस अहमद के वालिद हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन थे। एक बार पतंग के चक्कर में उनका हाथ टूट गया। जिसे बाद में काटना पड़ा। पतंग का शौक गया तो मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे। टुंडे होने की वजह से जो यहां कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब बोलने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब। पर इन कबाब के स्वाद ने लोगों को दीवाना बना दिया। इसमें मसालों का बड़ा कमाल था,और इनका दावा है कि आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है जो सौ साल पहले मिलाए जाते थे, आज तक उन्हें बदलने की जरूरत नहीं समझी।