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निर्भीक और साहसी पत्रकार का पुण्य स्मरण

 

   (अमित कुईया)

आज ही के दिन  (31 अगस्त ) आंचलिक पत्रकारिता के निर्भीक स्तंभ स्व ऋषभ गांधी ब्रह्मलीन हुए थे। सामाजिक सरोकारो को अपने व्यक्तित्व में समेटे स्व श्री गांधी न केवल एक साहसी पत्रकार रहे,बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से वह एक बड़े वर्ग में किसी न किसी रूप में हमेशा स्मरण में रहेंगे।

स्व ऋषभ गांधी 

दरअसल,वर्तमान में सक्रिय पत्रकारिता में कार्यरत आधा दर्जन पत्रकारों की एक फ़ौज उन्होंने ही खड़ी की थी।उस समय दैनिक फुरसत में फुर्सत के प्रबंध संपादक रहे स्व श्री गांधी ने इस पेशे में हाथ आजमाने आए पत्रकारिता की युवा पौध तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।स्थानीय स्तर पर प्रकाशित उनके द्वारा शुरू किए गए इस अखबार की जिले में अपनी एक धाक थी।स्वर्गीय श्री गांधी ने अपनी पैनी लेखनी के दम पर समाज के एक बड़े वर्ग को सुबह चाय की तरह इस अखबार को पढ़ने की एक लत सी पैदा कर दी थी।उनकी धारधार और निष्पक्ष लेखनी ने उस समय प्रशासनिक,राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओ को दुरुस्त करने के लिए कई ऐसी खबरो को लिखा,जो आज भी लोगो के स्मृति पटल पर अमिट है।
मेरी पत्रकारिता को दिशा देने में आपका एक बड़ा रोल था। मेरी पहली खबर दैनिक फुर्सत में प्रकाशित हुई थी,जिसका शीर्षक था “आम लोगो की पहुच से दूर हुआ आम”।हालांकि इस खबर को उस समय मेरे मार्गदर्शक पत्रकार पुरषोत्तम कुईया  ने लिखा था,लेकिन अखबार के मुख्यपृष्ठ पर यह खबर मेरे नाम से प्रकाशित हुई।पत्रकारिता में इस दिन का स्मरण सदा रहता है,क्योंकि खबर के प्रकाशन के बाद में बेहद उत्साहित था।उस समय लेखन की समझ का आभाव था,लेकिन इस ख़बर के प्रकाशन के बाद निरन्तर टूटा फूटा लिखने लगा,जो आज भी जारी है।
स्व श्री गांधी की कई खबरों को पढ़ने का अवसर उस समय मिला।आपके लेखन की पैनी शब्दाबली बेजोड़ थी।लेखन इतना मारक था,कि किसी के खिलाफ छपी खबर से हुए घांव जल्दी ही पुर पाना असम्भव स होता था।खबरो का जिक्र तो नही करता,लेकिन साहस इतना अदम्य होता था कि खबर के प्रकाशन के बाद जन्म लेने वाली चुनोतियो का सामना भी बड़ी निडरता से करते चाहे फिर हालात कुछ भी बने।
अंचल की साहसिक पत्रकारिता के पुरोधा पुरुष स्व श्री गांधी का व्यक्तित्व सामाजिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण था।शहर के सामाजिक,सांस्कृतिक और राष्ट्रीय हित से ओतप्रोत मनोभाव हमेशा उनके जहन में रहते थे। उनके खाने खिलाने के शौकीन मिजाज को लेकर भी वह स्मरण में रहते है।उस समय ताजे हरे भुट्टे की स्वादिष्ट कचौरी, जिसका नाम रुपाली की कचोरी था।यह कचोरी महज एक रुपए की थी और आपके प्रयास से कम दाम में उपलब्ध इस स्वादिष्ट कचौरी ने पूरे शहर में एक प्रसिद्धि पाई।
आज ही के दिन, इस घड़ी अंचल की साहसिक पत्रकारिता के इस पुरोधा पुरुष को शहर ने हमेशा..हमेशा के लिए खो दिया था।अचानक उनके प्राण पखेरू होने की इस खबर से पूरा शहर स्तब्ध था और हर मन दुखी…
व्यक्तित्व की विराटता के आगे शब्द और किस्से बौने पड़ जायंगे….यही विराम

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