अलग शैली की पुराने पत्रकार थे राजेन्द्र श्रीवास्तव
–स्मृति शेष राजेन्द्र श्रीवास्तव
देव श्रीमाली
आखिरकार आज वह दुःखद खबर आ ही गई । वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र श्रीवास्तव जी नही रहे। वे 71 वर्ष के युवा पत्रकार थे। बीते माह कोरोना संक्रमण का शिकार हुए थे तब से बीमार चल रहे थे ।
वे सहज सरल,किंतु ऊर्जा से भरे हुए पत्रकार थे। मेरा उनसे परिचय तब से है जब मैं ग्वालियर नही आया था बल्कि भिंड में रहकर ही काम करता था । लेकिन संभाग भर के पत्रकारों से उनकी मिलने मिलाने की आदत के चलते मैं भी उनके संपर्क का हिस्सा बन गया । ग्वालियर आया तो रिश्ते और प्रगाढ़ हुए । वे सबसे सतत संपर्क रखने वाले पत्रकार थे । वे मप्र श्रमजीवी पत्रकार संघ के आधारस्तंभो में से एक थे । वे तब से जुड़े थे जब संघ पूरी तरह लोकतांत्रिक था और प्रदेश में सब उसी छतरी के नीचे थे । उसमे बाकायदा चुनाव होता था । नब्बे के दशक की बात है ।एक बार ग्वालियर में संभागीय इकाई का चुनाव हुआ । राम मंदिर स्थित वाचनालय में चुनाव प्रक्रिया हुई । मैँ कोषाध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा । उम्र में सभी प्रत्याशियों से छोटा । सामने थे दिग्गज राजेन्द्र श्रीवास्तव । मैँ विजयी हुआ । प्रक्रिया निपटते ही राजेन्द्र भाई साहब मेरे पास आये और मुझे और अचल जी को पास ही एक ठेले पर चाय पिलाने ले गए और फिर अपने दुपहिया वाहन से मुझे आचरण प्रेस तक छोड़कर भी गए।
वे अजातशत्रु थे । वे आजन्म देशबंधु अखबार से जुड़े रहे । इसका सर्कुलेशन अंचल में कितना भी हो राजेन्द्र जी उनके लिए पूरी शिद्दत से काम करते थे । हर प्रेस कॉन्फ्रेंस ,आयोजन में उनकी उपस्थिति रहती । वे हर खबर भेजते थे । उन्होंने शिक्षा दर्शन पत्रिका अपने पिता की अमानत के रूप में ताउम्र निकाली।
बीते माह अपने कोरोना संक्रमण होने की जानकारी उन्होंने खुद वाटशेप्प संदेश भेजकर दी थी । लेकिन न वे फोन उठा रहे थे न जबाव दे रहे रहे थे । मैंने तमाम प्रयासों के बाद जानकारी हासिल की कि वे ग्वालियर के सुपर हॉस्पीटल में भर्ती हैं । फिर मैंने किसी के जरिये उन तक संदेश भिजवाया कि सब चिंतित है तो उसी दिन उन्होंने सबको वाटशेप्प संदेश भेजकर बताया कि कैसे उनके बेटे और बहू ने आकर उन्हें भर्ती कराया गया । अब स्वास्थ्य स्थिर है ।
लेकिन आज बुरी खबर आ गई । सुबह डॉ राम विद्रोही भाई साहब का फोन आया । वे बोले- राजेन्द्र को क्या हो गया ? मैँ समझ गया । मैंने कहा वे बीमार थे । बोले- सोशल मीडिया पर कुछ बुरा- बुरा पड़ा है । पता करके बताओ। वाटशेप्प खोली तो डॉ केशव पांडे जी का मैसेज था और फेसबुक खोला था तो श्री राकेश अचल जी का भावपूर्ण आलेख । दोनो पढ़कर आंखे सजल हो गईं ।
यद्धपि राजेन्द्र भाई साहब अपने पीछे एक सुखी परिवार छोड़कर गए है कदाचित वे नवोदित पत्रकारों के लिए एक अनुकरणीय पाठशाला भी थे । उनसे सक्रियता,समर्पण और सहजता के जरिये सादगी की पूंजी जुटाकर कैसे पत्रकारिता की जा सकती हक़ी ये सीखा जा सकता है । अक्रमकता और चर्चित पत्रकारिता से इतर खामोश और साइलेन्स पत्रकारिता की उनकी शैली अनूठी थी और सबसे अनूठा था उनका संपर्क खज़ाना । लोगो से संपर्क रखने में उनका कोई सानी नही । पत्रकार,अफसर,सामाजिक कार्यकर्ता हो या नेता सबसे वे सतत संपर्क रखते थे । खबरो पर सदैव उनकी पैनी निगाह रहती थी और निष्ठा के पक्के थे यही बजह रही कि वे अंतिम सांस तक देशबंधु से भी जुड़े रहे और श्रमजीवी पत्रकार संघ से भी । उनका जाना पत्रकारिता की एक बिरली शैली के आधारस्तम्भ का जाने जैसा है जिसकी क्षतिपूर्ति अब इस युग मे असम्भव है ।