आपको रुला देगी कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर बनी ये फिल्म
नई दिल्ली। The Kashmir Files Review: अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म द कश्मिर फाइल्स शुक्रवार को सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। कश्मीरी पंडितों की सच्ची त्रासदी पर आधारित ये फिल्म आपको हिला कर रख देगी। 1990 के का वो भयावह दौर जब कश्मीरी पंडितों को अपने ही घरों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था। फिल्म यह भी बताती है कि वो सिर्फ एक पलायन नहीं बल्कि नरसंहार था।
डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री कि इस फिल्म में ‘अनुच्छेद 370’ से लेकर कश्मीर के इतिहास और पौराणिक कथाओं पर भी बात की गई है। इस फिल्म में इस बात का जिक्र प्रमुखता से किया गया है कि कैसे राजनीतिक कारणों से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को सालों साल दबा कर रखा गया।
फिल्म की कहनी 1990 के दशक से शुरू होकर मौजूदा साल तक पहुंचती है। दिल्ली में पढ़ रहा कृष्णा (दर्शन कुमार) अपने दादाजी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए श्रीनगर आता है। कश्मीर के अतीत से बेखबर वो अपने परिवार से जुड़ी सच्चाई की खोज में लग जाता है। यहां उसकी मुलाकात अपने दादाजी के चार दोस्तों से होती है। उनके बीच धीरे-धीरे कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की चर्चा शुरू होती है और कहानी पहुंचती है 1990 में।
फिल्म में आगे दिखाया गया कि किस तरह कश्मीर की गलियों में आतंकी बंदूकें लेकर घूम हैं और कश्मीरी पंडितों को ढूंढ-ढूंढकर मारते हैं, क्या बुजुर्ग, क्या महिला, आतंकी बच्चों तक को नहीं छोड़ते। फिल्म में ये दृष्य देख आपकी रूह कांप जाएगी। आप कल्पना करने लग जाएंगे कि कैसा भय का माहौल होगा उस वक्त। कश्मीरी पंडितों पर हुई तमाम हिंसा को दिखाती इस में फिल्म ये भी दिखाया गया कि कैसे उस वक्त राज्य का प्रशासन भी असहाय हो गया था।
एक्टिंग की बात करें तो अनुपम खेर अपने अभियन से आपके दिलों में उतर जाएंगे। वहीं, मिथुन चक्रवर्ती ने शानदार काम किया है। इनके अलावा फिल्म में दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, प्रकाश बेलावड़ी, पुनीत इस्सर, अतुल श्रीवास्तव, चिन्मय मांडलेकर, भाषा सुंबली भी अहम किरदार में नजर आए हैं।
विवेक अग्निहोत्री ने सालों रिसर्च कर इस फिल्म की कहानी पर काम किया है जो स्क्रीन पर साफ नजर आता है। कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और नरसंहार की इस कहानी में निर्देशक ने कई मुद्दों को छुआ है। निर्देशक ने खासतौर पर तीन किरदारों के जरिए कश्मीरी पंडितों की पीड़ा दिखाने की कोशिश की है। हालांकि कहानी में कई बार चीजों को दोहराया भी गया है, जो आपको थोड़ा अटपटा लग सकता है।