कण कण में धड़कता है राजकपूर का दिल
-सबसे बड़ा शो मैन या सबसे बड़ा संप्रेषक
(राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार)
हिंदुस्तान के सबसे बड़े शोमैन थे राजकपूर । सारी उमर परदे पर कैमरे की आंख से कविता रचते रहे । करीब करीब चालीस बरस तक इस बेमिसाल कलाकार ने झूम झूम कर चाहने वालों पर अपने हुनर की दौलत लुटाई । राजकपूर का यह अनमोल खज़ाना है पुणे के लोनी में । कोई एक सौ बीस एकड़ का ज़र्रा ज़र्रा आज भी कपूर खानदान की खुशबू से महकता है ।अरसे तक पूरे परिवार के लिए यह एक मंदिर से कम न था । जब यह नीली आंखों वाला जादूगर सबको अलविदा कह गया तो उस परिवार के लिए इस विरासत को संभालना एक चुनौती से कम नहीं था । कपूर परिवार ने इसके लिए एमआईंटी परिवार के मुखिया विश्वनाथ कराड का चुनाव किया । कपूर खानदान चाहता था कि शैक्षणिक यज्ञ में शामिल किसी नेक इरादे वाले समूह को इसकी चाबी सौंपी जाए । विश्वनाथ जी ने इसी परिसर में न केवल राजकपूर की यादों को सहेजा है,बल्कि उसे आगे भी बढ़ाया है।एक बेजोड़ सम्प्रेषक को इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या हो सकती थी कि वहां से सारे संसार को प्रेम और शांति का संदेश संप्रेषित हो ।आज उसी परिसर से कराड परिवार विश्व शांति विश्वविद्यालय संचालित कर रहा है।संत ज्ञानेश्वर की धरती से अब ज्ञान का अदभुत झरना बह रहा है ।
मैं बीते सप्ताह इसी विश्वविद्यालय में पहले राष्ट्रीय मीडिया सेमिनार में हिस्सा लेने गया था।एक दोपहर भोजन के दरम्यान कार्यकारी अध्यक्ष राहुल कराड ने राजकपूर की यादों के समंदर में डुबकी लगाने का न्यौता दिया ।विश्वविद्यालय परिवार के ही श्री संकल्प ने राजकपूर से मिलाने की ज़िम्मेदारी निभाई । जैसे ही उस प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे उपवन में प्रवेश किया,मन वाकई झूम उठा । बाएं तरफ एकदम विशाल शिव मूर्ति ने चौंका दिया।अरे ! इसे कहां देखा है ? याद आया लोकप्रिय गीत घर आया मेरा परदेसी का दृश्य । एकदम वही । दाहिने तरफ नृत्य मुद्रा में नटराज।एक और फिल्म का मशहूर दृश्य आंखों के सामने नाचने लगा । फिर तो जैसे जैसे अंदर गए राजकपूर हमारे सामने अपनी हर फ़िल्म के अवतार रूप में सामने थे । पत्नी कृष्णाकपूर के साथ । इसके बाद सारी फ़िल्मों के राजकपूर एकदम आदमक़द मुद्राओं में सामने आते गए । पार्श्व में उनके गीत बज रहे थे । उनकी फिल्मों की नायिकाएं, गायिकाएं, नायक,खलनायक ,चरित्र अभिनेता,एकबारगी लगा जैसे समूची फ़िल्म इंडस्ट्री उतर आईं है । इसके बाद हम राजकपूर के अपने घर में थे। ज्यों का त्यों । कोई बदलाव नहीं।राजकपूर का ड्राइंग रूम,स्टडी, परिवार का गपशप केंद्र, बड़ा सा भव्य किचिन,जिसमें एक साथ कम से कम तीस चालीस लोग साथ बैठकर खा सकते थे।वह मिनी थिएटर,जहां बैठकर कपूर परिवार फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले एक साथ प्रिव्यू करता था।और राजकपूर का बेडरूम। देखते ही जी धक्क सा रह गया।कमरे में कुछ नहीं।केवल एक दरी पर अपने हाथ को मोड़कर सिरहाने लगाकर राजकपूर सोते थे । सारी उमर वे ऐसे ही सोया करते थे । हमारे सामने उनकी प्रतिमा लेटी थी । एकदम हूबहू राजकपूर।हमने उन्हें प्रणाम किया और आगे बढ़े। बॉबी का वह कमरा,जिसमें हम तुम एक कमरे में…..फिल्माया गया सामने था। प्रेमग्रंथ के सारे दृश्य सामने थे और राम तेरी गंगा मैली के तो अनेक शॉट्स हमारे सामने ओके हो रहे थे । कश्मीर के दृश्य भी यहीं से निकले ।हमारे कानों में साउंड, लाइट ,कैमरा,रेडी एक्शन गूंजने लगे । राजकपूर निर्देश दे रहे थे ।
सच । उस एहसास को शब्दों में बयान करना एकदम नामुमकिन । फिर भी कुछ तस्वीरों के ज़रिए आप तक वहां का चित्र उभारने की कोशिश की है ।भरोसा करिए।लौटने के बाद अभी तक राजकपूर की छवियां ज़ेहन से नहीं निकल रही हैं । आभार राहुलकराड जी ।आपने हमें एक अनोखे सम्मोहन के ज़रिए ऐसे तिलिस्मी लोक में पहुंचाया,जिससे वापसी असंभव है ।