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कंगना रनोट की धाकड़ से पहले मूक फिल्‍मों से ऐसे शुरू हुआ था एक्‍शन

मुंबई। फिल्‍म धाकड़ में अभिनेत्री कंगना रनोट रोंगटे खड़े कर देने वाले एक्‍शन करती नजर आ रही है। इससे पहले एमी जैक्‍सन, हेमा मालिनी, रेखा सरीखी कुछ अभिनेत्रियों ने फिल्‍मों में दमदार एक्‍शन किया है। हालांकि सिनेमा में अभिनेत्रियों के एक्‍शन की शुरुआत का श्रेय फियरलेस नाडिया को जाता है। फियरलेस नाडिया की स्टंट फिल्में वाडिया मूवीटोन को परिभाषित करती रहती हैं। इसके संस्‍थापक जमशेद बोमन होमी वाडिया और उनके भाई होमी वाडिया थे। नाडिया को ज्‍यादातर फिल्‍मों में निर्देशित करने वाले होमी वाडिया का जन्‍म 22 मई 1911 को हुआ था।

भारतीय सिनेमा में एक्‍शन जानर की फिल्‍में हमेशा से ही पसंद की जाती रही हैं। हालांकि एक्‍शन फिल्‍मों की शुरुआत का श्रेय जमशेद बोमन होमी वाडिया और उनसे दस साल छोटे भाई होमी वाडिया (वाडिया ब्रदर्स के नाम से प्रख्‍यात) को जाता है जिन्‍होंने वाडिया मूवी टोन की स्‍थापना की। जमशेद बचपन से ही सिनेमा के शौकीन थे। वक्‍त बढ़ने के साथ यह प्रेम गहराता गया। अंग्रेजी में स्‍नातक करने के बाद जमेशद सिविल सर्विसेस परीक्षा की तैयारी कर रहे थे उसी दौरान उनके पिता का निधन हो गया। ऐसे में परिवार की जिम्‍मेदारी जमशेद के कंधों पर आ गई। उन्‍होंने दिल्ली में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की। हालांकि सिनेमा के प्रति उनका प्‍यार कायम रहा। वह दिन में 10 से 12 कहानियां लिख लेते थे। उन्‍हें उम्‍मीद थी कि किसी दिन बॉम्बे के प्रोडक्‍शन हाउस को दे पाएंगे। उन्होंने पटकथा लेखन और कहानी कहने के अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए आखिरकार नौकरी छोड़ दी। हालांकि उनके फैसले ने उनके परिवार को नाराज कर दिया, लेकिन बाद में उनका यह फैसला सही साबित हुआ।

साल 1926 में उन्‍होंने फिल्‍ममेकिंग में कदम रखा। यह वह दौर था जब मूक फिल्मों को बोलती फिल्‍मों से खतरा महसूस हो रहा था। उनके द्वारा निर्मित पहली फिल्म वसंत लीला मूक सामाजिक फिल्म थी, जिसका निर्देशन एन.जी देवारे ने किया था। 1929 में बनी दूसरी फिल्म को बॉन्डेज या प्रतिज्ञा बंधन कहा गया, वह भी देवारे की एक और सामाजिक फिल्म थी। जमशेद अमेरिकी फिल्‍ममेकर डगलस फेयरबैंक्स की मूक फिल्म ‘द मार्क ऑफ जोरो’ से भी काफी प्रभावित थे। यही कारण है कि उन्होंने जो पहली मूक फिल्म निर्देशित की, वह थी थंडरबोल्ट या दिलेर डाकू यह द मार्क आफ जोरो से प्रेरित थी। फिल्म की सफलता के बाद, जमशेद वाडिया ने वर्ष 1932 में भारत की पहली रेलरोड थ्रिलर फिल्‍म तूफान मेल बनाई। यह हेलेन होम्स की रेल श्रृंखला से प्रेरित फिल्म थी। पूरी फिल्म को रियल लोकेशन पर शूट किया गया था। उस समय होमी वाडिया, जो हमेशा से सिनेमा की तकनीकी में रुचि रखते थे, कैमरामैन थे। तूफान मेल के बाद, जमशेद ने लायन मैन, द अमेजन जैसी कई स्टंट फिल्में बनाईं। द अमेजन गेमचेंजर साबित हुई। इस फिल्म में एक्शन स्टार मिस पद्मा ने अभिनय किया और उन्हें रक्षक के रूप में चित्रित किया जो उस समय काफी विसंगतिपूर्ण था। फिल्म की सफलता ने जमेशद वाडिया को महिला प्रधान फिल्‍मों के साथ एक्शन फिल्मों की क्षमता का एहसास कराया।

साल 1933 में उन्‍होंने भाई होमी के साथ मिलकर वाडिया मूवी टोन की स्‍थापना की। इस बैनर तले उन्‍होंने अपनी पहली बोलती फिल्‍म ‘लाल-ए-यमन’ बनाई जोकि अरेबियन नाइट्स से प्रेरित थी। उसके बाद जमशेद की पहचान मैरी एन इवांस उर्फ फियरलेस नाडिया से हुई। वाडिया बंधुओं के स्टंट प्रेम को कला के रूप में बदलने के प्रयासों के लिए नीली आंखों वाली, तैराक, बैले-प्रशिक्षित, बड़े-कूल्हों वाली गोरी नाडिया महत्वपूर्ण बन गई। आस्‍ट्रेलिया के पर्थ में जन्‍मी नाडिया की खोज जमशेद ने की थी लेकिन यह होमी थे जिन्होंने पहचाना की स्कॉटिश लहजे वाली इस मेमसाहब की भाषा उनका ‘शरीर’ थी। हिंदी में कठिनाई के कारण उन्होंने नाडिया के संवाद को न्यूनतम रखा। साल 1935 में रिलीज फियरलेस नाडिया अभिनीत हंटरवाली बॉक्‍स आफिस पर हिट रही। यह पहली बार भारतीय सिनेमा में महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली पारंपरिक रूप से विनम्र भूमिकाओं को चुनौती दे रहा था। भारत की स्टंट क्वीन ने कई आश्चर्यजनक और खतरनाक स्टंट किए, जिसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर काम किया था। इस फिल्म ने भारतीय फिल्म उद्योग में फियरलेस नाडिया युग की शुरुआत की।होमी ने नाडिया को हंटरवाली के बाद जंगल प्रिंसेस, मिस फ्रंटियर मेल, बबंईवाली, पंजाब मेल और डायमंड क्वीन समेत कई फिल्‍मों में निर्देशित किया। साथ ही सामाजिक संदेशों को भी रखा जिसके प्रति उनके भाई का झुकाव था।

दरअसल, उस समय आजादी की मांग को लेकर स्वतंत्रता संग्राम तेजी पकड़ रहा था। जमशेद उससे जुड़े थे। बहरहाल, नाडिया सिर्फ एक स्टंट हीरोइन नहीं थीं, वह नए साउंड युग की स्टंट क्वीन थीं। होमी ने उन्‍हें वाडिया मूवी टोन की हीरोइन बना दिया था। वह किसी भी मायने में प्रख्‍यात बांबे टाकीज की नायिका देविका रानी से कम नहीं थी। उस समय नाडिया को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रवादी रंगों के साथ पूरा कास्‍ट्यूम ड्रामा और कल्पनाओं को गढ़ा जाता था। उन्हें हिंदी सिखाई गई और साड़ी पहनना सिखाया गया। वाडिया के सबसे बेहतरीन स्टंटमैन बोमन श्रॉफ और उस्ताद हक ने उन्हें किक और पंच करना सिखाया। फिल्मों की प्रचार सामग्री में उन्हें ‘बॉम्बे-वाली’ और एक बहादुर भारतीय लड़की, जिसने अपने लोगों और देश के लिए शाही विलासिता का त्याग किया के रूप में प्रचारित किया जाता था। जबकि नाडिया के पिता ब्रिटिश सेना में सैनिक थे जिन्‍होंने प्रथम विश्व युद्ध लड़ा था। वह युद्ध के बाद विभिन्न पदों पर बॉम्बे भेजे गए ब्रिटिश नागरिकों में से एक थे। फियरलेस नाडिया ने साबित किया कि कमजोर समझी जाने वाली महिला स्टंट करने में पुरुषों से कमतर नहीं है। भारतीय दर्शकों को उनका स्‍टंट काफी रास भी आता था। साल 1942 में क्रिएटिव मतभेद के चलते वाडिया ब्रदर्स अलग हो गए।

होमी वाडिया ने बसंत पिक्‍चर्स की शुरुआत की और ज्‍यादातर फियरलेस नाडिया की फिल्‍मों को निर्देशित किया। अपने पांच दशक के करियर में होमी ने चालीस से ज्‍यादा फिल्‍में निर्देशित की। हालांकि अलगाव का दोनों भाइयों के काम पर असर नहीं पड़ा। जमशेद होमी की फिल्‍मों की एडीटिंग और संगीत का काम देखते थे। वही होमी उनकी फिल्‍मों का निर्देशन करते थे। नाडिया और होमी वाडिया ने 1961 में शादी की। बताया जाता है कि चौथी फिल्म के बाद ही दोनों में प्यार हो गया था। एक फिल्‍म की शूटिंग के दौरान स्टूडियो सेट की छत से कूदने के बाद होमी ने उन्हें फियरलेस नाडिया का नाम दिया। दोनों की शादी काफी खुशहाल रही। करीब साठ साल की उम्र में की कई गई नाडिया की अंतिम फिल्‍म खिलाड़ी (1968) थी । पचास से ज्‍यादा फिल्‍मों में काम करने वाली नाडिया ने अपनी फिल्‍मों में स्‍टंट खुद ही किए थे। झूमर से झूलने और चट्टानों से कूदने से लेकर तेज रफ्तार ट्रेन को पकड़ने और शेरों से दोस्ती करने तक, उन्‍होंने यह सब आसानी से किया। उन्‍होंने उस दौर में अपना स्‍टारडम हासिल किया और इस अवधि के दौरान भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे अधिक फीस पाने वाली अभिनेत्रियों में से एक बन गई। जनता से उन्हें इतना प्‍यार मिला कि उनके उपनाम ‘हंटरवाली’ पर देश में कई ब्रांड के बेल्ट, बैग, जूते और कपड़े बेचे गए।

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