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1000 रुपए महीना पाने वाले प्रोग्रामर की जुबानी TCS की कहानी

मल्टीमीडिया डेस्क। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस भारत की पहली ऐसी कंपनी बन गई है, जिसकी मार्केट कैप 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई है। टीसीएस का अब तक का सफर बहुत रोमांचक रहा है। इस बारे में टीसीएस के सीईओ और एमडी रह चुके एस. रामादोराई ने अपनी किताब ‘द टीसीएस स्टोरी…एंड बियॉन्ड’ में बताया है। एक नजर टीसीएस को लेकर किताब में लिखी गई रोचक बातों पर –

– 1960 के दशक में टीसीएस की नींव पड़ी थी। तब जेआरडी टाटा के सामने मौखिक प्रस्ताव रखा गया कि टाटा समूह को डाटा प्रोसेसिंग की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

– तब दुनिया की अलग-अलग कंपनियां इस पर काम शुरू कर चुकी थीं। जेआरडी ने तुरंत विचार किया और प्रस्ताव पास कर दिया। ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा सन्स ने इसमें 50 लाख के निवेश का ऐलान भी कर दिया।

– अब सबसे बड़ी चुनौती थी योजना को अमलीजामा पहनाने की। 1968 तक नाम फाइनल हो चुका था – टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज। फकीर चंद कोहली को इसका इंचार्ज बना दिया गया था। एमआईटी से निकले कोहली अब तक टाटा इलेक्ट्रिक (अब टाटा मोटर्स) में सेवाएं दे रहे थे।

– कोहली को यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे टीसीएस को जमीनी स्तर पर खड़ा करें। खास बात यह है कि किताब में कोहली को एक ‘उदार तानाशाह’ करार दिया गया है।

– अगले साल टीसीएस में हुई रामादोराई की इंट्री। तब रामादोराई ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से पढ़ाई खत्म की ही थी और कुछ समय के लिए अमेरिका के नेशनल कैश रजिस्ट्रार में काम किया था।

– रामादोराई वहां से 12 हजार डॉलर की नौकरी छोड़कर आए थे और टीसीएस में उन्हें एक हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर प्रोग्रामर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

– रामादोराई ने किताब में लिखा है कि उन्होंने अमेरिका छोड़कर भारत आने का फैसला अपनी होने वाली पत्नी महालक्ष्मी की एक शर्त के कारण लिया था।

– इसके साथ ही तमिल ब्राह्रण परिवार का युवा रामादोराई, कोहली के मार्गदर्शन में देश में कम्प्युटर क्रांति लाने के पथ पर चल पड़ा।

टीसीएस को शुरुआती काम टाटा ग्रुप की दूसरी कंपनियों से ही मिला। ऑर्डर कम पड़े तो कंपनी ने ईरान का रुख किया, जहां टाटा समूह ने पॉवर स्टेशन्स के लिए अपना नया प्रोजेक्ट शुरू किया था।

– इसके बाद एक मौका ऐसा आया, जब कंपनी के कामकाज का तरीका पूरी तरह बदल गया। 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने फॉरेन एक्सचेंज रेग्युलेशन एक्ट (फेरा) लागू किया था। इससे देश में विदेशी उपकरणों के आयात की सीमा तय हो गई थी। साथ ही देश में कोई भी मल्टीनेशनल्स कंपनी ज्वाइंट वेंचर में 40 फीसदी से ज्यादा होल्डिंग नहीं रख पाएगी।

– इस फैसले के बाद आईबीएम को भारत में थोड़ा पीछे हटना पड़ा और टीसीएस को तेजी से उड़ान भरने का मौका मिला। यह टीसीएस के लिए बहुत बड़ी खबर रही, क्योंकि अब तक भारतीय प्रोग्रामर्स आईबीएम मैनफ्रेम्स पर ही काम कर रहे थे। अब टाटा ने तेजी से अपने सॉफ्टवेयर बनाने शुरू कर दिए।

– इसके लिए Burroughs से करार किया गया, जो उस समय माइक्रो-प्रोग्रामिंग और सॉफ्टवेर आर्किटेक्चर में सबसे आगे थी। यहीं से भारत की ग्रेट इंडियन आउटसॉर्सिंग स्टोरी शुरू हुई। टीसीएस ने अपने लोगों को अमेरिका भेजा, ताकि वे यह सीख पाएें कि भारत में आईबीएम के क्लाइंट्स को टीसीएस पर कैसे शिफ्ट किया जाए।

– 90 के दशक तक टीसीएस दुनिया में जाना पहचाना नाम हो गया था। कंपनी फायनेंशियल सर्विसेस में एक्सपर्ट हो गई थी। सितंबर 1996 में रामादोराई को कंपनी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया गया।

– 2002 में TCS देश की पहली $1-बिलियन सॉफ्यवेयर कंपनी बनी। 2010 में टीसीएस 2500 करोड़ की कंपनी बन गई। उसके बाद 50,000 करोड़ का आंकड़ा इसने वर्ष 2013 में और 7500 करोड़ 2014 में पार कर लिया था।

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