दिवालिया कानून में बदलाव की सिफारिश, अब रियल टाइम में प्रक्रिया होगी पूरी
सरकार एक बार फिर दिवालिया कानून में कुछ अहम संशोधन करने की तैयारी में है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में अमेरिका व अन्य विकसित देशों की तरफ भारत में भी रियल टाइम में कंपनियों को दिवालिया करने की प्रक्रिया पूरी हो जाए।
यानी दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन दाखिल होने के कुछ ही हफ्ते या अमूमन एक महीने के भीतर सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाएं। यह बात कंपनी मामलों के सचिव आइ. श्रीनिवास ने सीआइआइ की तरफ से आयोजित एक सेमिनार में दी। यह सेमिनार दिवालिया कानून लागू होने की दशा व दिशा पर आयोजित की गई थी।
श्रीनिवास ने बताया कि दिवालिया कानून में संशोधन करने पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने अपने सुझाव सरकार को दे दिए हैं और उन्हें किस तरह से लागू किया जाए, इस पर विचार हो रहा है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जो भी संशोधन लागू होंगे, वे नए मामलों में ही लागू होंगे।
दिवालिया कानून के तहत जिन मामलों पर अभी प्रक्रिया जारी है, उन पर नए संशोधन लागू नहीं होंगे। दिवालिया कानून के तहत अभी तक 650 कंपनियों के मामले दायर किये गये हैं। इनमें से 150 कंपनियां ऐसी है जिन्होंने स्वयं ही दिवालिया करने के मामले दायर किये हैं।
इन मामलों को तेजी से निपटाने के लिए सरकार नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की ज्यादा बेंच बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। अभी देश में एनसीएलटी की 11 बेंच हैं जिन्हें दिवालिया के सारे मामलों पर अंतिम फैसला करना है।
कुल एनपीए के मुकाबले बट्टे खाते में डाले कर्ज घटे-
कुल फंसे कर्ज या एनपीए के अनुपात में बट्टे खाते में डाले गये कर्ज घटे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2017 को समाप्त वित्त वर्ष में कुल एनपीए के मुकाबले 13 फीसद कर्जे बट्टे खाते में डाले गये जबकि मार्च 2011 में समाप्त वित्त वर्ष में 25 फीसद कर्ज बट्टे खाते में डाले गये थे।
लगातार बढ़ता एनपीए बैंकिंग उद्योग के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है। बैंक इसे कम करने के लिए बट्टे खाते में डालने का विकल्प अपनाते हैं। इसके लिए उन्हें अपने मुनाफे में से सौ फीसद राशि निकालकर ऐसे कर्जों की भरपाई करनी होती है। हालांकि इससे कर्जदार पर देनदारी खत्म नहीं होती है। बैंक कानूनी तौर पर वसूली के प्रयास करते रहते हैं।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2006 में कुल एनपीए के मुकाबले 21 फीसद कर्ज बट्टे खाते में डाले गये। मार्च 2011 में यह राशि बढ़कर 25 फीसद हो गई। जबकि मार्च 2015 में यह 18 फीसद और मार्च 2017 में 13 फीसद रह गई।