कपड़ों को गैर-इस्लामिक बता मुझे सड़क पर पीटा:ईरान सरकार पर भरोसा नहीं, प्रोटेस्ट बंद कराने के लिए खत्म की मॉरैलिटी पुलिस
‘उन्होंने (मॉरैलिटी पुलिस) मुझे मेट्रो स्टेशन के पास से पकड़ा, मुझे पीटने लगे। मैंने पियर्सिंग करा रखी थी, उनके मुताबिक ये गैर-इस्लामिक था। उन्होंने कहा कि मैंने कपड़े भी ठीक से नहीं पहने हैं, वे मुझे पीटते रहे।’
26 साल की ईरानी महिला दोन्या फर्द ये बताते हुए घबराकर रोने लगती हैं। वे बताती हैं- ‘मेरी मां को भी जेल ले गए थे, उसे री-एजुकेशन सेंटर कहते थे। वहां उन्हें रोज पीटते थे, कोड़े मारते थे।’
ऐसा ही अनुभव परादिस मेहदवी का है। वे कहती हैं- ‘ये साल 2007 की बात है। मैं यूनिवर्सिटी ऑफ तेहरान में जेंडर और सेक्सुअलिटी पर लेक्चर दे रही थी। अचानक हंगामा शुरू हुआ, सारे स्टूडेंट इधर-उधर भागने लगे।
ईरान मॉरैलिटी पुलिस जिसे गाइडेंस पुलिस या गश्त-ए-इरशाद के नाम से भी जाना जाता है, के जवान धड़धड़ाते हुए घुस आए। मुझे जबरदस्ती स्टेज से नीचे खींच लिया गया, तभी एक हाथ मेरी तरफ उठा और मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।’
इस घटना के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ मोंटाना की प्रोवोस्ट परादिस मेहदवी पर ईरानी सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने के आरोप लगे। 33 दिन तक हाउस अरेस्ट कर दिया गया। उन्हें आखिरकार देश छोड़ना पड़ा।
मॉरैलिटी पुलिस को जिम्मेदारी मिली थी कि वह पब्लिक प्लेस पर हिजाब कानून का पालन कराए और उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई करे।
अमेरिका में रह रहे ईरानी पत्रकार ओमेद मेमारियन बताते हैं- ‘औरतों को सड़क से जबरदस्ती घसीट कर मॉरैलिटी पुलिस की वैन में डाल दिया जाता है। ये लोग बीच सड़क पर महिलाओं को पीटते हैं उनके खिलाफ हिंसा करते हैं। महिलाएं चीखती रह जाती हैं और ये उन्हें कथित री-एजुकेशन सेंटर्स में डाल देते हैं।’
ये हिंसक कहानियां उस मॉरैलिटी पुलिस की हैं, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि ईरान सरकार ने प्रोटेस्ट के दबाव में इसे खत्म कर दिया है। हालांकि, ईरानी स्टेट मीडिया ISNA (ईरानियन स्टूडेंट न्यूज एजेंसी), IRNA (इस्लामिक रिपब्लिक न्यूज एजेंसी) या फिर FARS ने इस खबर की पुष्टि नहीं की है। ईरानी सरकार की तरफ से भी इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
ये सारी चर्चा तब शुरू हुई, जब ईरान के प्रॉसिक्यूटर जनरल ने एक धार्मिक सम्मेलन में कहा है कि मॉरैलिटी पुलिस को भंग कर दिया गया है। हालांकि, प्रॉसिक्यूटर जनरल मोहम्मद जफर मॉन्ताजेरी के इस बयान की अब तक पुष्टि नहीं हो पाई है। एक्सपर्ट्स और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट ईरानी सरकार के इस फैसले को शक की नजर से देख रहे हैं। ज्यादातर का मानना है कि विरोध को कम करने और लोगों को भ्रम में डालने के लिए ये खबर जानबूझकर फैलाई गई हो सकती है।
प्रोटेस्ट का नारा- ‘औरतें, जिंदगी और आजादी’
महसा अमीनी की मौत के बाद ‘जिन, जां, आजादी’ यानी औरत, जिंदगी और आजादी का नारा ईरान के हर शहर में गूंजने लगा। राजधानी तेहरान के चौराहों पर महिलाओं के साथ पुरुष भी निकल आए।
महसा अमीनी की मौत के बाद ‘जिन, जां, आजादी’ यानी औरत, जिंदगी और आजादी का नारा ईरान के हर शहर में गूंजने लगा। राजधानी तेहरान के चौराहों पर महिलाओं के साथ पुरुष भी निकल आए।
ईरान में कुर्द महिला महसा अमीनी की सितंबर में कथित तौर पर मॉरैलिटी पुलिस के हाथों मौत के बाद से ही देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं। मानवाधिकार समूहों के मुताबिक, इन प्रदर्शनों में अब तक 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि ईरान सरकार की सुरक्षा परिषद के मुताबिक, मरने वालों का आंकड़ा 200 के पार है।
वहीं, ईरान के गृह मंत्रालय के मुताबिक प्रदर्शनों की वजह से अब तक 40 मिलियन डॉलर ( लगभग 325 करोड़ रुपए) की संपत्ति को नुकसान हो चुका है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, इनमें सरकारी इमारतें, वाहन और निजी प्रॉपर्टी शामिल हैं।
फीफा वर्ल्ड कप खेलने गई ईरानी फुटबॉल टीम ने राष्ट्रगान न गाकर भी इस प्रदर्शन का समर्थन किया है। दुनिया भर में महिलाएं प्रोटेस्ट के समर्थन में अपने बाल काटते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर रही हैं।
ये बदलाव का संकेत नहीं, विरोध कम करने के लिए सरकार पीछे हट रही
किताब ‘शैडो कमांडर’ के लेखक, ईरानी मामलों के जानकार और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में रिसर्चर अराश अजीजी कहते हैं, ’यह दावा अस्पष्ट है। मौजूदा हालात में इस तरह की बातें किसी बड़े बदलाव का संकेत नहीं देती। हालांकि, ऐसे कई संकेत हैं कि ईरानी सत्ता में कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो फिलहाल पीछे हटना चाहते हैं, जैसे हिजाब के नियमों में ढील देना या उन्हें नई तरह से पेश करना।’
अजीजी आगे कहते हैं, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अली शमखानी ने हाल ही में अजर मंसूरी के साथ मुलाकात की है। मंसूरी ईरान की मुख्य सुधारवादी पार्टी के नेता हैं। उन्होंने इंटरनेट से प्रतिबंध हटाने और प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने का सुझाव दिया है।
गृह मंत्री अहमद वाहिदी ने हाल ही में कहा था कि फैक्ट फाइंडिंग कमीशन में प्रदर्शनकारी तो क्या किसी राजनीतिक दल का भी कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं किया जाएगा। वाहिदी ने ये तक कहा है कि ज्यादातर प्रदर्शनकारी दंगाई हैं।’
मॉरैलिटी पुलिस का भंग होना काफी नहीं
उधर दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि अगर सरकार ये कदम उठा भी रही है तो ये काफी नहीं है। इस समय लग्जमबर्ग में रह रहे ईरान के मानवाधिकार संगठन हेंगवा से जुड़े अजहिन शेखी कहते हैं, ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ने कुर्दिस्तान और बलोचिस्तान इलाके में मानवता के खिलाफ अपराध किए हैं। इन प्रदर्शनों में लोगों की मांग मौजूदा सत्ता को बदलना और ऐसा लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना है, जहां सबको अधिकार मिले।
मौजूदा सत्ता ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि प्रदर्शन मॉरैलिटी पुलिस के खिलाफ थे, लेकिन मॉरैलिटी पुलिस ईरान के सुरक्षाबलों का महज एक अंग है। ईरान की मौजूदा सत्ता के इतिहास से अब तक ईरान के सुरक्षाबल मानवाधिकारों का उल्लंघन करते रहे हैं।’
शेखी कहते हैं, ‘हिजाब के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सैकड़ों नागरिक मार दिए गए हैं। हजारों घायल हुए हैं और अनगिनत ऐसे हैं जो अपाहिज हो गए हैं। हजारों लोग कैद में है और उनके साथ क्या हो रहा है किसी को पता नहीं है। ऐसे में अगर सरकार का ये कदम सिर्फ दिखावा ही है।’
मॉरैलिटी पुलिस को करप्शन से दिक्कत नहीं, सिर्फ औरतों के कपड़ों पर नजर
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मुक्तदर खान कहते हैं, ‘करीब 16 साल से मॉरैलिटी पुलिस स्वतंत्र रूप से काम कर रही थी। ये ईरान की जूडिशरी के तहत भी नहीं आती थी। इस पुलिस बल का रवैया राष्ट्रपति की विचारधारा पर निर्भर करता था। अगर कुछ सुधारवादी राष्ट्रपति आते थे तो ये नरम होती थी। अगर रूढ़िवादी राष्ट्रपति आते थे तो ये बहुत सख्त हो जाती थी।
औरतों के लिबास, मेकअप, वे कहां आ-जा सकती हैं, इस पर कड़ी नजर रखी जाती थी। ये भी एक विरोधाभास ही है कि इसे मॉरैलिटी पुलिस कहा जाता है, क्योंकि ना ये भ्रष्टाचार पर ध्यान देती है ना झूठ पर, इसकी नजर सिर्फ औरतों के लिबास और आने-जाने पर होती है।’
प्रोफेसर खान को भी ईरान सरकार की नीयत पर शक है। प्रोफेसर खान कहते हैं, ‘ईरान में लगभग ढाई महीने से प्रदर्शन चल रहे हैं, सैकड़ों लोग अब तक मारे गए हैं, ईरान की सरकार के बारे में दुनियाभर में ये राय बन रही है कि ये दमनकारी सरकार है, जो आम लोगों को प्रताड़ित कर रही है।
ऐसे में अब मॉरैलिटी पुलिस को हटाए जाने का ये कदम अच्छा है, खासकर ईरानी महिलाओं के लिए। इसे लेकर कई शक भी हैं। सवाल ये है कि क्या ये वाकई में ईरान की सरकार की नीति और नजरिए में हुआ बदलाव है या फिर ये प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए उठाया गया एक कदम है?
किसी नए नाम से न लौट आए मॉरैलिटी पुलिस
ईरान सरकार के इस फैसले के बाद एक सवाल ये भी उठ रहा है कि प्रोटेस्ट ठंडा होने के बाद मॉरैलिटी पुलिस को फिर किसी और नाम से वापस लाया जा सकता है। जो हजारों लोग मॉरैलिटी पुलिस डिपार्टमेंट में काम कर रहे हैं, क्या उनकी नौकरियां खत्म हो रही हैं? उन्हें किसी और विभाग में भेजा जा रहा है? फिलहाल इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। ऐसे में जानकारों का मानना है कि अभी इस फैसले पर शक किए जाने की कई बड़ी वजह हैं।
ईरान सरकार के इस फैसले की खबर आने के बाद भी ईरानी सोशल मीडिया पर प्रदर्शनकारी गुस्से का इजहार कर रहे हैं। कई लोगों ने लिखा है कि प्रदर्शन मॉरैलिटी पुलिस नहीं, बल्कि ईरानी सत्ता के खिलाफ हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या मॉरैलिटी पुलिस को खत्म किए जाने के बाद प्रदर्शन शांत होंगे?
प्रोफेसर खान कहते हैं, ‘ये वक्त ही बताएगा कि इस फैसले का प्रदर्शनों पर क्या असर होगा, क्योंकि प्रदर्शन की कई और मांगें भी हैं। ज्यादातर लोग जो इस प्रदर्शन में मारे गए हैं, वो कुर्द हैं और सुन्नी मुसलमान भी हैं। ऐसे में हो सकता है कि ये प्रोटेस्ट चलते रहे हैं।
हालांकि कई बार इस तरह के प्रदर्शन सरकार के एक दो मांगें मान लेने पर ठंडे भी पड़ जाते हैं, क्योंकि उनके पीछे कोई साफ रणनीति या सोच नहीं होती है। दुर्भाग्यवश प्रदर्शनकारियों का न कोई स्पष्ट नेतृत्व है और ना ही मांग।
सवाल पर अराश अजीजी की राय भी लगभग ऐसी ही है। वो कहते हैं, ‘अगर ईरानी सत्ता वाकई में गश्त-ए-इरशाद को खत्म करती है, तब भी ये देरी से उठाया गया कदम है और इससे प्रदर्शनकारी शायद ही शांत हों। अगर सरकार वाकई में प्रदर्शनों को शांत करना चाहती है तो इससे कहीं बड़े कदम उठाने होंगे।’