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उत्तराखंड में राजनीति के नए हरफनमौला के रूप में उभरे यशपाल आर्य, 21 सालों में निभाए कई किरदार

देहरादून : यशपाल आर्य उत्तराखंड में राजनीति के नए हरफनमौला के रूप में उभर कर आए हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद 21 वर्षों में इतने किरदार निभाए कि इन पर यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है। वर्ष 2002 में पहली निर्वाचित विधानसभा में बहुमत मिलने पर कांग्रेस सत्ता में आई तो आर्य विधानसभा अध्यक्ष बने। पांच साल बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो आर्य बन गए प्रदेश अध्यक्ष।

इस पद पर दो कार्यकाल पूरे किए। वर्ष 2012 में कांग्रेस ने सरकार बनाई तो ये बने मंत्री। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आर्य ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा। टिकट मिला, जीत दर्ज की और भाजपा सरकार में भी बन गए मंत्री। फिर 2021 में आर्य ने कांग्रेस में वापसी की राह पकड़ी। चुनाव जीत गए, मगर कांग्रेस हार गई। अब पार्टी ने इन्हें नेता विधायक दल, यानी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया है।

फिर जीत की राह पर भाजपा

उत्तराखंड के हिस्से राज्यसभा की तीन सीटें हैं। इनमें से दो भाजपा, एक कांग्रेस के पास है। कांग्रेस के प्रदीप टम्टा का कार्यकाल इसी महीने समाप्त हो रहा है। अब जल्द इस सीट के लिए चुनाव होना है। राज्य की पांचवीं विधानसभा में भाजपा के पास दो-तिहाई बहुमत है। इसका मतलब कि चुनाव में भाजपा की जीत पक्की। भाजपा किसे प्रत्याशी बनाएगी, अब सबकी नजरें इस पर टिकी हैं।

दो पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और त्रिवेंद्र सिंह रावत मजबूत दावेदार हैं। संगठन में लंबे समय से सक्रिय ज्योति गैरोला व अनिल गोयल के नामों की भी चर्चा है। महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री दीप्ती रावत भारद्वाज और पूर्व विधायक आशा नौटियाल का नाम भी सुनाई दे रहा है। जल्द साफ हो जाएगा कि कौन उच्च सदन में जाने के लिए नामांकन करेगा। यह पहली बार होगा जब उत्तराखंड में पांचों लोकसभा व तीनों राज्यसभा सीट भाजपा के कब्जे में होंगी।

सावधान, मंत्री जी शहर में हैं

भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है तो नेताओं का उत्साह आसमान पर होना स्वाभाविक है। उस पर बात अगर मंत्रियों की है तो उत्साहित होना बनता भी है। तो अब स्थिति यह है कि पद संभालते ही तमाम मंत्री अपने-अपने विभागों की कार्यशैली सुधारने में जुट गए हैं। कुछ तो अपने विभागों से संबंधित कार्यालयों में छापेमारी की रणनीति पर चल रहे हैं।

अभी तक खेल एवं युवा कल्याण मंत्री रेखा आर्य, वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज अचानक मौके पर पहुंच कर्मचारियों-अधिकारियों को चौंका चुके हैं। अब यह तो मुमकिन नहीं कि सब जगह सब कुछ चौकस ही हो, लिहाजा कर्मचारियों को मंत्रियों के सख्त तेवरों से दो-चार होना पड़ रहा है। इससे कार्य संस्कृति में कब और कितना बदलाव होता है, यह तो बाद में सामने आएगा, लेकिन इतना जरूर है कि मंत्री के अपने शहर में आने की सूचना मिलते ही सब सतर्क।

पहले जिला, फिर बनेगा मेडिकल कालेज

कोटद्वार में मेडिकल कालेज की मांग ने पिछली सरकार के समय काफी चर्चा बटोरी। उस समय कोटद्वार के विधायक हरक सिंह रावत कैबिनेट मंत्री थे, उन्होंने तो इसे प्रतिष्ठा का ही सवाल बना डाला। इस्तीफे की धमकी दी तो सरकार ने 25 करोड़ के बजट की व्यवस्था कर दी। राजनीति ने करवट बदली, हरक को भाजपा ने चुनाव से पहले बाहर का रास्ता दिखा दिया।

इस बार ऋतु खंडूड़ी भूषण कोटद्वार से विधायक बनीं और फिर विधानसभा अध्यक्ष। उनसे कोटद्वार में मेडिकल कालेज खोलने के संबंध में सवाल किया गया, तो सधे अंदाज में जवाब मिला। कोटद्वार को पहले जिला बनाया जाएगा, फिर मेडिकल कालेज भी खुल जाएगा। दरअसल, केंद्र सरकार की नीति है कि एक जिले में एक मेडिकल कालेज हो। हरक ने इसे दिल पर ले लिया। बिफर पड़े कि किसने कहा राज्य सरकार मेडिकल कालेज नहीं खोल सकती। सरकार ने अब तक तो उन्हें जवाब दिया नहीं।

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