आखिर कितनी सफल रही बाइडन-चिनफिंग वार्ता, क्यों नहीं उठा भारत-चीन सीमा विवाद, जानें
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच होने वाली वर्चुअल मीटिंग पर दुनिया की नजरें टिकी थी। चीन और भारत विवाद के कारण नई दिल्ली की नजरें जरूर इस वार्ता पर रही होंगी। दोनों नेताओं के बीच 30 मिनट की वर्चुअल बैठक हुई। सवाल यह है कि इन दोनों नेताओं के बीच वार्ता के क्या निहितार्थ थे ? क्या दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ पिघल सकी है ? ताइवान, हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में दोनों देशों के बीच तनाव में कोई कमी आएगी ? दोनों नेताओं के बीच इस वार्ता के क्या हैं बड़े मायने ? इस वार्ता में भारत-चीन का मुद्दा क्यों रहा गायब ? आइए जानते हैं कि इस पूरे मामले में प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) की क्या है राय।
चिनफिंग-बाइडन की मुलाकात को आप किस रूप में देखते हैं ?
दोनों नेताओं के बीच वर्चुअल बैठक में औपचारिकताएं ज्यादा दिखी, इसमें किसी समस्या के समाधान का कोई हल नहीं निकल सका। दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दे जस के तस ही बने रहे। हिंद महासागर का मसला हो या दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रमकता, भारत चीन सीमा विवाद जैसे ज्वलंत मुद्दे पर कोई वार्ता नहीं हो सकी। जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार के मामले में भी चीन ने इस वार्ता में अपने पूर्व के स्टैंड को ही दोहराया है।
इस वार्ता को आप कितना सफल मानते हैं ?
अगर दोनों नेताओं के बीच बैठक की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि चिनफिंग अपनी बात कहने में एक हद तक सफल रहे। खासकर ताइवान मुद्दे पर उन्होंने बाइडन प्रशासन को अपनी नीति साफ कर दी। चिनफिंग ने साफ कर दिया कि ताइवान पर अमेरिका हस्तक्षेप से बचे। चिनफिंग ने कहा कि आग में खेलने से हाथ जलेगा। इससे चिनफिंग ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि अमेरिका ताइवान के मामले में दखल नहीं करे। चिनफिंग ने साफ कर दिया कि ताइवान उनका आंतरिक मामला है। इस पर वह किसी तरह का अमेरिकी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेंगे। ताइवान के मुद्दे पर चिनफिंग ने कहा कि उनके पास धैर्य है। वह शांति और धैर्य के साथ ताइवान को चीन में शामिल करेंगे।
चिनफिंग-बाइडन की मुलाकात के कूटनीतिक मायने क्या हैं ?
देखिए, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की अमेरिका में लोकप्रियता की रेंटिंग लगातार गिर रही है। बाइडन पर इसका जबरदस्त दबाव है। ऐसे में बाइडन वह सारे जतन कर रहे हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता के ग्राफ में सुधार हो। चिनफिंग और बाइडन के बीच वार्ता इस दृष्टि से अहम है कि अमेरिका चीन के साथ रिश्तों में सुधार करने का इच्छुक है। इसके लिए बाइडन प्रशासन पहल भी कर रहा है। बाइडन यह संदेश देना चाह रहे होंगे कि वह चिनफिंग से रिश्ते सुधार रहे हैं। चीन लगातर अमेरिका के सामरिक हितों को चुनौती पेश कर रहा है। चीन की भाषा एक सुपर पावर देश की होती जा रही है। यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के वक्त चीन से रिश्तों में सुधार की बात कह चुके हैं।
क्या बाइडन अपने इस मिशन में सफल रहे हैं ?
राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडन की चीनी राष्ट्रपति के साथ यह पहली वर्चुअल बैठक थी। बाइडन प्रशासन पर इसका दबाव जरूर रहा होगा कि वह राष्ट्रपति बनने के बाद चीन के साथ संबंधों में सुधार करे। दोनों देशों के बीच संबंध अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। यही कारण हैं कि दोनों नेता भले ही किसी समस्या के समाधान नहीं खोज पाए हो, लेकिन दोनों के बीच वार्ता का क्रम शुरू हुआ है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद बाइडन प्रशासन पर वैदेशिक नीति को लेकर विपक्ष आक्रामक हो रहा था। खुद उनकी पार्टी में भी बाइडन की नीति को लेकर आक्रोश था। चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग और राष्ट्रपति बाइडन की वार्ता को इस कड़ी के साथ जोड़कर देख सकते हैं।
बाइडन और चिनफिंग वार्ता में भारत नदारद रहा ?
जी बिल्कुल, दोनों नेताओं की वार्ता में भारत का जिक्र नहीं हुआ। हालांकि, सीमा विवाद के बड़े दायरे में भारत अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकता है। बाइडन ने सीमा विवाद का जिक्र किया था, लेकिन उन्होंने भारत का नाम नहीं लिया। चिनफिंग ने भी भारत का जिक्र नहीं किया। दरअसल, चीन और भारत सीमा विवाद का समाधान कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर चल रहा है। दूसरे चीन और भारत के सीमा विवाद में अमेरिका कभी प्रत्यक्ष दखल नहीं देगा। भारत भी नहीं चाहेगा कि भारत-चीन सीमा विवाद किसी अन्य देश द्वारा उठाया जाए। भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी अन्य देश का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करता और न ही किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। यह भारतीय विदेश नीति का आधार है। एक सिद्धांत है। अपने आंतरिक मामलों एवं सीमा विवाद को वह द्विपक्षीय वार्ता के जरिए ही समाधान चाहता है।