यूपी में चुनावी दांव से पहले बिखरते कांग्रेस के पत्ते, हाथ झटक पाला बदल रहे अपने
लखनऊ। चुनावी बिसात अभी बिछी नहीं, कांग्रेस दांव चलने का दम जुटा ही रही है कि इधर उसके पत्ते बिखरते जा रहे हैं। उपेक्षा की टीस से बेचैन पुराने कांग्रेसी मौका मिलते ही उस ‘हाथ’ को झटककर जा रहे हैं, जिसने उन्हें बढ़ाया और बदले में उस हाथ को खींचकर आगे बढ़ाने के लिए इन नेताओं ने भी जीवन खपा दिया। नेतृत्व की बेफिक्री का ही परिणाम है कि दशकों-पीढ़ियों से जो कांग्रेस के अपने थे, वह मुंह फेरकर चले जा रहे हैं और जो दूसरे दलों से आए थे, उनका भी भरोसा यहां जम न सका। यह सब उस चुनाव के पहले हो रहा है, जिसमें प्रियंका वाड्रा के रूप में गांधी खानदान की साख दांव पर लगी है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तीन दशक से राजनीतिक वनवास काट रही है। जिस तरह से यह दल देश की सत्ता में वापसी के लिए यूपी पर नजरें जमाए है, उसी तरह से उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण बनकर राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा आईं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद जब वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को करारी हार मिली तो प्रदेश प्रभारी प्रियंका ने खुद समीक्षा की। उन्होंने माना कि संगठन की कमजोरी की वजह से ही कांग्रेस यहां खड़ी नहीं हो पा रही। वह संगठन की मजबूती के मिशन में जुटीं।
प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक अपनी मर्जी के मुताबिक पदाधिकारी बनाए। मगर, इस कवायद में ‘नए कांग्रेसी बनाम पुराने कांग्रेसी’ की आवाज रह-रहकर उठती रही। प्रदेश नेतृत्व की कार्यशैली उठती रही, जिसे अनसुना किया जाता रहा। कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी सुधार के सुझाव के साथ मुखर हुए तो इंदिरा और राजीव गांधी के दौर के ऐसे दस वरिष्ठ कांग्रेसी पार्टी से बाहर कर दिए। हालांकि, उनमें से कुछ की वापसी कुछ समय पहले कर ली गई। बहरहाल, संदेश देने का प्रयास किया गया कि पुराने कार्यकर्ताओं का मान रखा जा रहा है। चुनाव के लिए गठित विभिन्न समितियों में स्थान भी दिया गया, लेकिन संगठन में उनके ऊपर जिन लोगों को ‘नेता’ बनाकर बिठाया गया, उनसे पुराने कार्यकर्ताओं की मतभिन्नता खत्म न हुई।
अभी चार दिन का लखनऊ प्रवास कर प्रियंका वाड्रा शुक्रवार को दिल्ली लौटी हैं। वह संगठन की ही रणनीति यहां बनाती रहीं और इसी दौरान बुंदेलखंड के पुराने स्थापित कांग्रेसी पार्टी छोड़ने की तैयारी में जुटे थे। पार्टी डैमेज कंट्रोल नहीं कर सकी और शुक्रवार को पूर्व विधायक व प्रियंका की सलाहकार समिति के सदस्य विनोद चतुर्वेदी, पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी, महोबा के पुराने कांग्रेसी खानदान के मनोज तिवारी सपा में शामिल हो गए।
पुराने कांग्रेसियों की तीखी चुटकी : विनोद चतुर्वेदी का कहना है कि प्रदेश कांग्रेस को जो नेता चला रहे हैं, वह नौसिखिया हैं। जिन कार्यकर्ताओं ने पूरा जीवन पार्टी के लिए समर्पित कर दिया, उन्हें सम्मान नहीं देते। कोई सुझाव कभी माना नहीं गया, इसलिए मजबूरन साथ छोड़ना पड़ा। वहीं, कांग्रेस से निष्कासित किए गए पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी चुटकी लेते हैं कि अपने नाम के साथ गांधी जोड़कर प्रियंका वाड्रा महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने के लिए चल पड़ी हैं। गांधी जी ने ही कहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस को खत्म कर नया संगठन बनाया जाए।
बेगाने हुए अपने चेहरे : कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जितिन प्रसाद (अब योगी सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री), चौथी पीढ़ी के कांग्रेसी ललितेशपति त्रिपाठी, पूर्व सांसद अन्नू टंडन, डा. संजय सिंह, विधायक अदिति सिंह, राकेश सिंह, युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अंकित परिहार आदि।
दूसरे दलों से आकर फिर वापस : बसपा से आकर प्रदेश महासचिव बने पूर्व विधायक ध्रुवराम चौधरी, बसपा छोड़कर कांग्रेस से सीतापुर में लोकसभा चुनाव लड़ीं पूर्व सांसद कैसर जहां, बसपा से आकर प्रदेश महासचिव बने ब्रह्मस्वरूप सागर।
कुछ और जाने को तैयार : दो मौजूदा विधायक, पश्चिम से एक पूर्व विधायक और एक मजबूत जाट नेता भी जल्द कांग्रेस छोड़ सकते हैं। चर्चा है कि इन सभी के सपा में जाने की बातचीत चल रही है। विधानसभा चुनाव की सीट पर सहमति बनते ही यह विदा हो जाएंगे।