FATHERS DAY : पितृ दिवस और नैतिक शिक्षा
होमेन्द्र देशमुख
आंखें कितने दिनों में खुलती हैं ? गाय के बच्चे की प्रसव के तुरन्त बाद, बकरी के 2-3 घण्टे में, बिल्ली के 6-8 दिन में, कुत्ते के 10-12 दिन में और मानव की…? ऐसी रोचक एवं दुर्लभ जानकारी कौन सा किताब , कौन सा कोर्स , कौन सा स्कूल देगा ..? स्कूलों में नैतिक शिक्षा का पढ़ाना सालों से बंद हो गया है । अब कहीं कहीं वह ऑप्शनल विषय भी है । जब संयुक्त परिवार होते थे बच्चा वहीं नैतिकता और अनैतिकता की पहचान का पाठ पढ़ लेता था । भारतीय पारंपरिक और संयुक्त परिवारों में पिता की भूमिका केवल परिवार के लिए केवल आय कमाने वाले व्यक्ति के रूप में होता था । कई उदाहरण हैं जिसमे बच्चे किस कक्षा में पढ़ाई करते हैं यह न तो पिता को मालूम होता था न ही पिता घर से बाहर जाकर क्या काम करते हैं ,यह बच्चों को भी नही पता नही होता था । जबकि विकसित पश्चिम में ऐसा नही था ।
अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो ..
सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा..
मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता , मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे…!! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठा .. लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे..!! उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे ! सिर्फ आप के ही नहीं यहां बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे ! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है, अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी…!! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है ? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूं…!! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है…!!
सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया । बच्चा जब छोटा होता है तब हर माता पिता उसे प्रेम देना चाहता है । उसके कोमल और असहाय शरीर, लालायित नयन ,आतुर बाहें माता पिता को आकर्षित करते हैं । थोड़ा और बड़ा हो जाय तो उसकी बाल सुलभ क्रियाओं ,तोतली बोली और उम्मीद से भरी नजरों को देख कर माता पिता भी उसकी ओर आकर्षित होते हैं । उसमे कितना प्रेम है और कितना उस बच्चे से स्वयं का बड़ा होने का दम्भ , यह एक महीन फर्क है । पर एक बात साफ दिखती है कि इस तरह बच्चे की कम उम्र में उसके माता पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार उस मासूम बच्चे पर प्रेम की अक्सर ‘दया’ भी करता है ।
ऐसा नही है कि पिता अपने बच्चों से प्रेम नही करता पर अधिकतर पिता को हमेशा लगता है कि ज्यादा प्रेम दिखाऊंगा तो बच्चे कहीं बिगड़ न जाए । और फिर पिता की अपनी आपाधापी भी है ।
मां जानती है यह सब । वह पिता अर्थात अपने पति को नही समझा सकती और बच्चों को समझा बुझा कर अक्सर उनके बीच, परस्पर उत्पन्न होते अंतर्विरोधों को शांत करते रहती है । पिता बच्चों से और दूर होते जाता है । एक निश्चित दूरी बन जाती है । औसत 15 -16 साल के बच्चों के पिता भी औसत 40 से 50 की उम्र का होता है । एक दूसरे को समझने में कठिनाई भी आती है ।
संयुक्त परिवारों के लगातार होते विघटन से अब माता-पिता पर पैरेंटिंग की सीधी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आ गई है । बच्चों और माता पिता के सम्बंध अब पहले से प्रगाढ़ दिखते हैं । पिता अब बच्चों के पैरेंट्स कम, दोस्त ज्यादा दिखते हैं । बच्चों के खानपान पढ़ाई स्वास्थ्य से लेकर उसके कैरियर तक पर पिता का सीधा दखल होने लगा है । कई बार पिता की यह ज्यादा केयर और चिंता कुछ बच्चों को कमजोर तो कुछ को इरिटेटिंग बना सकता है । ऐसे में कुछ पिता बच्चों को कुछ नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा तक देने लगे हैं । कुछ पिता सिद्दत से यह बात मानते हैं कि…….
पहले बच्चों को सूजी, मैदा और आटे में भेद करना सिखाइये ।
पहले बच्चों को मूंग, मसूर, उडद, चना और अरहर पहचानना सिखाइये ।
पहले बच्चों को मख्खन, घी, पनीर, चीज़ के बीच अंतर और उन्हें बनाने की जानकारी सिखाइये।
पहले बच्चों को सोंठ और अदरक, अंगूर और किशमिश, खजूर और छुहारे के बीच का अंतर सिखाइये ।
पहले बच्चों को दालचीनी, कोकम, राई, सरसों, जीरा और सौंफ पहचानना सिखाइये ।
पहले बच्चों को आलू, अदरक, हल्दी, प्याज और लहसुन के पौधे दिखाइये ।
पहले बच्चों को मेथी, पालक, चौलाई, बथुआ, सरसों, लाल भाजी में फर्क सिखाइये ।
पहले बच्चों को फलों से लदे पेड़ों, फूलों की बगिया दिखाइए ।
पहले बच्चे को गाय, बैल, सांड का फर्क सिखाइये । गधे, घोड़े और ख़च्चर में अंतर समझाइये ।
पहले बच्चों को दिखाईये कि गाय, भैंस और बकरी से दूध कैसे दुहा जाता है।
पहले बच्चों को कीचड़ और मिट्टी में उलट पुलट होना सिखाइये, बरसात में भीगना और गर्मियों में पसीने से तरबतर होना सिखाइये ।
पहले बच्चों को बुजुर्गों के पास जाना, उनसे बातें करना, उनके साथ खेलना और घुल-मिलकर मस्ती करना सिखाइये ।
बड़ों से तमीज़ से बात करना और घर के काम धाम में माँ-पिता का सहयोग करना सिखाइये ।
इन सब के बगैर आप बच्चों को कैरियर और पैसा कमाना सिखाना और कोडिंग सिखाना चाह रहे हैं तो आपका बच्चा एटीएम तो बनेगा समस्याओं का व्हाइटहैट बन जायेगा लेकिन एक अच्छा इंसान शायद ही बन पाए….
लाइफ में जैसे जैसे हम आगे जाते जाते हैं तब पता चलता है कि रिलेशनशिप में उतना perfaction ढूंढने की जरूरत नही बस afaction होनी चाहिए । बच्चे को ज्यादा किताबी शिक्षा देने की जरूरत नही उसके साथ नैतिक व्यवहार ही उसे अपने पैरेंट्स खासकर पिता के प्रति आदर और सम्मान देगा । पिता चाहे inperfaction हो उसके प्रति afaction बना हुआ होगा ।
वरना ! जन्म की घड़ी से मृत्य तक रोशन होने के बावजूद इंसान की आंखें ज़िंदगी भर बंद की बंद रह सकती हैं ।
आज बस इतना ही…!