50-100 इंजेक्शन होते तो मान भी लेते, फ़िलहाल तो ‘मानवीयता’ का लाभ मिलना चाहिए मंत्रीजी को
कीर्ति राणा
मध्यप्रदेश। मामला गरम है कि इंदौर जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ पूर्णिमा गडरिया के ड्रायवर पुनीत अग्रवाल ने गिरफ्तार होने के बाद मंत्री तुलसी सिलावट की पत्नी के ड्रायवर गोविंद राजपूत से 14-14 हजार में रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदना कबूला है।बिना संदेह पूरे मामले की जाँच होनी चाहिए लेकिन फ़िलहाल यह कालाबाज़ारी से ज़्यादा मानवीयता में मदद का मामला लग रहा है। क्यूँकि कालाबाज़ारी दो इंजेक्शन से नहीं होती और मानवीयता दो सौ से या तो संदिग्ध हो जाती है या फिर उसे महान बना देती है।
ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी के ड्रायवर पुनीत अग्रवाल के बयान से बवाल मचा है। इस कालाबाजारी में अभी तक मंत्री परिवार के सीधे शामिल होने के प्रमाण तो पुलिस को पाताल लोक तक खुदाई के बाद भी शायद ही मिले।हालांकि पुलिस जांच के निष्कर्ष आना बाकी हैं, लेकिन जनमानस का सोच यह है कि ये कालाबाजारी से अधिक मानवीयता से जुड़ा मामला लगता है।जिस तरह प्रशासनिक अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक अपने सहकर्मी की मदद करते रहते हैं, यह प्रकरण भी फिलहाल तो ऐसा ही लगता है कि ड्राइवर की गुहार पर तरस खा कर मंत्री परिवार ने दो इंजेक्शन की मदद कर दी और उसने आपदा में अवसर तलाश लिया।पुनीत के वॉयरल हुए बयान में भी गोविंद से दो इंजेक्शन ही अधिक दाम में खरीद कर और ऊंचे दाम में बेचने का जिक्र है।
चूंकि पुलिस भी दो इंजेक्शन की ही कालाबाजारी हुई है यह मानकर जांच कर रही है तो लगता नहीं कि मंत्री परिवार ऐसे मामले में शामिल होगा।दो इंजेक्शन की अपेक्षा दो सौ इंजेक्शन की कालाबाजारी का मामला उजागर होता तो सहजता से माना जा सकता था कि इस घालमेल में मंत्री परिवार के तार भी जुड़े हो सकते हैं।जिस तरह मंत्री पत्नी ने अपने ड्रायवर को दो इंजेक्शन की मदद की है लगभग ऐसी ही मदद कांग्रेस नेताओं से लेकर भाजपा सांसद तक भी कर चुके हैं।करीब एक डेढ़ माह से इंदौर मीडिया यूनाइटेड भी जरूरतमंद पत्रकार और उनके परिवार के लिए इंजेक्शन उपलब्ध कराने के साथ अन्य मेडिकल जरूरतें अपने स्तर पर पूरी कर रहा है अब मदद लेने वालों में से तो किसी के माथे पर लिखा नहीं है कि उसने परिजन के उपचार के नाम पर ₹ 2250 में तमाम तरह की खानापूर्ति के बाद भी उसे महंगे दाम पर बेचने का मन क्यों बना लिया। यदि ऐसा करते हुए वह पकड़ा जाए, आईएमयू से इंजेक्शन लेने का बयान दे तो इसमें संस्था कैसे दोषी होगी?
आमजन के मन में रेमेडेसिविर की उक्त कालाबाजारी वाले बयान की आंच मंत्री परिवार तक पहुंची है तो खोजबीन करने वाली एजेंसियों को भी इस जांच को अनावश्यक रूप से लंबा खींचने से बचना चाहिए ताकि इन एजेंसियो पर भी कीचड़ ना उछले। जांच में इतनी पारदर्शिता भी हो कि विरोधी दल को किसी तरह का आरोप लगाने का मौका न मिले।जिला प्रशासन को भी इस मामले को एक चुनौती बतौर लेना चाहिए।अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट, दवाइयों की कालाबाजारी-नकली इंजेक्शन, कोरोना काल में सिर चढ़ती महंगाई ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक को सख्त एक्शन में दिखना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। आपदा में अवसर खोजने वाले सरकार की सख्ती से या पुलिस जांच से बच भी जाएं लेकिन ऊपर वाले की मार से तो नहीं बच पाएंगे, हाय गरीब की आज नहीं तो कल असर दिखाएगी फिर चाहे वो लूट मचाने वाले हों या सब जानते-बूझते आंख मूंदे रहने वाले हों।
प्रशासन को भी अभी जो व्यवस्था चल रही है उस पर फिल्टर लगाना जरूरी है।रेमडेसिविर की कालाबाजारी सामने आने का भी क्या संयोग है पुलिस के हत्थे चढ़ा भी तो वह ड्रायवर जो बीते सप्ताह प्रदेश भर में अपने तीखे तेवर के कारण चर्चित रही जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ गडरिया की गाड़ी चलाता था…!