वेबीनार : नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पुस्तकालयों का महत्व
— डॉ. बीआर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित
मध्यप्रदेश। डॉ. बीआर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू, इंदौर, एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: पुस्तकालय ,पुस्तकालय अध्यक्ष एवं पुस्तकालय शिक्षकों की भूमिका”विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित किया गया किया गया जिसका शुभारंभ नरेश मिश्रा अधिवक्ता तथा भारतीय शिक्षण मंडल के मालवा प्रांत संयोजक ने ध्येय वाक्य से की गई । विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला द्वारा स्वागत एवं प्रस्तावना वक्तव्य दिया गया। वेबिनार के मुख्य अतिथि डॉ. उमाशंकर पचौरी, भारतीय शिक्षण मंडल, ग्वालियर, कार्यक्रम के सह-अध्यक्ष प्रो. अजय प्रताप सिंह ,महानिदेशक राजा राममोहन रॉय लाइब्रेरी, फाउंडेशन,कोलकाता ,बीज वक्ता प्रो. किशोर जॉन, म. प्र. भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल, विशिष्ट अतिथि प्रो. महेंद्र प्रताप सिंह, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ एवं प्रो. अरविन्द कुमार शर्मा , एमएलबी महाविद्यालय, ग्वालियर द्वारा अपने -अपने वक्तव्य प्रस्तुत किये गए।
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने कहा कि विगत 3 दशकों के अथक परिश्रम से समाज के मध्य में यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रस्तुत है भारतीय अकादमिक जगत के सभी शिक्षकों की विशेष जिम्मेदारी है कि इसके क्रियान्वयन में आने वाली समस्या को समझकर,उसका निराकरण करे एवं आगे बड़े। तदुपरांत इस कार्यक्रम के बीज वक्ता प्रो. किशोर जॉन ने अपने बीज वक्तव्य के मूल में एक वीडियो के माध्यम से भारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा का एक पुरातात्विक चित्रण प्रस्तुत किया एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पुस्तकालय ,पुस्तकालय अध्यक्ष एवं पुस्तकालय शिक्षकों की भूमिका पर प्रकाश डाला ।
प्रोफेसर किशोर जान ने यह भी बताने का प्रयास किया किस प्रकार भारतीय संस्कृति के आचार्य, गुरु, उपाध्याय, चरक इत्यादि संपूर्ण ज्ञान को श्रवण के माध्यम से समाज के मध्य रखते थे और वह ज्ञान स्मृति और बाद में शास्त्रों के लेखन के रूप में प्रचलित रहा आपने बौद्ध धर्म और चीनी यात्री फाह्यान का भी उल्लेख किया जिसने भारतीय सभी उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों जहां पर ज्ञान और भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप में सुरक्षित थी जो पूरे विश्व के लिए एक सर्वश्रेष्ठ अकादमिक संस्थान हुआ करते थे भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली का विश्व में तीसरे स्थान है।
नई शिक्षा नीति के मूलभूत सिद्धांत विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण देना, उनके अंदर बौद्धिक विकास, सामाजिक सहयोग, मानसिक सद्भाव, सांस्कृतिक जीवन शैली एवं सर्वांगीण रूप से उनका व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण हो सके जहां पर कोई बंधन ना हो विद्यार्थी का चिंतन और ज्ञान बहू विषयक हो वह अन्य विषयों का ज्ञान भी व्यापक रूप से समझ सके, ग्रहण कर सके और तार्किक निर्णय लेने में अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग कर सकें, ऐसी भावनात्मक और सांस्कृतिक स्तर पर जब व्यक्ति संपन्न होगा तभी इस देश का विश्व गुरु बनना पुनः निश्चित है जो कि हमारी नई शिक्षा नीति के माध्यम से निश्चित रूप से चरितार्थ होता दिख रहा है
इस प्रकार से आपने नई शिक्षा नीति को कई पहलुओं पर समझाने का प्रयास किया जहां पर शिक्षा नीति मनोरंजक हो, अनुसंधान, भारतीय ज्ञान परंपरा, पर्यावरण संरक्षण, जनजातीय अध्ययन, स्वदेशी ज्ञान परंपरा, सभी विषयों के प्रति व्यापक दृष्टिकोण अनौपचारिक योग्यताओं का विकास, सहानुभूति, शिष्टाचार, सम्मान, तकनीकी ज्ञान, स्वच्छता ,पर्यावरण के प्रति प्रेम, सौहार्द और वसुदेव कुटुंबकम की भावनाओं से ओतप्रोत हमारी नई शिक्षा नीति को हमें पुस्तकालय विज्ञान के माध्यम से पुस्तकालय अध्यक्षों और पुस्तकालय शिक्षकों के रूप में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ है ।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित डॉ उमाशंकर पचौरी राष्ट्रीय महामंत्री भारतीय शिक्षण मंडल, आपने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुपालन के संदर्भ में आपने शास्त्रीय पौराणिक उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट रूप से समझाया की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 किस प्रकार संपूर्ण देश में लागू की जा सकती है। इस हेतु प्रत्येक विषयों के शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है हमें अपने अपने दायित्व बोध को समझते हुए, एक सहयोग की भावना से आगे बढ़कर आगे आना होगा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुपालन के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने सेवा बोध और अपने व्यक्तिगत दायित्व को समझते हुए आगे आना होगा तभी इसके मूल उद्देश्य को पुनः स्थापित कर सकते हैं ।
कार्यक्रम में सह अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित प्रो० अजय प्रताप सिंह ने नई शिक्षा नीति के मूल उद्देश्य को बताते हुए स्पष्ट किया कि भारतीय गौरवशाली शिक्षा प्रणाली को पुनः स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बहुत ही महत्वपूर्ण है जो शिक्षण जगत को समाज के से जोड़ने का कार्य करने हेतु पुस्तकालय विज्ञान की ओर संकेत करती है पुस्तकालय का योगदान निश्चित रूप से समाज के अकादमिक उत्थान और ज्ञान परंपरा को पुनः स्थापित करने में एक कड़ी के रूप में है आपने डॉक्टर एस रंगनाथन का उल्लेख करते हुए निश्चित रूप से यह बताया कि उनके सिद्धांतों में सेवा का भाव प्रथम था उन्होंने पुस्तकालय अध्यक्ष का स्वरूप एक रिफ्रेंस लाइब्रेरियन के रूप में बताया आपने पुस्तक पुस्तकालय विज्ञान की आधारशिला ही सेवा की भावना है आपने पुस्तकालयों की स्थिति बताते हुए स्पष्ट किया कि भारत में ऐसे कई स्कूल है जहां पर पुस्तकों का और पुस्तकालयों का अभाव है नई शिक्षा नीति में स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक पुस्तकालयों का होना नितांत अनिवार्य है और इस बदलाव हेतु समस्त अकादमिक जगत को एक साथ खड़े होकर सहयोग की भावना से कार्य करना होगा ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि वक्तव्य में प्रो. महेंद्र प्रताप सिंह डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विभिन्न विचारों को सर्वप्रथम रखा डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने शिक्षा के अधिकार की कई बार वकालत की है उन्होंने संविधान के आर्टिकल 45 का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार बाबा साहब शिक्षा के अधिकार को लागू करने लिए और समाज को शिक्षित करने के प्रति लालायित रहते थे जो शिक्षा को सर्वप्रथम अधिकार के रूप में चाहते थे भारत सरकार ने 2008 में राइट टू एजुकेशन 2008 के रूप में लागू करके उनके लिए अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की ।
नई शिक्षा नीति इन संस्कारों को पुनर्जीवित करती है । आपने अंबेडकर जी का भी उदाहरण दिया उन्होंने कहा था कि जो शेरनी का दूध पिएगा वो दहाड़ेगा । गांधी जी का भी आपने उदाहरण दिया कि विद्यार्थियों के पूर्ण आध्यात्मिक शारीरिक बौद्धिक और मानसिक विकास हेतु ऐसी शिक्षा हो जो उनका विकास कर सके ।
शिक्षा प्रणाली अनुशासन जीवन के विभिन्न आयामों में संतुलन बनाने में सक्षम हो । ऐसी शिक्षा प्रणाली के की पैरवी राधाकृष्णन ने भी की है। आपने वर्तमान जगत में आकर से निराकार रियल से वर्चुअल की ओर बढ़ रहे नौजवानों का ध्यान भी आकर्षित किया है जिसमें पुस्तकालय विज्ञान का महत्व बढ़ रहा है कि किस प्रकार से पुस्तकालय शिक्षकों को या पुस्तकालयों की जिम्मेदारी बढ़ती है। वेबीनार में प्रोफ़ेसर अरविंद कुमार शर्मा ने शिक्षा नई शिक्षा नीति मैं सर्वप्रथम उदाहरण देते हुए यही बताया कि हमारे वैदिक साहित्य इसी बात का उल्लेख करते हैं कि जो ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास था वही हमें प्राप्त हो ऐसी वैदिक साहित्य में उपासनाए मिलती हैं आपने आपने बहुत ही विश्लेषणात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक लाइब्रेरी साइंस की जो भूमिका है। भारत में शिक्षा समवर्ती सूची में है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य भारत की वर्तमान शैक्षणिक प्रणाली का रूपांतरण करना है । निश्चित रूप से नई शिक्षा नीति पुस्तकालय विज्ञान पुस्तकालय अध्यक्षों और पुस्तकालय शिक्षकों को विशेष रूप से समृद्ध बना कर समाज के सामने एक परिवर्तन की ओर कदम बढ़ाना चाहती है ।
अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने समस्त आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों और वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए और उनकी सेवा भाव का स्वरूप वर्णन करते हुए सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त करते हुए एक सहयोग की अपील की कि हम सभी अकादमिक जगत के शिक्षक एकजुट होकर और इस नई शिक्षा नीति को संपूर्ण देश में अपने-अपने स्तरों पर लागू करें तो निश्चित रूप से भारत पुनः विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो सकता है आपने भारतीय प्राचीन संस्कृति का समूचा चित्रण अपने विचारों में रखा और आपने कहा कि विचार विनिमय सेवा भाव से ही होनी चाहिए तभी हम रही नई शिक्षा नीति 2020 की चुनौतियों को दूर कर एक सकारात्मक और सफल शिक्षक के नाते इस देश को पुनः विश्व गुरु अब विश्व गुरु बनाने में सफल हो सकते हैं आपने सभी पधारे हुए अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए इस कार्यक्रम के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया कि वर्तमान नई शिक्षा नीति 2020 और बदलता परिदृश्य निश्चित रूप से हमारे समाज के सामने एक उत्कृष्ट ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित कर सकेगा।
धन्यवाद ज्ञापन डॉ चेतना बोरीवाल ने किया।
कार्यक्रम के अंत में अखिल भारतीय शिक्षण मंडल के पदाधिकारी अधिवक्ता नरेश मिश्रा ने कल्याण मंत्र के साथ सर्वे भवंतू सुखिन:, सर्वे संतु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दुख: भाग्भवेत् । समापन किया । कार्यक्रम का संचालन डॉ बिंदिया तातेड़ ने किया।