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बेकाबू कोरोना : रोज नई मुश्किलों का क़हर

जोरावर सिंह

देश में कोराना बेकाबू हो रहा है, रोजाना साढे बारह हजार से अधिक मामले सामने आ रहे है। इधर कोरोना बेकाबू है और दूसरी ओर आक्सीजन की कमी के कारण से कोरोना पीडितों को जान से हाथ धोना पड रहा है। रेमडेसीविर इंजेक्शन की मारामारी ने पीडितों और उनके परिजनों को मुश्किल में डाल रखा है। कहीं कोई मां अपने बेटे का शव ले जाने के लिए विवश है तो वही कोई बेड पाने के लिए ऐडी चोटी का जोर लगा रहे है। वहीं वह मजदूर अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए दूसरे शहरों में आए थे, कुछ तो जैसे तैसे लौट गए कुछ लौटने के लिए अपने अपने स्तर पर तैयारी कर रहे हैं ,पर इन सब हालातों का जिम्मेदार आखिर कौन …?
रोजाना तीन लाख से अधिक मरीज सामने आ रहे है, आंकडो की जुबानी मानी जाए तो अप्रेल महीने की शुरूआत में करीब 1 लाख कोरोना पीडित रोजाना सामने आ रहे थे, लेकिन मामले बढते गए, सरकार के तमाम प्रयास नाकाफी सािबत हुए, कोरोना अपनी गति से बढ़ता रहा, मौतों के आंकडे में लगातार इजाफा हो रहा है। बीते एक पखवाडे में ही कोरोना के मामले तीन लाख के पार जा रहे हैं।

-तो अब होगी कार्रवाई

मध्यप्रदेश में कोरोना के उपचार के लिए निजी अस्पतालों द्वारा मन मानी रकम कोरोना पीडितों के मरीजों से वसूली जा रही, यह बात सरकार से भी छुपी हुई नहीं है, इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कोरोना के इलाज में यदि कोई भी निजी अस्पताल तय दरों से अधिक राशि वसूलता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। जो दर शासन ने तय की है, उसका सभी को पालन करना होगा। बड़े शहरों के साथ-साथ तहसील और विकासखंड स्तर पर भी बिस्तर की पर्याप्त व्यवस्था की जाए। इसमें शासकीय के साथ-साथ निजी अस्पतालों का सहयोग भी लिया जाए। यह निर्देश अिधकारियों को दिये जा चुके हैं।

-मध्यमवर्ग की मुश्किल

कोरोना के मामलों में मध्य प्रदेश में करीब साढे चार हजार लोगों की कुल कोरोना से मौत हो चुकी है, प्रदेश के कोरोना प्रभावित जिलों में रोजाना तीन से चार लोगों की कोरोना से मौत हो रही है। लॉकडाउन प्रभावी है, ऐसे में सबसे अिधक परेशानी मध्यमवर्ग को ही झेलना पड़ रही है। हालात यह है कि मध्यमवर्गीय परिवार छोटे छोटे कारोबार के माध्यम से अपने परिवार का पालन पोषण करते है, वह तो कोरोना की बढती लहर के कारण से बंद है, ऐसे में जिन परिवारों में कोरोना से पीडित मरीज है, उनकी मुश्किलें और बढ रही है, निजी अस्पतालों तो मंहगे पैकेज पर उपचार किया जा रहा है, जिसकी शुरूआत 50 हजार से होती है, ऐसे में मध्यम वर्ग की परेशानियां और बढ रही है।

आशा जो निराशा में बदल गई

बीते साल जब मार्च से अप्रेल महीने में कोरोना के मरीज सामने आए थे, तब लॉकडाउन के कारण से वैवािहक कार्यक्रम, चाय, पान, होटल, मैरिज गार्डन, हलवाई, सहित वैवाहिक कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार पाने वालों की उम्मीदों पर पानी फिर गया था, उस भरपाई की उम्मीद उन्हें इस बार थी, लेकिन इस बार तो दूसरी कोरोना लहर ने सबकुछ बर्वाद कर दिया है, बस संचालकों का कहना है कि अप्रेल से लेकर मई महीने में शादियों में बसों के अलावा अन्य छोटे वाहनों की बुकिंग थी, लेकिन अब लॉकडाउन की स्थिति के कारण अब बारातें बसों से नहीं जाएगी तो बुकिंग कैसिल हो गई है। बाजार में हाथ ठेले से लेकर अन्य छोटे कारोबािरयों पर एक बार फिर आर्थिक संकट मंडराने लगा है।

फिर पलायन की मार

देश के विभिन्न शहराें में अिधकांश तय मध्यम वर्गीय परिवार रोजी रोटी कमाने के लिए जाते है, बीते साल पलायन का दर्द झेलने के बाद एक बार फिर यह लोग अपने काम धंधों पर लौटे थे, लेकिन कोई दो महीने तो कोई तीन महीने ही काम कर पाया और फिर से महानगरों में कोरोना की मार के कारण से उन्हें लौटने के लिए विवश होना पड रहा है, दिल्ली सहित देश के अन्य बडे शहरों से इन मजदूरों को लौटने के लिए विवश होना पड रहा है। अब फिर स्थानीय स्तर पर ही रोजी रोटी के साधन तलाशने होंगे। यह चिंता भी उन्हें सता रही है।

-अब न हटाया जाए

यूं तो बेरोजगारी देश की बडी समस्या बन गई है, पर मध्यप्रदेश में इसका असर कितना है, इसका अंदाजा तो इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि जब 2020 के मार्च महीने में कोरोना फैला था, तो प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर कोविड सेंटरों की स्थापना की गई थी, लेकिन जैसे ही कोरोना की रफ्तार थमी और प्रदेश में बनाए गए कोविड सेंटरों को बंद कर दिया गया। इन कोविड सेंटरों को कोरोना काल के दौरान संचालित करने वाले स्टाफ को भी कोविड सेंटर बंद होते ही हटा दिया गया। कोरोना काल के दौरान अपनी अहम भूमिका निभाने वाला स्टाफ फिर बेरोजगार हो गया, लेकिन 2021 में फिर से कोरोना ने दस्तक दी, तो फिर से कोविड सेंटर संचालित किए जा रहे है, तो बीते साल कोविड सेंटरों में काम करने वाले स्टाफ को फिर बुला लिया गया है, अब उनका दर्द तो यही है कि बुरा दौर बीतने के बाद कहीं उन्हें फिर से बेरोजगार तो नहीं कर दिया जाएगा।

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