फातिमा सना शेख ने बताई जीवन की ‘अजीब दास्तान’ बोलीं- ‘दंगल मिलना मेरे लिए अजीब था’
मुंबई। बीते साल फातिमा सना शेख की फिल्में ‘सूरज पे मंगल भारी’, ‘लूडो’ अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज हुईं। उनकी हालिया रिलीज ‘अजीब दास्तान्स’ एंथोलॉजी फिल्म है। फातिमा कोरोना वायरस से संक्रमित भी हो गई थीं। कोरोना से जंग और ‘अजीब दास्तान्स’ को लेकर फातिमा से प्रियंका सिंह की बातचीत के अंश…
आप पिछले दिनों कोरोना वायरस की चपेट में आ गई थीं। आइसोलेशन के दौरान क्या कुछ जेहन में चल रहा था?
उस दौरान लोग मेरे साथ बहुत प्यार से पेश आए। कई लोगों ने खाना भेजा था, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से मुंह का स्वाद चला गया था, इसलिए खाने का मजा नहीं ले पाई। शुरुआत के कुछ दिन बहुत मुश्किल भरे थे। मुझमें कोरोना संक्रमण के सारे लक्षण थे। अब मैं ठीक हूं, लेकिन खुद की सुरक्षा का ध्यान रखने की जरूरत है। जो लोग यह सोचकर घर से बाहर निकल रहे हैं कि वे संक्रमित नहीं हो सकते तो वह इस गलतफहमी से बाहर आ जाएं।
‘लूडो’ के बाद यह आपकी लगातार दूसरी एंथोलॉजी फिल्म है। इस जॉनर में सहज हो गई हैं? क्या शॉर्ट फॉर्मेट में काम करने की तैयारी अलग होती है?
दो मिनट की कहानी हो या दस सीजन की सीरीज, जो लिखा गया है, उसे ईमानदारी से निभाना ही मेरा काम है। स्टोरीटेलिंग के स्टाइल से कलाकार को फर्क नहीं पड़ता। हम फिल्म की लंबाई के बारे में नहीं सोचते। कहानी छोटी है, तो उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता, न ही कहानी को लिखने में, न ही किरदार को निभाने में। आपका अप्रोच उस किरदार के प्रति उतना ही ईमानदार हो, जितना एक फीचर फिल्म की तरफ होता है। ‘अजीब दास्तान्स’ में शशांक खेतान ने किरदार में कई परतें डाली थीं। मैंने जब किरदार के बारे में सुना था तभी हां कह दिया था। मेरा किरदार फिल्म में सशक्त और खुले दिमाग की आत्मविश्वासी लड़की का है। वैसे मेरे लिए यह चुनौतीपूर्ण इसलिए था, क्योंकि मैं खुद को लेकर इतनी आत्मविश्वासी नहीं हूं।
जीवन की कोई अजीब दास्तान, जो याद रह गई हो?
यह जीवन ही अजीब है। एक दिन में लाइफ कहीं से कहीं पहुंच सकती है। मेरे लिए ‘दंगल’ मिलना अजीब था। पहले जो दिक्कतें थीं, वह एक कॉल से दूर हो गईं। मैंने कई फिल्मों के लिए ऑडिशंस दिए थे। बहुत से रिजेक्शंस मिले थे। ‘दंगल’ के लिए सान्या मल्होत्रा और मुझे बुलाकर 30 सेकेंड में कह दिया गया था कि आप दोनों को फिल्म मिल गई है। एक मिनट तक मैं यह सोच रही थी कि यह क्या हुआ, बस इतना ही था? ऐसे ही फिल्म दे देते हैं? जब तक आपको कोई बड़ी चीज नहीं मिलती, तब तक आप सिर्फ उसकी कल्पना ही कर पाते हैं, लेकिन सच तो यही है कि वह पल सिर्फ दो-चार शब्दों का होता है कि आपको फिल्म मिल गई है।
आपके लिए फिल्में रिलीज होना ज्यादा जरूरी है या फिल्में सिनेमाघरों में ही रिलीज होना ज्यादा मायने रखता है?
अच्छी बात यह है कि अब यह मायने नहीं रखता है कि आप मनोरंजन का मजा कहां और किस माध्यम पर ले रहे हैं। वह फिल्म या सीरीज आपको कैसा महसूस करा रही है, यह ज्यादा मायने रखता है। यह मुश्किल वक्त चल रहा है। ऐसे में जरूरी ये है कि कोई कोरोना वायरस से संक्रमित न हो जाए। मेरी ‘लूडो’ थिएटर में रिलीज होने के लिए बनी थी, लेकिन डिजिटल पर भी लोगों ने उसे खूब पसंद किया।
आपको फिल्मों में हीरोइनों की तरह डांस करने का मौका अभी तक नहीं मिला है…
सच कहूं तो मैं बहुत बुरी डांसर हूं। डांस करने में मुझे बहुत मेहनत लगती है। हालांकि मैं एक्टिंग के अलावा डांस भी करना चाहूंगी।
आपकी आगामी तमिल फिल्म ‘अरुवी’ की हिंदी रीमेक होगी। उसकी शूटिंग कब से शुरू हो सकती है?
‘अरुवी’ की शूटिंग जून-जुलाई से शुरू होने वाली है। बाकी सब कोविड केसेस और सुरक्षा गाइडलाइंस पर निर्भर है। मैंने ओरिजनल फिल्म देखी है। यह चुनौतीपूर्ण रोल है। मैं वह फिल्में करना चाह रही हूं, जो मुझे खुद देखना पसंद हैं। हो सकता है कि किसी फिल्म में मुझे जो किरदार पसंद आया हो, वह सिर्फ एक मिनट का हो। पर वह इतना प्रभावशाली हो कि मैं उस किरदार के साथ फिल्म देखने के बाद भी रहूं। ऐसा नहीं है कि मैं आगे बढ़कर ऐसे किरदारों की तलाश कर रही हूं। अगर कोई कहानी मुझे पसंद आएगी, तो उसका हिस्सा बनना चाहूंगी। किरदार छोटा है या बड़ा, यह मायने नहीं रखता है।
‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ की असफलता के बाद आपने कहा था कि आप तनाव में थीं। क्या अब भी फिल्म के हिट और फ्लॉप से उतना ही फर्क पड़ता है, जितना पहले पड़ता था?
हम किसी फिल्म में अपना खून-पसीना डालते हैं। जब वह फिल्म लोगों को पसंद नहीं आती है, तो बुरा तो लगेगा ही। जब तारीफ नहीं मिलती है, तो आप खुद से कई तरह के सवाल पूछते हैं। ऐसे में तनाव हो ही जाता है। वैसे अब मुझे इससे डर नहीं लगता है। मैं किरदारों के साथ प्रयोग करती रहूंगी। एक वक्त पर एक चीज के बारे में ही सोचती हूं। आगे के बारे में ज्यादा नहीं सोचती। मैंने जान लिया है कि डर के साथ काम करने का मतलब होता है कि आप पहले से ही बैकफुट पर हैं। सो, बेहतर होगा कि आप पूरी तरह से प्रोजेक्ट पर विश्वास दिखाएं।