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डॉ. अंबेडकर का बहिष्कृत से उद्धारक तक का सफरनामा

जोरावर सिंह

वर्तमान दौर में डा भीमराव अंबेडकर के अनुयािययों द्वारा उनकी जयंती एक उत्सव के रुप में मनाई जाने लगी है, उन पर बहुत लिखा जा चुका है और बहुत कुछ बाकी है, माना जा रहा है जैसे जैसे समाज जागरूक हो रहा है, वैसे वैसे डा अंबेडकर को मानने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यूं तो डा भीमराव अंबेडकर दबे कुचले समाज से लेकर महिलाओं की आवाज बुलंद की। इसलिए वह पूरे भारत वर्ष के रत्न है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन बहुजन समाज उन्हें अपना उद्धारक मानता है, बहिष्कृत समाज में जन्म लेने के बाद से उस समाज का उद्धारक बनने तक के उनके सफर कितना आसान रहा और कंटक भरा। यह जानने की उत्सुकता बढ रही है।
डा भीमराव अंबेडकर के जीवन काल पर नजर डालें तो उनका जन्म मध्यप्रदेश में इन्दौर के पास महू में 14 अप्रेल 1891 को हुआ, उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल और मां का नाम भीमा था, इसलिए उनका नाम भीमराव रखा गया। डा अंबेडकर का लालन पालन उनकी मां ज्यादा नहीं कर पाई और 1896 में मां का साथ छूट गया। उनकी पढाई की शुरूआत 1990 में एक सरकारी स्कूल से शुरू हुई। महाराष्ट्र के सतारा के स्कूल से 1902 में उन्होने प्राथमिक परीक्षा पास कर ली। आगे की पढाई के लिए वह मुम्बई पहुंचे, और एलफिन्स्टन हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। माना जाता है कि इसी साल उनका विवाह रमाबाई के साथ हुआ। 1912 में उन्होंने बीए की परीक्षा पास की, इसी वर्ष बड़ौदा रियासत में लेफ्टनेंट की नौकरी की। वहीं इसी साल उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ती हुई, जिसका नाम यशवंत राव रखा गया।

—उच्च शिक्षा के लिए संघर्ष

डा अंबेडकर ने बीए की परीक्षा पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह 1913 में अमेरिका रवाना हुए। कोलंिबया विश्वविद्यालय में प्रवेश, लिया। पर इसी साल उनके ऊपर से उनके पिता का उठ गया। 1915 में उन्होने एमए किया। 1916 में उन्हें पीएचडी की उपािध मिली। वहीं भारत में जाती प्रथा नामक उनकी पहली पुस्तक भी प्रकाशित हुई। वह मुंबई के एक कालेज में प्राध्यापक हो गए। पर यहां उनका मन ज्यादा रमा नहीं 1917 में बैरिस्टर की पढाई के लिए लंदन रवाना हो गए। 1922 में उन्होंने बैरिस्टर की परीक्षा पास की।

— उनके द्वारा निकाले गए अखबार

उन्होंने 1920 में मूकनायक अखबार निकाला। 1924 को उनके द्वारा बहिष्कृत भारत पाक्षिक अखबार निकाला, 1928 में पाक्षिक समता नामक अखबार निकाला, 1930 में साप्तािहक जनता अखबार, 1940 में आम्ही शासनकर्ती जमात बनणार , 1956 में प्रबुद्ध भारत अखबार निकाला।

— संगठन एवं सियासी दलों का गठन

डा अंबेडकर द्वारा 1927 को समता समाज संघ, 1929 में बहिष्कृत समाज सेवा समिति की स्थापना, 1936 को स्वतंत्र मजदूर पक्ष की स्थापना की गई। 1942 में अखिल भारतीय शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना, समता सैनिक दल, बहिष्कृत हितकारिणी सभा, पिपुल एजूकेशन सोसाइटी, भारतीय बौद्व महासभा के अलावा स्वतंत्र लेबर पार्टी, भारतीय रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया।

— बहुजन समाज की आवाज बुलंद की

डा अंबेडकर ने अपनी आखिरी सांस तक बहुजन समाज की लडाई लडी, इसमें 1927 को महाड में चवदार तालाब सत्याग्रह, 1928 में साइमन कमीशन की सहायता के लिए नियुक्ती समिति पर नियुक्त, 1929 में अछूतों के जन प्रतिनिधियों के लिए 33 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रखने की मांग, 1931 में गोलमेज सम्मेलन में बहुजनों का पक्ष रखा। 1930 में नासिक में कालाराम मंदिर प्रवेश के लिए आन्दोलन,1932 में लोथियन कमीशन को जाति निर्णय पर अपना स्वतंत्र मत प्रस्तुत किया। 1947 में अछूतों के लिए मंदिर प्रवेश, 1943 में अछूत कार्यकर्ता सम्मेलन, 1944 में लखनऊ में कामगार स्थाई समिति का अिधवेशन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता उनके द्वारा की गई।

— सियासी घटना क्रम

डा अंबेडकर 1927 में मुबई विधान परिषद के सदस्य नियुक्त हुए। 1931 को अछूत नेताओं की परिषद आयोजित की। 1932 गांधी अंबेडकर समझौता, पूना पैक्ट यानी कि पूना करार, 1938 औरंगाबाद अछूत परिषद के अध्यक्ष बने, 1942 लेबर मिनिस्टर के पद पर नियुक्त, 1947 संविधान समिति के ध्वज समिति के सदस्य, एवं विधि मंत्री बने, 1949 भारतीय संविधान स्वीकार, 1951 नेहरू मंत्रीमंडल से स्तीफा, 1952 सार्वजनिक चुनाव में डा अंबेडकर की हार, राज्यसभा से नियुक्ती सहित उनके जीवन के सियासी घटनाक्रम प्रमुख रूप से चर्चित रहे।

— बौद्ध धर्म की शरण में चले गए अंबेडकर

डा भीमराव अंबेडकर समाज में व्याप्त कुरीितयों और छुआछूत से जीवन पर्यन्त लडते रहे, वह विषमताओं से बहुत दुखी थे, इसलिए वह 1956 में बौद्ध धर्म की शरण में चले गए, करीब छह से सात लाख लोगों ने उनके साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ली, इसी वर्ष काठमांडू नेपाल में बुद्ध और कार्लमार्क्स पर अपने विचार व्यक्त िकए। 1951 में बुद्ध और उनका धम्म ग्रन्थ लिखा, जिसका प्रकाशन 1957 में किया गया।

— झकझोरती हैं उनकी कृितयां

डा अंबेडकर द्वारा लिखी गई पुस्तकों एवं लेखों में 1939 में संघ बनाम स्वतंत्रता, 1946 में हू वेयर दि शूद्राज, दि अनटचेबुल, भगवान बुद्ध और उनका धम्म, फेडरेशन वर्सेस फ्रीडम, स्टेट्स एण्ड माइनोरीटीज, जाति प्रथा का विनाश, इसेज ऑफ भगवत गीता, इण्डिया एण्ड कम्यूनिज्म, पाकिस्तान और द पर्टिशन ऑफ़ इण्डिया/थॉट्स ऑन पाकिस्तान सहित उनकी अन्य चर्चित पुस्तकें है। जो असली भारत की तस्वीर बताने में कारगर है।

…और कह गए अलविदा

डा अंबेडकर वर्तमान दौर में बहुजन समाज के बीच एक मसीहा के रूप में याद किए जाते है, शायद इसलिए कि जब उनकी पत्नी रमाबाई का निधन 1935 में हो गया था, इस आघात के बाद भी वह बहुजन समाज की आवाज बुलंद करते रहे, 1948 में उन्होंने डा शारदा से विवाह कर लिया। माना जाता है जीवन के अंतिम पडाव पर वह अस्वस्थ्य रहने लगे थे, और 6 दिसम्बर 1956 को उन्होंने इस दुनियां को अलविदा कह दिया। वहीं 1990 को उनकी जयंती के अवसर पर देश के सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न से उन्हें विभूषित किया गया। देश में व्याप्त विषमताओं के खिलाफ अपनी जिदंगी की आखिरी सांस तक जूझने वाले इस मसीहा को बहुजन समाज बाबा साहब के नाम से भी पुकारता है। उनकी जयंती अब भारत के अलावा अन्य देशा में उनके अनुयायियों द्वारा उत्साह के साथ मनाई जा रही है।

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