बोस की सेना को 11 देशों की सरकार ने दी थी मान्यता
– सुभाष चंद्र की जयंती पर विशेष
जोरावर सिंह
मध्यप्रदेश। अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने में अपना पूरा जीवन लगाने वाले और िजनकी मौत से अभी तक पर्दा नहीं उठ सका हैए ऐसे महापुरूष सुभाष चंद्र बोस को उनकी जयंती के मौके पर याद िकया जाएगा। देश भर में उनकी जयंती पर िवशेष कार्यक्रम आयोजत होते है।
गौरतलब है कि 23 जनवरी1897 को सुभाष चंद्र बोस का जन्म उडीसा राज्य के कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। जीवन पर्यन्त वह भारत को अग्रेजों से आजाद कराने के िलए संघर्ष करते रहे। उनके द्वारा दिल्ली चलो, जय िहंद का नारा दिया, जो आज आजाद भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। दूसरी ओर उनके द्वारा तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा। इसके साथ ही उन्होने 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।
स्वामी विवेकानंद से रहे प्रभावित
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आजादी की लडाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके ऊपर स्वामी विवेकानंद का भी बहुत प्रभाव पडा इसकी वजह यह रही कि उन्होंने केवल 15 साल की अवस्था में स्वामी विवेकानंद के पूरे साहत्य को पढ लिया था। स्वामी विवेकानंद के साहत्य के अध्ययन के बाद इसका उनपर काफी गहरा प्रभाव रहा। वहीं महिर्ष अरविंद घोष की िवचार धारा से भी वह बहुत प्रभावित रहे। उन्होने 3 मई 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। जीवन भर आजादी की लडाई लडते रहे। आजाद हिंद फौज के माध्यम से भारत का आजादी दिलाने में अपनी भूमका निभाई।
उनका संघर्ष और वर्तमान सियासत
सुभाष चंद्र बोस को पूरा नेताजी के नाम से जानता है। उनके संघर्ष और व्यक्तित्व पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी है। इसमें उनके संघर्ष को समाहत किया गया है। जब उनके संघर्ष की कहानी पढते है तो पाते है। भारत को आजाद कराने का जुनून उन पर सवार था। इसीलए वह देश के नौजवानों से रक्त मांगने की बात तक कही यानी कि यदि आप आजादी चाहते हो तो जीवन दांव पर लगाना होगा। यही विचार उनकी राष्ट्र भक्ति का प्रतीक है। यह विचार आजादी के पूर्व के नेताओं के रहे, अब वर्तमान राजनीति और नेताओं की विचार धारा उलट है, अब उसमें स्वार्थ, परमार्थ नहीं है।