किसान आन्दोलनः सरकारों की उडी नींद, नेताओं को डाला सांसत में
– हरियाणा सरकार मुश्किल में नहीं मान रहे किसान
-किसानों की मौतों से बढ रहा देश में आक्रोश
जोरावर सिंह
दिल्ली। देश में इस समय किसान तीनों क्रषि कानूनों को रदद कराने के लिए आन्दोलन कर रहे है। आन्दोलन की उम्र करीब 50 दिन की होने वाली है। किसान हार नहीं मान रहे है। इससे सरकारों की नीदें उडी हुई है, तो वहीं हरियाणा की सरकार की मुश्किल भी लगातार बढ रही है और किसानों को देश भर में मिल रहे समर्थन से जनप्रतिनिधि और नेताओं की भी चिंता बढने लगी है। उनका जनाधार खिसक सकता है। ऐसे में यदि किसान आन्दोलन यूं ही चलता रहा तो कई और नेता किसानों की दरी पर बैठने के विवश हो सकते है।
गौरतलब है कि क्रषि कानून पर केन्द्र सरकार और किसान आमने सामने है। इस आन्दोलन में इस कडाके की सर्दी में जहां किसान हाइवे पर डेरा जमाकर रह है। मौसम भी लगतार बदल रहा है। सर्दी के कारण से इस आन्दोलन करने वाले करीब 60 किसान अभी तक दुनियां को अलविदा कह चुके है। जिन परिवारों ने अपने बुजुर्ग इस आन्दोलन में खोये है। उनकी भरपाई तो अब नहीं हो सकती है, ऐसे विषम हालातों में भी किसान आन्दोलन पर डटे हुए है। मामला अदालत तक भी पहुंच गया है। आन्दोलन से क्या नफा नुकसान होगा यह तो वक्त ही बताएगा पर किसानों ने इस आन्दोलन के माध्यम से सरकारों को खुली चुनौती दे दी है।
चिंता तो झलक रही है
जजपा ने मंगलवार को नई दिल्ली में विधायकों व पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है। इस बैठक के बाद दुष्यंत जजपा विधायकों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर सकते हैं। चंडीगढ़, हरियाणा में किसान आंदोलन को लेकर सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं। इसी बीच हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर सकते हैं। सूत्रों की मानें तो यह मुलाकात दिल्ली में होगी। दुष्यंत चौटाला के साथ विधायक भी मौजूद रहेंगे, वहीं सीएम मनोहर लाल खट्टर भी दिल्ली जाएंगे, जहां वह कई केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर सकते हैं। हरियाणा सरकार में दोनों ही प्रमुख दलों के नेताओं में चिंता तो झलक रही है।
सताने लगी जनाधार की चिंता
किसानों का आन्दोलन जब से शुरू हुआ है तब से लेकर अब तक अकाली दल, सांसद हनुमान बैनीवाल सहित अन्य नेता किसानों के पक्ष में एनडीए से अपना नाता तोड चुके हैं। जैसे जैसे किसान आन्दोलन आगे बढ रहा है। किसानों को जनता का समर्थन मिल रहा है। भले ही सत्ता पक्ष के समर्थक उनके विरोध में हो, वहीं जिन नेताओं की पहचान किसान नेताओं के रूप में किसानों की नाराजगी से अब उन्हें अपना जनाधार खिसकता हुआ नजर आ रहा है। इसकी चिंता अब उन्हें सताने लगी है। दूसरी तरफ किसान नेताओं ने 26 जनवरी को गणत़ंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का ऐलान कर दिया है, अब आन्दोलन आगे बढने के आसार के कारण कई और नेता किसानों की दरी पर बैठने को विवश हो सकते है।